आदरणीय साथिओ,
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सुंदर लघुकथा के लिए. बधाई आदरणीय रेणुका जी .
*अपने लोग अपना देश*
“ यू ब्लडी इंडियन…….”
उसके मालिक ने जैसे ही उसे झिड़कना शुरु किया,पहली गाली सुनते ही वह खो गया। चन्द महीने पहले कितने अरमान लिए वह आस्ट्रेलिया आया था। इन दिनों में बीसियों जगह नौकरी कर चुका था। पशुओं की देख-रेख, खेती,घर की सफाई,बैरे का काम,सेल्स बॉय का काम और कईं ऐसे ही काम। हर जगह जी तोड़ मेहनत के बावजूद प्रताड़ना सही। मालिकों की नस्लीय टिप्पणी सुनता गया, नया काम ढूँढता गया। इसी सप्ताह इस फर्नीचर हाउस में काम शुरु किया था।
पूरे मन से काम करता रहा। सप्ताहांत पर पारिश्रमिक मिलता है। जैसे-जैसे सप्ताहांत निकट आया इस मालिक के व्यवहार में भी तल्खी आनी शुरु हो गई। आज तो हद ही हो गई। काम धीमा करने का आरोप लगा वह बेइंतहा गालियाँ दिए जा रहा था।
सोचता हुआ वह काम छोड़ कर बैठ गया। मालिक ने उसे नज़दीक आकर झंझोड़ा, “हे व्हाई आ यू सिटीं डॉग?”
अचानक तन्द्रा भंग हुई। उसने मालिक को झटक कर एक तरफ़ किया और अपना सामान पैक करने लगा।
मालिक थोड़ा शांत हो उसकी तरफ देख रहा था।
वह सामान उठा फर्नीचर हॉउस से बाहर निकल आया। आँखें झर रही थी। खुद पर गुस्सा आ रहा था। परिजनों के आगे विदेश जाने की ज़िद की थी। बेबस पिता का चेहरा अब नजरों के आगे घूम रहा था।
माँ ने भी रुआँसी हो एक दिन कहा था, “ बेटा! तू एकला बच्चा बख्शा है राम ने। तू ही सात समंदर पार चला जावेगा तो हम किसका मुँह देख के जी लगाएंगे। यहीं कमा-खा लेना। दिन ओखे हों चाहे सोखे सब साथ तो रहेंगे।”
सामान लेकर ज्योंही आगे बढ़ा वही मालिक पीछे से चिल्लाया, “हे लिशन व्हेय आ यूँ गोईं?”
“तुम स्साले गौरे बन्दर...। मेहनत करके ही तो खाना है। अपने लोगों के लिए करूँगा। अपनों के साथ रहकर करूँगा।”
बड़बड़ाते हुए आँखें पोंछी और आगे बढ़ गया।
मौलिक एवं अप्रकाशित
30-12-2017
विषयांतर्गत नवीन कथानक लेकर पलायन की पीड़ा भोगते युवाओं की परदेस में दुर्दशा और उनकी वापसी की मनोदशा पर बढ़िया प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सतविंद्र कुमार राणा साहिब।
आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी साहब,सादर नमन। प्रयास के अनुमोदन एवं उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत आभार।
प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा हुई है आदरणीय सत्विन्द्र जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर जी।बहुत मार्मिक और हृदय स्पर्शी लघुकथा।विदेश में आधे से ज्यादा लोगों का यही हाल है।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी,सादर वन्दन! हौंसलाफ़ज़ाई के लिए सादर हार्दिक आभार
आदरणीय महेंद्र कुमार जी,सादर नमन। उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार।
सुंदर अंत वाली इस कथा के लिए. बधाई आदरणीय सतविंदर राणा जी
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय सर,सादर अभिनन्दन। आपको प्रयास पसन्द आया,यह सार्थक हुआ। सादर आभार
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