आदरणीय साथिओ,
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ऊँचे लोगों के छोटे समीकरण पर अच्छा प्रकाश डाला है आपने आदरणीय तेज़ वीर सिंह जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
बहुत उम्दा कथ्य भाई तेज वीर सिंह जी। विषय का प्रस्तुतिकरण और निर्वाह दोनों ही आपने सुंदर ढंग से किया हैं। समाज में इतने चालाकी भरे समीकरण भी हो सकते है, ये हैरत की बात है। बरहाल इस रचना के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें भाई जी।
बढ़िया लघुकथा आदरणीय तेज वीर सिंह जी| बड़े लोगों की बड़ी बातें और छोटी हरकते| बधाई स्वीकारें|
समीकरण
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-बाबा ...?
-बोलो।
-पता है?फिर नीतू मीतू को
ढूँढ़ रहा है।
-क्या हुआ,बचवा?
-फूल की सुगंध से मन भर गया,ऐसा लगता है।
-ऐं?
-हाँ बाबा।लगता है,मदहोशी उतरने लगी है।उजाला चाहता है,फिर से।
-रोशनी का स्रोत तो गँवा चुका है। अब क्या मिलेगा?
-उखड़े मुर्दों(मुद्दों)को दफ़नाने की कोशिश में है।
-लालटेन जलायेगा क्या?
-उसके तीर से घायल लालटेन जल-बुझ रही है।उसने हाल-चाल लेना शुरू कर दिया है।
-हेहेहे!तीर तो घाव ही देगा न; चाहे लालटेन को,या फूल को।
-विश्वसनीयता जैसे लफ्ज तिरोहित हो चुके हैं ऐसे लोगों के लिए।
-अब यह महज लफ्ज है,अर्थहीन-सा बस।
-वही तो बाबा।पर जनता क्या करे?
-वो तो जो कर सकती है,कर ही रही है।जात-धरम के नाम पर वोट देना उसका ध्येय रह गया है।और क्या?
-बाबा।इसको समीकरण कहा जाता है,सत्ता का समीकरण।
-हाहाहा!वही तो मैं भी कहूँ।समीकरण में अंक दायें-बायें होते ही रहते हैं।
"मौलिक व अप्र काशित"
बहुत खूब , इशारों ही इशारों ने आपने सारे समीकरणों के राज़ खोल दिए। बधाई।
शुक्रिया जी।
सत्ता के समीकरणों पर अच्छी लघुकथा रचित हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय मनन सिंह जी ।
आपका आभार आदरणीया।
सांकेतिक शब्दों द्वारा सत्ता के गलियारे की गाथा उजागर करती लघुकथा,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी.
आभार आदरणीया
भाव तो समझ में आ रहे हैं लेकिन थोड़ी और स्पष्ट होनी चाहिए थी यह रचना. बहरहाल बधाई आपको आ मनन कुमार सिंह जी
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