आदरणीय साथिओ,
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बहुत अच्छी लघु कथा है आद० बरखा जी बहुत बहुत बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय बरखा शुक्ला जी ।बेहतरीन लघुकथा।अंतिम पंक्ति में जो "हिराकत" लिखा है वह "हिक़ारत" होना चाहिये।
फ़रिश्ते
"माँ ,कुछ खाने को दो न । " चार वर्षीय सुखिया ने अपने भूखे पेट पर हाथ फेरते हुए कहा ।
" हाँ रे ,तनिक रुक जा , छोटे को दूध पिला दूं पहले ।"
"जब देखो तब छोटे को चिपकाये रखती हो , मुझे तो आप देखतीं ही नहीँ । " कहते हुए सुखिया रोने लगा ।
"अब तू रो तो मत , देख तू तो बड़ा हो गया है , यह छोटे तो अभी छः महीने का ही हुआ है ,इसको दूध पिलाना जरूरी है ।"
"अरे पर मुझे भी तो भूख लग रही है ....." गुस्से और दुखी मन से उसने अपनी माँ से कहा ।
"ओह हो ,तू भी न अच्छा देख अंदर छीके में शायद रात की रोटी पड़ी होगी ,खा ले । "
सुखिया अंदर जाकर देखता है ,छीका खाली था, उसने अपने पिता को वहां देखा जो पूरी तरह से नशे में धुत्त था , और उसने सुखिया के सामने ही रोटी का आखरी निवाला भी निगल लिया था |
"माँ ,ओ माँ यहाँ तो कोई रोटी नहीं है ,पिताजी ने खा ली ।"
"हे भगवान ,यह फिर आ गया , अब मैं कैसे समझाऊं ? सुनो तुमको थोड़ी से लाज लज्जा है कि नहीं ,मुफ़्त की रोटी तोड़ते रहते हो ।" पियक्कड़ पति से परेशान हो कर वह बोली ।
घर में अन्न का दाना तक न था ,छाती भी सूख गयी थी , पिचके हुए पेट से आख़िर दूध कब तक पिला पायेगी वह । सामने एक और बच्चा भूख से तड़प रहा था ।
कुछ देर रुककर उसने अपने बेटे का हाथ पकड़ा और बोली ,"चल बेटा , करीब के जंगल में चलते हैं ,वहां सच्चे फ़रिश्ते रहते है , कुछ न कुछ तो पेट भरने के लिए मिल ही जायेगा । "
बाहर जंगली फल दिखाई दे रहे थे , और पेड़ ममतामयी दृष्टी से उनकी तरफ देख बाहें फैला रहे थे |
मौलिक एवं अप्रकाशित
सच कहा प्रकृति से बड़ा फ़रिश्ता और कोई नहीं है. लघुकथा सुंदर, संदेशपरक और विषयानुकूल हुई है जिस हेतु आपको ढेरों ढेर बधाई. एक बात का ध्यान रखें कि विराम चिन्ह के बाद या पहले कोई गैप नहीं होना चाहिए, ऐसा करने से रचना बिखरी-बिखरी भी लगती है और अपनी दर्शनीयता भी खो देती है.
जी सर ध्यान रखूंगी| सादर धन्यवाद् आदरणीय सर|
आदरणीय शहजाद जी , घर में जब पति होता है, तो एक बात बताएं एक औरत क्या चाहेगी? और दूसरी बात जब यहाँ पति को जब नशे की आदत है और रोटी का आखरी निवाला भी वह खा चूका, इसका क्या अर्थ हुआ ? उम्मीद है आपके सवाल का उत्तर दे पाई हूँ| सादर|
मेरे ख्याल से रोटी सब के लिए उपुक्त शब्द होता है| कई जगह सुनियेगा यह कहा जाता है आजा रोटी खा ले| यह सुना है ' आजा , दाल खा ले , चावल खा ले ? या भोजन करने आजा येही कहा जाता है | सादर
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