आदरणीय साथिओ,
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आपको रचना पसंद आई ..हार्दिक आभार आदरणीय आशुतोष जी
अच्छी कथा हुई है आ. प्रतिभा पाण्डेय जी ! बचपन में पढ़ी-सुनी इस कथा को आपने घुमाव दे कर बहुत सुंदर ताना-बाना बुना है बधाई
बहुत जबरदस्त कटाक्ष किया है लघु कथा के माध्यम से आज की व्यवस्था पर सच में ठगों का बोलबाला है बात को कहने के लिए लोककथा का मनोरंजक समावेश इस लघु कथा को और अधिक समृद्ध कर गया प्रस्तुतिकरण ,कथ्य सभी प्रकार से लघु कथा बहुत पसंद आई प्रिय प्रतिभा जी हार्दिक बधाई स्वीकारें .
लघुकथा अच्छी है आ० प्रतिभा पाण्डेय जीI लेकिन (मैं कोई दोषारोपण नहीं कर रहा) यह रचना छठी या सातवीं कक्षा की पाठ्य-पुस्तक में शामिल "दि बिफूल्ड एम्परर" से बहुत ज्यादा प्रभावित लग रही हैI जिस वजह से मौलिकता खो रही है, बहरहाल आयोजन में सहभागिता हेतु अभिनंदन स्वीकारेंI
' दि किंग इन हिज बर्थ डे सूट ' इस नाम से बचपन में पढ़ी गई कथा से ही इस कथा के बिम्ब लिए गए हैं I हमारे आस पास ढेरों पौराणिक कथाएँ मुहावरे कहानियाँ जैसे ' रंगा सियार,' ' लालची राजा ,. सोने के अंडे देने वाली मुर्गी और विदेशी धरती की कहानियाँ भी हैं I अगर इनसे बिम्ब उठाकर आज के सामयिक परिपेक्ष्य में कहानी कही जाए तो किस प्रकार निर्धारण होगा कि यहाँ पर मौलिकता का हनन नहीं है और यहाँ पर है I रंगे सियार का बिम्ब लेकर इसी मंच पर रंग विषय पर मैंने एक कथा कही थी I आशा है आप इस विषय पर मार्गदर्शन करेंगे I कथा पर आपकी अमूल्य टिपण्णी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी I आशा है आप रचना पर पुनः समय देंगे I
आपसे सहमत हूँ ...कथा अपने आपको स्पष्ट नहीं कर पाई ..सटीक बेबाक टिपण्णी के लिए आभार प्रिय सीमा जी
हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा जी।सुन्दर लघुकथा।
हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर जी
हार्दिक आभार आदरणीया कल्पना जी
आदरणीया प्रतिभा जी, क्या खूब कथानक बुना है! वाह! कथा का ताना बाना और किस्सा गोई ने इसे रोचक बना दिया है. इस रोचक शैली की प्रस्तुति को पढ़कर आनंद आ गया. 'नायक बना खलनायक' वाली आखिरी सस्पेंस खोलती पंचलाइन भी बढ़िया है. लेकिन जो कुछ इस लघुकथा से निस्सृत होना था, वह हो नहीं सका या कथ्य के शाब्दिक होने के क्रम में कहीं छूट गया. ये समझ नहीं पा रहा हूँ. प्रदत्त विषय के अनुरूप इसे बिठाने का प्रयास कर रहा हूँ मगर असफल हो जाता हूँ. यहाँ यदि प्रश्न करता हूँ कि लघुकथा कैसी कही ?.... तो स्पष्ट उत्तर है कि बहुत बढ़िया कही.... लेकिन क्यों कही? .... एक मौन से गुजरना पड़ रहा है. हो सकता है प्रस्तुति से ख़ुद को 'सन्देश की आस' में जोड़ नहीं पा रहा हूँ. लेकिन जहाँ तक रोचकता की बात है तो 'फुल एंटटेंमेंट' है. इस रोचक प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई . सादर
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