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बहुत से प्रश्न रख छोडती लघुकथा. यह आपकी कलम का ही कमाल है आदरणीय बागी जी. बहुत-बहुत बधाई आपको ,सर
सादर!
आदरणीय जितेन्द्र जी, सब गुरुओं का आशीर्वाद है जो हमसे लघुकथा कहलवा लेता है, वरना हम क्या और हमारी अस्तित्व क्या, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार.
कड़वी सच्चाई को उजागर कर दिया सर आपने
आभार आदरणीय पंकज जोशी जी.
आदरणीय विनोद खनगवाल जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और सकरात्मक टिप्पणी से लघुकथा सम्मानित हुई, बहुत बहुत आभार.
मेरे लिए गणेश जी बागी = लघुकथा । दाद देता हूं आपकी प्रखर व घाघ द़ृष्टि की, कितनी सूक्ष्मता से अपनी लघुकथा बुनते है आप आदरणीय गणेश भाई । जैसे शिल्पी पक्षी बया अपने नीड़ का निर्माण करता है बिल्कुल उसी प्रकार एक एक शब्द को अच्छे तरह से बुनकर आप अपनी लघुकथाओं का निर्माण करते हैं। लघुकथा के शिल्प पर आपकी कुशलता मुग्धकारी है। /संस्था से जुड़ने के पश्चात़ अब छोटी छोटी बातों से भी उसे लगता था कि उसके अधिकार का हनन हो रहा है/ कैसा बिन्दु पकड़ा आपने आदरणीय गणेश भाई । लाजवाब । आप हिन्दुस्तान के अग्रणी लघुकथाकारों में से एक हो और मुझे गर्व है कि मैं साक्षात आपसे मिल चुका हूं । बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय मुख्य प्रबंधक महोदय जी ।
इस प्रतिक्रिया पर मैं क्या कहूँ आदरणीय रवि भाई, मुझे लगता है यह एक भाई का स्नेह है जो आपसे यह सब कहलवा रहा है वरना मैं तो खुद को एक विद्यार्थी समझता हूँ.
बहुत बहुत आभार रवि भाई.
पहचान
शीर्षक – नागरिक
“आ गए ,बनवा लिया पहचान पत्र ?”पसीने से तर ब तर रामाशीष बाबू से पत्नी ने पूछा .
“अरे नहीं ,उसके लिए और भी कई कागजात चाहिए,ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं किसी चक्रव्यूह में फँस गया हूँ“ कहते ,प्रौढ़ रामाशीष बाबू निढाल हो लेट गएँ .
“कहतें हैं ये हर नागरिक के लिए जरूरी है ,अपने ही देश में इसे बनवाने में कितने पापड़ बेलने पड़ रहें हैं “ पत्नी रुआंसी हो बोली .
“अरे! नागरिक से याद आया , हमारे नए पडोसी ,वही जो ढाका से आयें हैं ,उनके पास हर तरह के पहचान पत्र है ,चलूं उनसे से ही पूछता हूँ कि कैसे हासिल किया “
ये कहते ख़ुशी ख़ुशी वे पडोसी के घर व्यूह तोड़ने की तरकीब लेने चल पड़े .
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@मौलिक व् अप्रकाशित
कुछ अकर्मण्य लोगों के कारण सरकारी विभाग बहुत बदनाम हैं, और इसीलिये आम व्यक्ति नए तरीके सोचता है चाहे सही हो या गलत ... इसे अच्छे शब्दों में कहा है आपने|
धन्यवाद श्रीमान चंद्रेश कुमार जी ,आपने सही कहा ये मुठ्ठी भर अकर्मण्य लोग पूरे तंत्र को दीमक की तरह चाट रहें हैं .
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