आदरणीय साथिओ,
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लघु कथा ----फ़र्ज़ ( सुबह का भूला )
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साहिल को यह पता न था कि उर्स के दौरान जिस दरगाह पर भीड़ में वो बम विस्फोट करने आया है वहाँ उसके माँ बाप भी मौजूद होंगे| मज़ार के पास जा कर उसने देखा कि उसके माँ बाप हाथ फैला कर रो ते हुए दुआ कर रहे थे:
"बाबा एसा करिश्मा करदो कि मेरा बेटा घर वापस आ जाए , जिसे आतंकबादी उठा कर ले गये हैं "
यह सुनते ही साहिल की आँखों में आँसू आ गये ,वो अपने साथी सईद के पास जा कर कहने लगा:
"मैं यहाँ बम विस्फोट नहीं कर सकता?"
सईद ने जवाब में कहा ,"अगर एसा नहीं करोगे तो चीफ़ तुम्हारे घर वालों को ख़त्म करवा देगा "
साहिल यह सुन कर सोच में पड़ गया, वो वापस मज़ार की तरफ गया वहाँ मौजूद एक सैनिक ऑफीसर से उसने कुछ बात की ,और देखते ही देखते मज़ार को सैनिकों ने अपने घेरे में ले लिया | सईद को गिरफ्तार कर लिया गया, अचानक भीड़ में मची अफ़रा तफ़री को देख कर सैनिक ऑफीसर ने फ़ौरन सब से कहा:
"घबराने की कोई बात नहीं , इस नौ जवान की वजह से एक बड़ा हादसा टल गया "
लोगों ने पूछा यह कौन है ," सैनिक बोला ,यह आतंकवादी है लकिन इसने आत्म समपर्ण कर दिया है "
साहिल के माँ बाप की जब उस पर नज़र पड़ती है तो वो पास जाकर मज़ार की तरफ देख कर रोते हुए उसे गले लगा लेते हैं
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(मौलिक व अप्रकाशित )
अच्छी लघुकथा है आ० तस्दीक अहमद खान साहिब, हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी। बेहतरीन लघुकथा ।
अच्छी कथा हुई है जनाब तस्दीक साहब, बधाई स्वीकारें|
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