ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)
मेरे हक़ में जो फ़ैसला लाया
नामे आमाल का लिखा लाया
मैं तेरे दर पे और क्या लाया
लब पे बस हरफे मुददआ लाया
इतनी ताक़त कहाँ जो हम आते
सामने तेरे हौसला लाया
जो तेरा ग़म है मेरे सीने में
मेरे जीने का आसरा लाया
ज़ुल्म सहता रहा ज़माने के
लब पे न हरफे बददुआ लाया
डूबते किस तरह समंदर में
न ख़ुदा जब मुझे बचा लाया
मुझको उम्मीद कुछ न थी जिससे
बस वही दर्द कुछ सिवा लाया
रिज़क देता है जब ख़ुदा सबको
क्यूँ न महमान को मना लाया
अच्छा चलते हैं फीअमान अल्लाह
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
यूँ तो जुगनू बहुत थे "गुलशन" में
हां मगर रोशनी दीया लाया
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Mohd Nayab
ज़ख़्म खा कर ना पूछ क्या लाया
जब कोई जानो दिल बचा लाया
उन का कहना था मैं ना आऊंगा
इश्क़ लेकिन मेरा बुला लाया
भूंख इतनी बढ़ी की वो मज़लूम
कुछ सज़र से समर हिला लाया
जा रहा है वो अलविदा कह कर
जो था जीने का फलसफा लाया
झूठ मकरो फरेब दुनिया के
ख्वाहिशें आदमी भी क्या लाया
ज़ुल्म इतना हुआ की वो मज़लूम
लब पे शिक़वा ना कुछ गिला लाया
जा रहे हैं तुम्हारी महफ़िल से
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
मेरे हक़ मे वो आज भी "नायाब"
कुछ दुआओं से भी सिवा लाया
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Saurabh Pandey
गाँव जा कर ज़वाब क्या लाया ?
जी रही लाश थी, उठा लाया !
उन उमीदों भरे ओसारों को
पत्थरों के मकां दिखा लाया ॥
’तू मुझे माफ़ कर, अग़र चाहे..’
कह के संदर्भ फिर बचा लाया ॥
नम निग़ाहों से क्या तसल्ली दी
उम्र भर की सज़ा लिखा लाया ॥
सामयिन फिर सहम लगे जुटने
शेख फ़रमान फिर नया लाया ॥
हसरतें रह गयीं कई.. लेकिन
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया ॥
ज़िन्दग़ी फिर रही न वो ’सौरभ’
प्रश्न थे मौन जो जुटा लाया ॥
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Tilak Raj Kapoor
१.
नींद से क्यूँ हमें उठा लाया।
सोचकर क्या नया खुदा लाया
जि़न्देगी में हसीन लम्हों के
ख़्वाब नादान दिल सजा लाया।
चाह लेकर चला मुहब्बलत की
दर्द का आस्माँ उठा लाया।
दर्द की इंतिहा निभाने को
सब्र बेइंतिहा लिखा लाया।
जानता था ज़रूरतें मेरी
वो मेरे वास्ते दुआ लाया।
रूह अनहद में खो गयी मेरी
मस्तियॉं जब मेरा पिया लाया।
खुल गये बादबाँ, खुदा हाफि़ज़
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।
२.
सूर्य कुहसार से उठा लाया
जीस्त में दिन नया लिखा लाया।
धूप पगडंडियों पे पसरी थी
छॉंव मैं घर तलक बचा लाया।
दूब की नर्म-नर्म चादर से
ओस की बूँद इक उठा लाया।
चॉंद बादल में मुस्कराता है
नींद किसकी कहो चुरा लाया।
कोई शिकवा गिला नहीं तुमसे
वक्त बदली हुई हवा लाया।
कल्पना ने उड़ान मॉंगी थी
ईद के चॉंद तक उड़ा लाया।
झील भरती दिखी तो वो बोला
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया ।
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Dinesh Kumar khurshid
उसकी खुश्बू को तू उड़ा लाया
क्या मरज़ की मेरे दवा लाया
इक तख़य्युल ही बावे अक़्दस का
शअफ-ए-हिज्र की हवा लाया
चेहरे रोशन हुए की महफ़िल में
वह नए रंग की ज़िया लाया
गुन्चा गुन्चा महक उठा दिल का
जाने किस बाग की हवा लाया
उसके होठो पे अब सदाक़त है
किन बुजर्गों से तू मिला लाया
खैर है ज़ुल्मतों की बस्ती से
अपना ईमान मैं बचा लाया
राह पुरनूर हो गयी मेरी
जब वह जलता हुआ दिया लाया
जा रहे है वतन की सरहद पर
फिर मिलेंगे अगर खुद लाया
है उम्मीदों की रोशनी घर घर
देख 'खुर्शीद' आज क्या लाया
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अरुन शर्मा 'अनन्त'
१.
प्यार का रोग दिल लगा लाया,
दर्द तकलीफ भी बढ़ा लाया,
याद में डूब मैं सनम खुद को,
रात भर नींद में जगा लाया,
तुम ही से जिंदगी दिवाने की,
साथ मरने तलक लिखा लाया,
चाँद तारों के शहर में तुमसे,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया,
तेरी अँखियों से लूट कर काजल,
मेघा घनघोर है घटा लाया.
२.
जुल्म धोखाधड़ी नशा लाया,
वक्त बर्बादियाँ उठा लाया,
तीर तलवार से नज़र पैनी,
भीड़ में भेड़िया लगा लाया,
दौर बदला बदल गई दुनिया,
भेषभूषा अलग बना लाया,
मान सम्मान भूल कर बेटा,
शीश माँ बाप का झुका लाया,
बाद बरसों इसी मुहल्ले में
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया,
शबनमी होंठों का नशा खुद को,
रूह की चाह तक पिला लाया..
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कल्पना रामानी
उनका ख़त आज डाकिया लाया।
फिर से भूला, हुआ पता लाया।
बाद मुद्दत के गुल खिला, फिर से,
फिर से सावन, घनी घटा, लाया।
चाँद मुझको, दिखा अमावस में,
चाँदनी को भी सँग छिपा लाया।
छा गए रंग फिर उमंगों के,
शुष्क मौसम, नई हवा लाया।
जाते-जाते वे कह गए थे मुझे,
‘फिर मिलेंगे, अगर खुदा लाया’।
मेरा हर शे’र गूँजकर शायद,
उनको इक बार फिर बुला लाया।
दर्द इतना कभी न था दिल में,
दिल कहाँ से ये ‘कल्पना’ लाया।
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बृजेश नीरज
१.
इस जगह कौन रास्ता लाया
भीड़ में क्यूं मुझे लिवा लाया
बेख़बर ढूंढते किरन कोई
रात की, दिन ये इंतिहा लाया
गांव की हो गयी गली सूनी
शहर की भीड़ जब बुला लाया
लापता मंजिलें लगीं होने
कौन सा ख्वाब मैं उठा लाया
अब चलूं रूक गया बहुत दिन मैं
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
२.
खूब धन देखिए कमा लाया
साथ कितनी वो बद्दुआ लाया
काफिले छूट ही गए पीछे
कर्म तेरा वो जलजला लाया
फूस बिस्तर बना के लेटे थे
पास में चूल्हा जला लाया
धूप का साथ काफिला तेरे
पेड़ सारे तो तू कटा लाया
पीर पर्वत हुई तो क्या गम है
ढूंढकर फिर नई दवा लाया
बुलबुले सी ये जिंदगी ढोते
प्यार का कौन सिलसिला लाया
चांद उतरा जमीं कि तू आया
इस उमस में भी तू सबा लाया
इक सुबह की तलाश है जारी
रात ढेरों दिये सजा लाया
वो शमा जल के बुझ गयी होगी
वक्त ऐसी यहां हवा लाया
अब यहां रूक के हम करेंगे क्या
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
राम को अब किधर भला ढूंढूं
दिल में केवट उसे छुपा लाया
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Abhinav Arun
१.
ये तरक्की के नाम क्या लाया,
खूबसूरत सा झुनझुना लाया ।
थीं नुमाइश में सूलियां सस्तीं ,
एक अपने लिए उठा लाया ।
छोड़ माँ बाप की चरण रज क्यों,
कैसिटों में भरी दुआ लाया ।
शह्र-ए-उर्दू में खूब घूमा मैं,
गालिबो मीर का पता लाया ।
हमको टी.वी. से ये शिकायत है,
साथ अपने ये क्या हवा लाया ।
दोस्तों से मिलूँ ये मन था पर ,
फोन बेटा मेरा उठा लाया ।
तकलियाँ नाचती मिलीं मुझको ,
प्रेम का सूत मैं कता लाया ।
दिल को गहरा सुकून मिलता है
माँ को मंदिर तलक घुमा लाया ।
ओबीओ वालों चलिए हल्द्वानी
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया ।
२.
कोई दौलत न कुछ कमा लाया ,
पाँव माँ के छुए दुआ लाया ।
जब कभी मैं मिला मुझे तनहा ,
बाग़ से तितलियाँ उड़ा लाया ।
शह्र में कुछ न था कमाने को ,
गाँव की मस्तियाँ लुटा लाया ।
भीड़ में सिर्फ थे तमाशाई ,
लाश अपनी मैं खुद उठा लाया ।
शील आदर्श और मर्यादा
छोड़ , देने मुझे दगा लाया ।
आज नीलाम हो रहे बापू ,
या खुदा वक़्त क्या बुरा लाया ।
बागबाँ की नज़र गुलों पर थी ,
खुशबुओं को पवन उड़ा लाया ।
फूल टूटे तो तितलियों से कहा ,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया ।
इश्क रूहानियत का है जज्बा ,
इश्क अल्लाह का पता लाया ।
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Kewal Prasad
अब कयामत भुला वफा लाया।
सब कहेंगे गजब अदा लाया।।
जब भी रहमत समझ जला शम्मा।
आंख का-जल हुआ दुआ लाया।।
हम न भूले कभी अदावत को।
जब कभी भी ये गमजदा लाया।।
तेरी कद से बड़ी जवानी है।
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।।
तेरी चौखट सुबह मिले ‘सत्यम‘।
शाम ढलते दगा कजा लाया।।
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arun kumar nigam
१.
मुझसे मत पूछिये कि क्या लाया
पालकी प्यार की सजा लाया |
जागता है मेरी तरह अब वो
नींद आँखों से ही चुरा लाया |
उसने पूछा कि चाँद कैसा है
आइना बस उसे दिखा लाया |
स्वर्ग होता कहाँ , बताना था
गाँव अपना जरा घुमा लाया |
गम नहीं है हमें जुदाई का
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया |
२.
सिर्फ पानी का बुलबुला लाया
इस से ज्यादा बता दे क्या लाया |
लूटता ही रहा जमाने को
नाम कितना अरे कमा लाया |
कोसता है किसे बुढ़ापे में
वक़्त तूने ही खुद बुरा लाया |
तू अकेला चला जमाने से
क्यों नहीं संग काफिला लाया |
लोग कह ना सके तुझे दिल से
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया |
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HAFIZ MASOOD MAHMUDABADI
कैसा मुनसिफ़ ये फ़ैसला लाया
हक़ मे मज़लूम के सज़ा लाया
गर्क दरिया में हो गया कोई
तह से मोती कोई उठा लाया
दोस्त अपना समझ रहा था जिसे
खनज़रे ज़ुल्म वो छुपा लाया
कोर चश्मो की आग बस्ती में
बेंचने कौन आईना लाया
हार बैठा है ज़िंदगी कोई
कोई जीने का हौसला लाया
छोड़ कर जा रहे तो हैं लेकिन
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
मेरी परवाज़ का हुनर "मसऊद"
मेरे अश्आर मे जिला लाया
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गीतिका 'वेदिका'
तूने पूछा था संग क्या लाया
ले मेरा दिल तुझे वफा लाया
हम तो जीते ही रहते जकडन में
कौन ये बेडिया छुड़ा लाया
घाव नासूर बनता पहले के
मेरा दिलदार इक दवा लाया
है बिछड़ना कि मेरी मजबूरी
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
बीच अपने नहीं बचा कुछ भी
क्यू तू दिलदार बेवफ़ा लाया
गीत ये वेदना भरा साथी
नाम ये वेदिका रखा लाया
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shashi purwar
१.
दिल का पैगाम साहिबा लाया
छंद भावो के फिर सजा लाया।
बात दिल की कही अदा से यूँ
प्यार उनका मुझे लुभा लाया।
आज कैसी हवा चली मन में
तार दिल में कई बजा लाया।
नियति का खेल जब करे सृजन
ये कहाँ प्यार में सजा लाया।
सात वचनों जुडा था ये बंधन
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।
प्यार मरता नहीं कभी दिल में
याद तेरी सदा जिला लाया।
धूप में जल रहे ज़माने की
याद उनकी नर्म दवा लाया।
कल्पना में सदा रहोगे तुम
रात ये चाँद से हवा लाया।
आज जीने का रास्ता देखा
चाँद उनसे मुझे मिला लाया।
२.
फूल राहों खिला उठा लाया
नाम अपना दिया जिला लाया
भीड़ जलने लगी बिना कारण
बात काँटों भरी विदा लाया
लुट रही थी शमा तमस में फिर
रौशनी का दिया बना लाया
शर्म आती नहीं लुटेरों को
पाठ हित का उसे पढ़ा लाया
बैर की आग जब जली दिल में
आज घर वो अपना जला लाया
गिर गया मनुज आज फिर कितना
नार को कोख में मिटा लाया
प्यार से सींचा फिर जिसे मैंने
उसका घर आज मै बसा लाया
खुश रहे वो सदा दुआ मेरी
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया .
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Ashok Kumar Raktale
कौन बोलो तुम्हे बुला लाया |
घर दुआरा सभी छुडा लाया ||
है बडा शोर जानता हूँ मैं |
जान लो तुम जहाँ भुला लाया ||
लोग बदनाम से यहाँ सारे |
जानकर भी तुम्हे उठा लाया ||
भूल जाना मुझे मिला था मैं |
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया ||
जानते हो ‘अशोक ‘खुश क्यों है |
जान उसकी वही बचा लाया ||
मांग कर भी हुई न थी हासिल |
मौत लेकर कोई पता लाया ||
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आशीष नैथानी 'सलिल'
शहर हर रोज हादिसा लाया
जान अपनी मैं फिर बचा लाया ॥
मुफलिसी में कभी बिके कंगन
आज बाजार से उठा लाया ||
ख़त लिखा था तुम्हें जवानी में
कल जवाब उसका डाकिया लाया ॥
और थोड़ी सी बढ़ गयी साँसें
एक बच्चे को मैं घुमा लाया ||
देखकर फेर दी नजर उसने
वक़्त कैसा ये, फासला लाया ||
लाख कोशिश करो बिछुड़ने की
"फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया" ||
रात चुप थी, सितारे भी गुमशुम
चाँद जलती हुई शमा लाया ॥
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मोहन बेगोवाल
जीत कर वो क्या नशा लाया
भीड़ में तन्हा की सजा लाया
राह में जो मिटा गया मुझको
याद में फिर सदा बुला लाया
वो न मेरा, केसे कहूँ उसको
दिल के बीमार की दवा लाया
ऐ ! जनाजे जरा बता मुझको
तुम जलाने मेरी खता लाया
पाँव छुए माँ सदा दुआ निकली
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
घर बगीची में फूल थे उसके ,
हाथ पत्थर मगर उठा लाया |
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ram shiromani pathak
प्यार उनका मुझे बुला लाया
साथ जीने का मन बना लाया
बेच डाला है रूह को अपने
रोग चाहत का यूँ लगा लाया !
आंधियों से कभी ना समझौता
आग मै अब तलक बचा लाया !
है मुझे इंतज़ार तुम्हारा
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया !
तीरगी से ना डरा करो भाई
देख जुगनू ने भी डरा लाया !
भूख से रो रहा था जो बच्चा
आज मैंने उसे खिला लाया !
मार पत्थर की पड़ रही फिर भी
देख लो अपना सर बचा लाया!
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SANDEEP KUMAR PATEL
1.
गाँव की ख़ाक जो उठा लाया
वो मेरे वास्ते दवा लाया
वो लुटाने चला था दिल लेकिन
और कितने ही दिल चुरा लाया
दिल लगाना ही खेल उसका है
क्या गज़ब हौसला लिखा लाया
आज पतझड़ है कल बहारों में
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
जालसाजी फरेब बेअदबी
शह्र से किसलिये कमा लाया
पत्थरों के शहर से आईना भी
बुत बने रहने की अदा लाया
गर्दिशें रूठने लगीं हमसे
“दीप” तू रौशनी ये क्या लाया
2.
उसको आँखों में फिर बसा लाया
जख्म सूखा था फिर हरा लाया
दर्दे दिल, इंतज़ार, बेदारी
इश्क कैसा ये जलजला लाया
जब यकीं था तो कुर्बतों में रहे
शक तो बस फासला खला लाया
गम में आया शरीक होने को
साथ में काफिला बड़ा लाया
दोस्त मत हो उदास जाते वख्त
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
है पुराना ख्याल ये लेकिन
मैं अभी काफिया नया लाया
न कभी शह्र ही घुमाया जिसे
ख्वाब में चाँद तक घुमा लाया
आज खाना मिला था कूड़े में
जिससे आधा वो घर बचा लाया
जब चकाचौंध जुगनुओं से है
“दीप” ये कौन फिर जला लाया
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Shijju S.
आशिक़ी के तुफ़ैल ये क्या लाया
सोज़ को ताबे दिल बना लाया
राह तारीक रात काली थी
हौसलों से जली शमा लाया
हुस्न अफ़्ज़ाई के लिये तेरी
इश्क से पैरहन सजा लाया
ज़िन्दगी की तलाश जाँ को थी
जाँसिपार खुद को बना लाया
आखिरी शाम देख लूँ, तुझको
इसलिये मैं नज़र बचा लाया
शाइरों के जहाँ में बेसाख़्ता
खींच के ये मुशायरा लाया
जा-ए वस्लो फ़िराक़ में ''तनहा''
''फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया''
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Satyanarayan Shivram Singh
यार फिर आज दिल चुरा लाया।
खास अपना समझ उठा लाया।
यार की थी मगर खता इतनी।
प्यार का मर्ज दिल लगा लाया।
रंज बाकी नहीं बचा दिल में
सादगी से उसे लुभा लाया।
नर्म आँखें यही दुवा चाहें।
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।
बात दिल की मगर जुबां बोले।
प्यार का आसरा जिला लाया।
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sanju singh
मेरे महबूब तू ये क्या लाया ,
दिले -बीमार की दवा लाया .
उसे तो बख्श दी जहाने-ख़ुशी
मेरी किस्मत में क्यूँ फ़ना लाया
शाम ढलते ही दिल उदास हुआ ,
मेरे दिल क्यूँ ये सिलसिला लाया
.
चाँद फिर उग रहा है आँगन में ,
मेरे घर में कोई वफ़ा लाया .
राह तकती रही मैं मरने तक ,
फिर वही कब्र पे अना लाया .
हमने भी कह दिया ख़ुदा-हाफिज़,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया .
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VISHAAL CHARCHCHIT
ये मेरे मर्ज की दवा लाया
वो कई मुद्दई बुला लाया
हमने सोचा न था कभी इतना
जितने तोहफे तू ये उठा लाया
ख्वाब था तुझसे रोशनी होगी
तू तो आया दिया बुझा लाया
खैर अब जा रहे यहां से हम
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
चैन अब भी नहीं तुम्हें चर्चित
दिल ये कितना तुम्हें घुमा लाया
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Dr.Prachi Singh .
याद का अनथका सिला लाया
प्यार तेरा मुझे कहाँ लाया
तोहफ़े रौंदते हैं रिश्तों को
संग लब पे तभी दुआ लाया
वो निगाहों से क़त्ल करने की
आज अपनी वही अदा लाया
हो गये अजनबी यहाँ खुद से
वक़्त टूटा सा आईना लाया
रुखसती यों हुई है मर्जी से
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया
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12 बजे मुशायरा बंद और 12.02 पर संग्रह, वाह, यह तो रिकॉर्ड है भाई, बधाई स्वीकार कीजिये ।
waah iski pratiksha sadaiv rahati hai , ek saath sabhi gajalo ko padhna sukhad anubhuti hai
, laal line dikh gayi , sudharne ke baad bhi post nahi kar saki thi likhte likhte hi 12 baj gaye , par in line ki vajal se swayam ka aklan bhi ho jaata hai aur aage ke liye satarkata , abhaar aur badhai , har baar mushayre ki pratiksha rahai hai
आश्चर्यजनक फुर्ती, बधाई........
माननीय गुनिजन
यह टंकित पंक्तियों को सुधार कर दिया है दूसरी में टंकण ही गलत हो गया था , मार्गदर्शन प्रदान करें , इससे अच्छा रिजल्ट और कहाँ मिलेगा सिखने का .
१.
दिल का पैगाम साहिबा लाया
छंद भावो के फिर सजा लाया।
बात दिल की कही अदा से यूँ
प्यार उनका मुझे लुभा लाया।
आज कैसी हवा चली मन में
तार दिल में कई बजा लाया।
दैव का खेल जब करे खेला .... यहाँ नियति था दैव जी ,जगह वह शब्द गलत था नियति २ १ होना चाहिए यहाँ भी बताएं
ये कहाँ प्यार में सजा लाया।
सात वचनों जुडा था ये बंधन
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।
प्यार मरता नहीं कभी दिल में
याद तेरी सदा जिला लाया।
धूप में जल रहे ज़माने की
याद उनकी नरम दवा लाया।। इस पंक्ति में शायद नर्म लिया था वह गलत हो गया था , कृपया मार्गदर्शन करें
कल्पना में सदा रहोगे तुम
रात ये चाँद से हवा लाया।
आज जीने का रास्ता देखा
चाँद उनसे मुझे मिला लाया।
२.
फूल राहों खिला उठा लाया
नाम अपना दिया जिला लाया
भीड़ जलने लगी बिना कारण
बात काँटों भरी विदा लाया
लुट रही थी शमा तमस में फिर
रौशनी का दिया बना लाया
शर्म आती नहीं लुटेरों को
पाठ हित का उसे पढ़ा लाया
बैर की आग जब जली दिल में
आज घर अपना वो जला लाया
गिर गया ये मानव यहाँ कितना ............ इस पंक्ति को भी बदल दिया है , शब्दों का फेर हो गया था . अब आप मार्गदर्शन प्रदान करें .
नार को कोख में मिटा लाया
प्यार से सींचा फिर जिसे मैंने
उसका घर आज मै बसा लाया
खुश रहे वो सदा दुआ मेरी
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया .
आदरणीया शशि जी आपकी दो ग़ज़लों में चार मिसरे बहर से खारिज थे जिनमे से आपने शुरू के तीन तो बड़ी कामयाबी से दुरुस्त कर लिए हैं (हालांकि " दैव का खेल जब करे खेला" में तकबुले रदीफ़ का ऐब आ रहा है)...चौथा मिसरा अभी भी बे बहर है
गिर गया मनुज आज फिर कितना
को
गिर गया ये मानव यहाँ कितना
करने की बजाय साधारण सा हेर फेर करना था
"गिर गया आज फिर मनुज कितना"
करने मात्र से यह मिसरा भी बहर में आ जाएगा|
सादर
तहे दिल से आभार राणा जी यह हेर फेर ध्यान में नहीं आया , व्यस्तता के चलते जल्दी जल्दी यह कार्य कर रही थी .मार्गदर्शन हेतु आभार , ध्यान रखेंगे आगे से ऐसी गलती न हो . गजल की बारीकियों पर ध्यान देने का प्रयत्न कर रही हूँ . स्नेह बनाये रखें , सादर
राणा जी आपने दैव सम्बंधित दोष बताया
" दैव का खेल जब करे खेला" में तकबुले रदीफ़ का ऐब आ रहा है। थोडा खुलकर हमें बताये तकबुले
रफिद ....क्या है ,यह दोष , जिससे हम उसे सुधर सकें और आगे से ध्यान रख सकें .
सादर
तक़बुले रदीफ़ के बारे में सरल शब्दों में कहा जाय मतला या हुस्ने मतला के अलावे रदीफ़ के अखिरी शब्द के आखरी अक्ष्रर के स्वर की मात्रा और उला मिसरा के आखिरी शब्द के आखिरी अक्षर के स्वर की मात्रा समान हो तो यह दोष होता है. क्योंकि इससे उला में समान रदीफ़ के होने का भ्रम होता है.
यही कारण है कि उला के आखिरी शब्द के आखिरी अक्षर की मात्रा ’लाया’ के या के आ की मात्रा की तरह हो तो यह दोष हुआ कहा गया है
सादर
जी शुक्रिया सौरभ जी , मैंने पहले इसे परिवर्तित किया था , परन्तु दैवका खेला जब करे सृजन ... क्या यह सही रहेगा ?
क्यूंकि शुरुआत नियति से की थी , नियति का खेला होता है , पर यदि पूर्ण मिस्र परिवर्तित किया तो हमें पूरा शेर ही बदलना पड़ेगा जो गजल के अनुसार ठीक नहीं होगा , क्या खेला की जहग सृजन ले सकते है परन्तु मुझे लय में कमी लग रही है , क्या कर सकते है
shukriya bagi ji
ज्ञानी गुणीजन कृपया बतायें....................
धूप में जल रहे जमाने की
याद उनकी नरम दवा लाया
को क्या
धूप में जल रहे जमाने में
ख्याल उनका हसीं दवा लाया
किया जा सकता है ?
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