आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
सच है , विवाह में पद पैसे से अधिक महत्वपूर्ण है ..अच्छा मनुष्य होना.. सुन्दर मर्म है कथा का ...हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय सुकुल जी
आदरणीया प्रतिभा पांडेय जी , सादर आभार।
‘‘ माॅं ! मैं ‘मनुष्य‘ को ही वरण करूंगी । ‘‘-- पंक्तियाँ बहुत कुछ अनकहा कह जाती है जो पूरी मानवजाति को कटघरे में खड़ा कर देती है.
आदरणीय ओमप्रकाश जी , सादर आभार।
मुहतरम जनाब टी आर शुक्ल साहिब , सुंदर लघुकथा हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
आदरणीय तस्तीक अहमद जी सादर आभार।
आदरणीय सुरेंदर जी , धन्यवाद। मैं सुधार करने का प्रयास करूंगा।
//मैं ‘मनुष्य‘ को ही वरण करूंगी// बहुत अच्छी पंक्ति कही आपने| एक अच्छा सन्देश देती रचना के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ. त्रैलोक्य रंजन जी सर| आपकी रचना में अनकहा (पशुवत नहीं हो) यह माना गया है|
दो जिज्ञासाएं आपके और सभी के सम्मुख रख रहा हूँ:
1. मेरे अनुसार रचना में अनकहा हो और अनकहा विषय पर रचना कही गयी हो, दोनों में फर्क होना चाहिये| लघुकथा के शिल्प में अनकहा हो तो वो पाठकों को समझना पड़ता है और यदि अनकहा विषय के साथ लघुकथा हो तो उसमें अनकहा शायद रचना के पात्रों के लिए अथवा उनसे सम्बंधित होना चाहिये|
2. इस रचना में "मनुष्य" शब्द पाठकों और माँ पात्र के लिए एक प्रतीक की तरह प्रयोग किया गया दिखाई दे रहा है| किसी भी संवाद में सकारात्मक विशेषण का प्रयोग उसके विपरीत के नकारात्मक रूप में स्वतः ही हो जाता है, जैसे कहा जाये कि राम वीर है, तो यह समझ में आता है कि राम कायर नहीं है| तो क्या "कायर नहीं है" का अनकहे के रूप में प्रयोग हो सकता है?
सादर विचारार्थ प्रेषित,
धन्यवाद सहित आभार आदरणीय डॉ चंद्रेश जी !
आप तो जानते हैं कि मेरा क्षेत्र भिन्न है। लघुकथा के तत्वों पर तो कुछ भी कहने के किये मैं बहुत ही संयम रखता हूँ और प्रायः संकुचित ही रहता हूँ क्योंकि इन्हें गहराई तक समझ रखने वाले आप जैसे प्रबुद्धजनों से मैं अभी सीख ही रहा हूँ।
(१) सहमत। परन्तु मेरी समझ से शब्द "अनकहा" व्यापक है , वह अपने में व्यक्त और अव्यक्त दोनों प्रकार के भावों और भावनाओं को आवृत्त किये हुए है अतः उस पर जिस दृष्टिकोण से चिंतन क्या जाता है वह अपने आप में विशिष्ट लगने लगता है। आपके द्वारा किये गए विश्लेषण से किया गया दो भागों का विभाजन क्या इसकी व्यापकता को सीमित तो नहीं करता है इस पर विचार किया जाना वांछित है।
(२) नहीं , "मनुष्य" से जुड़े सही अर्थों में उसके चरित्र और मानवोचित व्यवहार को प्रकट करने का ही प्रयास है। परोक्षतः यह कहा जा रहा है कि सम्पन्नता और विद्वत्ता प्राप्त लोगों की संतान भी उसी स्तर की हो यह आवश्यक नहीं है , अपेक्षतया कम बौद्धिक स्तर के परिवारों में कुशाग्र और उच्च बौद्धिक स्तर वाले परिवारों में मूर्ख संताने देखी गयी हैं। इसी प्रकार यह भी कि पुत्री इतनी योग्यता रखती है की अपना हित अहित समझती है इसलिए माता पिता को अधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। समाज में मानव ने अपना कितना अवमूल्यन कर लिया है, आदि आदि अन्य अनेक भावों और भावनाओं को भी बताया जा सकता है, जो कथा के अंतिम वाक्य के माध्यम से कहने का प्रयास किया गया है। सादर।
सादर आभार आदरणीय त्रैलोक्य रंजन जी सर, मेरी जिज्ञासाओं का समाधान करने हेतु|
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |