आदरणीय साथिओ,
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रचना पर निरपेक्ष टिप्पणी देने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी ।
कथानक के स्तर तक तो रचना सही लग रही है, लेकिन कथानक की ट्रीटमेंट उस तरीके से नहीं हुई जिस तरह होनी चाहिए थी इस कारण रचना प्रभावित नहीं कर रही है आ० मोहम्मद आरिफ़ जी. यदि इस कथा में ज़हरीले साँप/बिच्छू आदि के ज़हरीला स्वभाव "त्यागने" और मनुष्य का ज़हरीला स्वभाव "अपनाने" जैसी कोई बात कही जाती तो शायद रचना प्रभावशाली बन सकती है. बहरहाल आयोजन में सहभगिता हेतु बधाई स्वीकार करें.
रचना पर बेबाक टिप्पणी पाकर काफी संबल मिला । आगामी बेहतर लिखने की कोशिश करूँगा । हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ।
भाई मोहम्मद आरिफ ही विषय को परिभाषित करने का प्रयास करती इस रचना के लिए बधाई देने के साथ एक बात मैं अवश्य कहना चाहूँगा कि 'मनुष्य' को सांप और बिच्छू के सम्मुख विषेला बताने का कथ्य कुछ चिर परिचित सा लगता है.....नया तो कुछ तब होता कि कथ्य में सांप द्वारा मनुष्य को काटने पर सांप के ही मर जाने पर बिच्छू का हौसला पस्त होते दिखाया जाता. सादर भाई जी.
आपकी सलाह युक्त टिप्पणी सर आँखों पर । हार्दिक आभार आदरणीय वीरेंद्र मेहता जी ।
बहुत उम्दा सलाह दी आपने।सादर
नमस्ते आ मोहम्मद आरिफ साहब मैं भी आ सुनील भैया से सहमत हूँ| सादर |
आपकी टिप्पणी सर आँखों पर । हार्दिक आभार आदरणीया कल्पना भट्ट जी ।
शीर्षक उम्दा है यदि साँप ,बिच्छु के विष से प्रेरणा लेकर इंसान कुछ सीख पा लेता तो कथा के जरिये सार्थक संदेश पहुँचता ।फिर भी आपने प्रयास किया है बधाई आद० आरिफ़ मोहम्मद खान जी ।
आपकी टिप्पणी सर आँखों पर । हार्दिक आभार आदरणीया नीता कसार जी ।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,प्रदत्त विषय को अपने तरीक़े से शाब्दिक करती अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई,गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।
आपकी टिप्पणी से संबल मिला । हार्दिक आभार आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
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