आदरणीय साथिओ,
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आ० मोहम्मद आरिफ साहिब, स्वतंत्र रूप में आपकी यह कथा ठीक ठाक है किन्तु दुर्भाग्य से यह प्रदत्त विषय से न्याय नहीं कर पा रही हैI
// अब माँ शुभांगी अनुत्तरित थी//
माँ के निरुत्तर होने से ही बात नहीं बनेगी क्योंकि मैं ने जो सवाल किया उसका उत्तर तो बेटे ने पहले ही दे दियाI जैसा कि भाई सुनील वर्मा जी ने कहा कि इस कथा का मूल सन्देश "ऐसा होना चाहिए" उभर कर आ रहा है "अनुत्तरित प्रश्न" नहींI कथ्य-शैली के लिहाज़ से भी यह रचना कोई प्रभाव डालने में असफल रही हैI यदि यह कथा ये नाचीज़ लिखता तो माँ के इस पश्न:
//"तेरा ताउम्र इसके साथ निबाह हो पाएगा ?"//
के बाद, समीर और सीमा एक दूसरे की तरफ देखते, और माँ दोनों की आँखों में भाव पढ़कर क़यास अराई में पड़ जातीI कहने का तात्पर्य यह कि माँ ने जो प्रश्न पूछा उसके उत्तर में अनेकों प्रश्नचिन्ह हवा में ही तैर जातेI बहरहाल, आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI
लघु कथा वास्तव में बहुत उच्च सन्देश दे रही है बहुत खूब हार्दिक बधाई आद० मोहम्मद आरिफ जी
वास्तविक जिंदगी में ऐसा हो पाता काश , पर सुनने में अच्छा लगता है हार्दिक बधाई आपको इस सकारात्मक कथा के लिए आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती और संदेश देती
सुंदर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ----
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