आदरणीय साथिओ,
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बहुत बहुत आभार आ सुरेंदर इंसान जी
पहली बार रचना पढने के बाद मुझे लगा कि //उनकी निगाहें बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह गयीं|// वाली पंक्ति अतिरिक्त है और अनकहा को कहने का प्रयास कर रही है| लेकिन पुनः पढने पर यह पंक्ति अनावश्यक नहीं लगी| सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय विनय कुमार जी सर इस उम्दा सृजन हेतु| एक जिज्ञासा है कि पात्र का नाम "मिसिरजी" रखने का कोई विशेष कारण है क्या?
बहुत बहुत आभार आ चंद्रेशजी, कोई खास वजह तो नहीं, बस एक मानसिकता को दर्साने के लिए इसे चुना था|
जी सर, आभार, पात्र का नाम कुछ अलग सा लगा था इसलिए जिज्ञासा हुई|
बहुत बहुत आभार आ सुनीता अग्रवाल नेह जी
सच है ,हमारे ताने बाने में जो आपसी प्रेम छिपा है उसे कोई भी नहीं तोड़ सकता .. हार्दिक बधाई इस सुन्दर कथा के लिए आदरणीय विनय जी
बहुत बहुत आभार आ प्रतिभा पण्डे जी
लघुकथा की लघुता उसकी समासिकता पर निर्भर करती है (शंकर पुण्तांबेकर) । अापकी लघुकथा में प्रयुक्त / पिताजी को समझाना चीन को समझाने जैसा था/ इस तथ्य को पूरी तरह सही सिद्ध करता है। लघुकथा का कथानक व उसमें निहित साकारात्मक संदेश समाज के लिए पथप्रर्दशक का काम करता है। आज ऐसी ही रचनाओं की आवश्यकता है । सादर बधाई स्वीकारें कप्तान साहिब ।
बहुत बहुत आभार आ रवि प्रभाकर जी, आपकी प्रतिक्रिया ने मनोबल बढ़ा दिया
बहुत बहुत आभार आ वीर जी, आप जैसे बेहतरीन रचनाकार से ऐसी टिप्पणी मिलना सुकून देता है
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