आदरणीय साथिओ,
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अच्छा कथ्य है , और सामयिक भी , ऐसी कई घटनाएँ न्यूज-चैनल पर भी दिखाई गयी हैं जहां नव-युगल कम बजट में शादी सम्पन्न करवाने को तरजीह दे रहे हैं , और दहेज को भी दरकिनार करने में नही हिचक रहे है...| कुछ जगह शब्दों को एडिट कर लें जैसे 'ढेला' की जगह 'धेला'.. \ कुल मिलाकर रचना पढने के बाद सुकून देती है |
अंतिम पंक्ति सच में चौंका देती है सच ये वही बात हो गई की ऊपर से कहते हैं बस तीन कपड़ों में दुल्हन ले जायेंगे वही चुपके चुपके सबसे ज्यादा दहेज़ ले लेते हैं और उनके शातिर दिमाग पर किसी को शक भी नहीं होता .बहुत खूब प्रिय राहिला जी बहुत अच्छी लघु कथा हुई दिल से बधाईयाँ .
प्रदत्त चित्र पर दमदार लघुकथा कही है प्रिय राहिला जी, मुबारकबाद स्वीकार करेंI लघुकथा यूँ तो अच्छी है लेकिन, इसको और बेहतर बनाया जा सकता थाI मसलन:
1. //शेख़ साहब ने अपने इंजीनियर बेटे का रिश्ता जब बहुत बड़े घर में तय किया, तो जाहिर सी बात थी कि लेन देन की बात करके खुद को हकीर साबित क्यूँ करते ।यहाँ जब वह बारातियों की लम्बी फेरिस्त तैयार कर रहे थे तब वहीं , यदि लघुकथा// इन पंक्तियों को हटाकर देखे, क्या रचना पर कोई प्रभाव पड़ेगा? (मेरे ख्याल से नहीं पड़ेगा)
2. रचना में यदि मामूली से "आश्चर्य के तत्व" का तड़का लगा दिया जाता तो कैसा रहता? मसलन यदि लघुकथा यहाँ से शुरू की जाती:
//बेटे का फैसला सुनकर शेख़ साहब एकदम से बौखला गये । //
तो पढने वाले की जिज्ञासा न बढती कि शेख़ साहिब क्यों बौखला गए?
आखिरकार लड़के की जिद के आगे झुकना पडा | ये पंक्तिया विषय से नया करती हुई कहानी को सफल बना रही है | सुंदर कथानक पर रचित लघु कथा के लिए बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला आसिफ़ जी।सुन्दर लघुकथा।आज की पीढ़ी अपने बुलंद इरादों से एक नये समाज का निर्माण करने को तैयार है।अच्छा संदेश।
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