आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , सुन्दर , सामयिक प्रस्तुति , बधाई, सादर।
रचना पर समय देकर अनुमोदन और प्रोत्साहन के लिये हार्दिक धन्यवाद और आभार आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
इस लघुकथा के संबंध में कुछ विचार साझा करना चाहूँगा:-
(1) इस लघुकथा को हटाने की कोई ज़रूरत नहीं है ।
(2) कथानक बहुत ही सशक्त और प्रासंगिक है ।
(3) संवाद , भाषा-शैली और पात्रों का चयन बहुत ही अच्छा ।
(4) ज्वलंता का बेहतरीन उदाहरण ।
(5) कथा अपने मक़सद में पूरी तरह सफल ।
(6) लाजवाब.और कसावट लिए संवादों में प्रवाह ।
(7) आपकी पिछली लघुकथाओं की तरह कोई हड़बड़ाहट नज़र नहीं आती ।
. हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
वास्तव में आज धर्म/मजहब/मत/सम्प्रदाय आस्था से अधिक भय के द्वार बना दिए गए हैं. उसपर भी असली भय खैरख्वाहो से ही है. उन्ही को खुश करने में सब लगे हैं.
लोकतंत्र का मजाक बनाया जा रहा है. बहुत ही बढ़िया. हर पक्ष स्पष्ट.
मेरी प्रविष्टि पर इतना समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद और आभार जनाब अजय गुप्ता साहिब।
मूर्तियों को प्रतीक बना कटु व्यंग्य किया है आपने कथा के जरिये ।बधाई कथा के लिये आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।
बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरमा नीता कसार साहिबा।
मूर्तियों पर चल रही राजनीति पर सटीक कटाक्ष है | अपना वोट बैंक बचाने के लिए नेता मूर्ती मूर्ती खेलते हैं अथार्थ वोट बैंक खोने का डर पर ये भाव कुछ और उभर कर आना था हार्दिक बधाई इस सृजन पर आपको
शुक्रिया आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी । आपने एक पक्ष पर तो ग़ौर किया है। रचना में और भी बहुत कुछ उभारने की कोशिश की गई थी, कृपया एक बार और पढ़कर ग़ौर फ़रमाइयेगा। हो सकता है कि मैं सफल न हो सका होऊं।
मूर्तियों की राजनीति पर अच्छा व्यंग्य किया है आपने आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. इस बढ़िया लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. //मंदिर- मस्जिद तो सब लोग अब जाते नहीं! केवल देवी-देवताओं को मानते हैं और उन्हीं से डरते हैं!// "लोग केवल देवी-देवताओं को मानते हैं और उन्हीं से डरते हैं!"
2. //"उस मुख्य चौराहे पर तो या तो कुंवर जी की या उनके पिताजी की नवीनतम भव्य अत्याधुनिक मूर्ति ही लगवायी जायेगी क्योंकि उनके दादाजी तो पब्लिक में अब प्रासंगिक नहीं रहे! शेष में हमारे मशहूर पार्षदों, विधायकों वग़ैरह की!"// ""उस मुख्य चौराहे पर कुंवर जी की या उनके पिताजी की नवीनतम, भव्य व अत्याधुनिक मूर्ति ही लगवायी जायेगी और शेष में हमारे मशहूर पार्षदों तथा विधायकों वग़ैरह की!""
सादर.
इस रचना पर इतना समय देकर विस्तृत मार्गदर्शन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब महेंद्र कुमार साहिब। बोलचाल के संवाद हैं दरअसल।
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