आदरणीय साथिओ,
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लघुकथा अच्छी हुई है भाई उस्मानी जी, बधाई प्रेषित है। लेकिन मुझे लगता है कि इसमें अभी सम्पादन की काफी गुंजाइश है (कुछेक पंक्तियाँ निहायत ग़ैर-ज़रूरी हैं) बहरहाल इस सुंदर लघुकथा पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
रचना पर समय देकर मार्गदर्शन सहित हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर साहिब। कुछ शब्दों के उपयोग पात्रा के बचपन व किशोरावस्था से युवावस्था तक का शब्दचित्र पेश करने व समसामयिक परिदृश्य चित्रण करने के लिये प्रतीकात्मक रूप से करने की कोशिश की गई थी। सादर।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
मेरी इस प्रविष्टि पर अपना क़ीमती समय देकर इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से
बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब।
लघुकथा का विषय बढ़िया है भाई शहजाद उस्म्नानी जी, लेकिन कुछ जगह पर रचना असहज करती है, जिसका जिक्र भाई विनय कुमार जी ने भी किया है. जैसे 'जवान होती बेहद खूबसूरत बिटिया'. बरहाल रचना विषय के अनुरूप होने के साथ उम्दा बनी है जिसे कुछ सम्पादन से और बेहतर बना सकते है आप. मेरी ओर से आपको हार्दिक बधाई प्रेषित है उस्मानी भाई...
आदरणीय लघुकथा की पृष्ठभूमि का चयन अच्छा लगा। हमें लगता है कि समाज में आपसी सद्भाव, एकता, भाईचारे के लिए इस प्रकार के रिश्तों पर और भी अधिक लिखने और पढ़ाने की आवश्यकता है ताकि लोगों की समझ विकसित हो और समाज में सौहार्द एवं प्रेम का वातावरण बना रहे। इस गोष्ठी में हमने भी लिखने की कोशिश की है कृपया अपने विचारों से अवगत अवश्य कराईयेगा ताकि हम जरूरी सुधार कर सकें।
आज व्यस्तता के कारण गोष्ठी में आज.की शेष रचनाओं का अध्ययन कर लाभान्वित न हो सका। अभी समय मिला है। हौसला अफज़ाई हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब आशीष श्रीवास्तव जी।
किसी का एहसान चुकाने के लिए कुछ भी तो नहीं किया जा सकता। इस सन्देश को देती बढ़िया लघुकथा है आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी। हाँ, कुछ शब्दों से अवश्य बचा जा सकता है। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
अपनी राय से अवगत करा कर प्रोत्साहित करने के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब महेंद्र कुमार साहिब। शब्दों संबंधित अपनी बात उपरोक्त टिप्पणियों में कह चुका हूँ।सादर।
एक अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय उस्मानी जी, पर कुछ ज्यादा विस्तार हुआ है और भाषा के प्रयोग पर कहीं कहीं नियंत्रण किया जा सकता था, भाषा का चुनाव सही हो तो कथा और उभर कर आएगी ऐसा मेरा मत है| सादर|
अपनी राय से अवगत करा कर प्रोत्साहित करने के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा। शब्दों संबंधित अपनी बात उपरोक्त टिप्पणियों में कह चुका हूँ।सादर।
" सुख - शांति "
( लघुकथा )
आज फिर अंजलि आफिस से आते - आते लेट हो गई थी।
लिफ़्ट में क़दम रखते ही सासू माँ और बच्चों के चेहरे नज़र के सामने झूम गए।
कितनी बेक़रारी से इन्तिज़ार कर रहे होंगे ?
ऑफिस से काम्प्लेक्स तक का सफर इतना दूभर नहीं था जितना ये लिफ्ट का एक मिनट का सफर ।
फ्लेट का दरवाज़ा भी जैसे उसके इन्तिज़ार में ढलका हुआ था।
सहमे - सहमे क़दमों से जैसे ही दाखिल हुई सबकी सवालिया नज़रों का सामना था।
बच्चे , अंकुर और सौरवी भी अपने कॉलेज की पढ़ाई में व्यस्तता के कारण घर के कामों में हाथ नहीं बटा पाते थे।
किसी को कोई सवाल - जवाब किये बिना ड्रेस चेंज कर किचन में चली गई।
फिर क्या था चेहरे पर वही चिर परिचित मुस्कान के साथ चाय नाश्ता हाज़िर था।
बुज़ुर्ग सासू माँ की सेवा , और उनका अनुशासन। पति और बच्चों की ज़रूरतें तो हैं ही ?
ज़िन्दगी इसी तरह एक मशीन बन चुकी थी।
घर के काम निपटाते हुए कभी ऑफिस के लिए लेट हो जाना तो कभी ऑफिस के काम निपटाते हुए घर पहुँचते पहुँचते लेट हो जाना।
और जब सारे काम निपट जाएँ तो फिर अपने कमरे में पहुँचते ही अनुराग की ख़्वाहिशी नज़रों का सामना ... ... ... ?
अनुराग , मैं तो ज़िन्दगी के तमाम अनसुलझे समीकरणों को हल करते करते थक चुकी हूँ ।
मैं ने तो प्रत्येक समीकरण में उपयुक्त मान रख कर उसे हल करने की सदैव कोशिश की है।
लेकिन ... ... ... ?
तो मैं क्या करूँ ? ,... अंजलि।
अब तुम ही बताओ मैं इस अवस्था में माताजी को कहाँ छोड़ कर आऊँ ?
मैं छोड़ने की बात नहीं कर रही।
मैं तो केवल इतना चाहती हूँ कि माता जी को भी हमारी मजबूरियाँ समझना चाहिए।
मैं कितनी बार कह चुका हूँ अंजलि , हम उन्हें समझा नहीं सकते।
" हमें ही , उनके अनुशार ढलना पड़ेगा।"
तो फिर अनुराग मुझसे ये सब नहीं होगा।
अंजलि , " आज जैसे दो टूक कह देना चाहती थी।"
माँ - बाप को ऊँची आवाज़ में बात करते देख ,बच्चे भी कमरे में आ चुके थे।
बेटे को पास खड़ा देख , अनुराग ने हिदायती लहजे में कहा -
बेटे अंकुर , " अगर तुम अपनी ज़िन्दगी में सुख शांति चाहते हो तो हमें कभी अपने साथ मत रखना।"
अनुराग - " आप ये कैसी शिक्षा दे रहे हैं अपने बेटे को ?"
सही तो है अंजलि , मेरी माँ के कारण यदि हमारी ज़िन्दगी नर्क बन चुकी है। तो फिर हमें भी अपने बच्चों की ज़िन्दगी की सुख शांति छीनने का हक़ नहीं है।
ये सब सुनकर अंजलि की आँखों से अविरल आँसू बहने लगे । क्योंकि उसने तो अपने बच्चों के बिना जीने की कल्पना तक नहीं की थी।
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
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