आदरणीय साथिओ,
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पत्रात्मक शैली मेन भी लघु कथा लिख सकते है , मुझे ये नहीं मालूम था सर ।
बहुत बहुत बधाई आपको , इस उत्कृष्ट सृजन हेतु ।
मेरे इस प्रयास से आपकी जानकारी में इजाफा हुआ यह जानकार अच्छा लगा. कथा पसंद करने हेतु हार्दिक आभार आ० अन्नपूर्णा बाजपेई जी.
रंगत
“हो ओ… मेरे घर आई एक नन्ही परी चांदनी से हसींन रथ पे सवार …”
निशा गुनगुनाते हुए,अपनी नवजात बिटिया की मालिश कर रही थी । अपने तीखे नाक नक्श और सांवले सलोने चेहरे की पूरी छाप, निशा को अतीत में ले गई। निशा का विवाह दहेज़ की लंबी चौड़ी मांगों के साथ पक्का हो चुका था कि अचानक वर पक्ष की ओर से सन्देश आया कि,
‘लड़की का रंग काला है विवाह नहीं करेंगे।’
पर निशा के ताऊ जी भी दुनियादार थे, ऐसे कहाँ हार मानने वाले, इंजीनियर लड़का हाथ से निकलने देते भला, तुरंत ही दहेज की रकम पन्द्रह से सत्रह लाख कर दी और बात बन गई निशा दुल्हन बन कर आ गई ।
सासु माँ की आवाज़ कानो में टकराई, तो ध्यान टूटा,
"बहू, रोने की परवाह मत किया कर ! दूध चिरोंजी से बिटिया की मालिश जरूर किया कर। नहीं तो शादी में परेशानी होगी ।"
सासु माँ ने कटाक्ष भरे स्वर में कहा तो जैसे निशा की बरसो की पीड़ा को आज आंच मिल गई थी, सारी पीढ़ा लफ़्ज़ों में गल गई ।लफ़्ज़ों की तासीर जितनी गर्म थी स्वर को उतना ही नरम करते हुए बोली,
"माँ जी चिंता की क्या बात है? दहेज़ में चार पांच लाख बढ़ा देगें।”
मौलिक एवं अप्रकाशित
सटीक कटाक्ष बढ़िया कथा विषय जरुर पुराना है | हार्दिक बधाई आपको इस कथा के लिए |
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