आदरणीय साथिओ,
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नया विषय , बहुत बढ़िया आदरणीय शहजाद भाई | हार्दिक बधाई |
सबसे पहले तो इस विषय को चुनने की बधाई शहजाद भाई! आज समाज में दो टीमें बन गई हैं एक इंटरनेट पक्ष में और दूसरी विपक्ष में.और दोनों ही एक दूसरे से असहमत. जबकि सच ये है कि जन्नत और दोजख दोनों ही हमारे दिमाग की उपज हैं, इंटरनेट या किसी और की नहीं. एक विचारणीय मुद्दे पर कथा कहने की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
सही कहा आपने सिर्फ इंटरनेट ही क्यों सभी स्थान पर यह बात लागू होती है, रामचरित मानस में तुलसी दासजी ने कहां भी है,"सकल पदारथ हैं जग माहीं, करमहीन नर पावत नहीं." इस कथन को आज के परिपेक्ष में देखें तो अच्छा और बुरा दोनों ही तरह का मार्ग है सामने ,चुनना तो हमें है. आपकी कथा अच्छी है इसके लिए पुनः बधाई.
आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, प्रदत्त विषय को आपने अपनी लघुकथा में बहुत ही अच्छे से ढंग से उठाया है. इस हेतु मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आपका शीर्षक चयन उत्कृष्ट है. साथ ही, मुहावरों का भी आपने बहुत अच्छे ढंग से प्रयोग किया है सिवाय उस एक के जिसकी चर्चा आ. योगराज सर ने की है. "जन्नत" और "दोज़ख़" के सन्दर्भ में भी मैं उनसे सहमत हूँ.
//"यह पीढ़ी तो मोबाइलों और लेपटॉप्स पर ऐसे भिड़ी रहती है, जैसे कि जन्नत की सैर कर रही हो!"//
एक बार पुनः इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
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