आदरणीय साथिओ,
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सुनीता जी सुंदर प्रतिकात्मक रचना. बधाई
बढ़िया प्रतीकात्मक सटीक रचना विषय पर, बधाई आपको आ
लघुकथा- जुर्माना
ट्रेन का 5 मिनट का ठहराव था. टिकट लाइन बहुत लंबी थी. रमन की धड़कन बढ़ती जा रही थी. समय तेजी से भाग रहा था और लाइन धीरेघीरे खिंसक रही थी. यह ट्रेन चली गई तो दूसरे दिन ट्रेन मिलेगी. यह सोच कर वह कभी ट्रेन का देख रहा था कभी खिड़की पर टिकट ले कर जाते हुए यात्रियों को.
तभी ट्रेन ने सीटी लगाई. वह खिड़की पर पहुँच गया. उस ने टिकट लिया. भागा. ट्रेन रफ्तार पकड़ रही थी. जो डिब्बा सामने आया उस में चढ़ गया.
अभी सांसें सामान्य भी नहीं हुई थी कि एक रौबदार आवाज आई, “ बिना टिकट यात्रा करते शर्म नहीं आती.” पांच बंदूकधारी सिपाही के साथ खड़े टीटी कह रहा था और वह फटेहाल यात्री गिड़गिड़ा रहा था , “ साहब ! गरीब आदमी हूं. पैसे नहीं है. माफ कर दीजिए. भगवान आप का भला करेगा.”
“दारू पीने के पैसे है टिकट खरीदने के लिए नहीं है.” कहते हुए टीटी ने नाक दबा कर गार्ड को इशारा किया, “ इसे पकड़ कर ले चलो. जेल में रहेगा तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी.” यह कहते हुए टीटी ने दूसरे यात्री से टिकट मांगा.
दूसरा यात्री आरक्षित सीट पर कब्जा जमा कर सामान्य श्रेणी के टिकट पर यात्रा कर रहा था. यह देख कर टीटी बिफर पड़ा, “ पढ़ेलिखे हो . शर्मा नहीं आती. आरक्षित डिब्बे में चढ़ गए. दस गुना जुर्माना दीजिए.”
यह सब देखसुन कर रमन ने अपने हाथ में पकड़े टिकट को मुट्ठी में दबा लिया. जेब में हाथ डाला. 200 रूपए थे. जुर्माने का अनुमान लगाया. वह 800 रूपए हो रहा था. आसपास दृष्टि डाली. कोई पहचान वाला नहीं था. जिस से उधार ले सकें. वह जिस शहर में इस वक़्त था वहां भी कोई पहचान वाला नहीं था. जिस से मदद मांगी जा सकती थी इसलिए जेल जाना तय था.
टीटी रौब के साथ जुर्माना करते हुए चला आ रहा था. जैसेजैसे वह नजदीक आ रहा था रमन की दिल की धड़कन ट्रेन की गति के साथ बढ़ती जा रही थी.
‘” टिकट !” यह सुनते ही रमन ने चुपचाप टिकट आगे बढ़ा दिया, “ साहब ! माफ कीजिएगा, चलती गाड़ी में चढ़ गया था. अन्यथा मैं ऐसी गलती कभी नहीं करता.” यह कहते हुए रमन ने सिर नीचे कर लिया.
‘‘” हूं. सामान्य टिकट.”
‘‘ “जी सर.”
‘‘” जुर्माना निकालिए.” टीटी ने कहा तो रमन ने नहीं में गर्दन हिला दी.
टीटी ने गार्ड को इशारा किया, ”इन्हें ले चलिए.”
स्टेशन पर ट्रेन के रूकते ही रमन गार्ड के साथ नीचे उतरा पड़ा. उसे अपनी नजरों के सामने जेल की कालकोठरी नजर आने लगी थी. उसे अब जेल जाने से कोई रोक नहीं सकता था.
तभी बरसते पानी की ठण्डी हवा के साथ टीटी की आवाज सुनाई दी,”आप उस सामान्य श्रेणी के डिब्बे में चले जाइए ओर हां, ध्यान रखिएगा- कभी चलती ट्रेन में चढ़ने की कोशिश मत कीजिएगा. दुर्घटना हो सकती है.” कहते ही टीटी और गार्ड अगले डिब्बे में चढ़ गए.
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(मौलिक व अप्रकाशित)
बहुत बढ़िया कथा हुई है आदरणीय ओम प्रकाश जी | सब टी टी एक से नहीं होते , सही कहा है आपने | हार्दिक बधाई आपको |
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