आदरणीय साथिओ,
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कलयुग
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एक था कछुआ , एक था खरगोश जैसा कि आपको पता है । आप कहेंगे इसमें कौन-सी नई बात है । जो कथा आपने पढ़ी-सुनी थी अब उसका कलयुगी संस्करण आया है । तो सुनो , खरगोश ने कछुए से कहा " पिछली बार नींद लगने के कारण मैं हार गया था । लेकिन अब ऐसा नहीं होगा । एक बार फिर रेस हो जाए।" कछुआ राजी हो गया । रेस शुरू हुई । खरगोश पहले तो तेज़ दौड़ा फिर पीछे पलटकर देखा । कछुआ उससे काफी पीछे चल रहा था । वह बहुत खुश हुआ । उसे कछुए को रास्ते से हटाने की तरकीब सूझी । अपने साथी कुत्ते से कहकर कछुए को अगवा करवा दिया। अब खरगोश मेले में पहुँचकर अपने साथियों को बड़ा प्रेरक भाषण दे रहा था -" साथियों , ज़िंदगी एक रेस है । इस रेस में वही जीतते हैं जो तेज़ दौड़ते हैं । धीमे चलने वाले कुचल दिए जाते हैं ........।" बस इतना कहना ही था कि पीछे से भेड़िया आया और खरगोश को दबोच ले गया । एकांत में जाकर नोच-नोचकर खाने खाने लगा और बीच-बीच में कहता भी जा रहा था-" स्साला ! आया बड़ा तेज़ दौड़ने वाला और धीमे चलने वालों को कुचलने वाला । बच्चू ! ये कलयुग है , यहाँ कमज़ोर हो या बलवान हरएक अपनी दृष्टि गढ़ाए बैठा है । कोई कैसे आगे बढ़ जाए । "
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
आदाब। सुस्वागतम अभिनंदन। बेहतरीन आग़ाज़ बेहतरीन समसामयिक कटाक्षपूर्ण, विचारोत्तेजक मानवेतर लघुकथा के साथ। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब।
शीर्षक कोई बेहतरीन भी सोचा जा सकता है। मेरे विचार से लोकप्रिय संदर्भित कथा के लिए इन वाक्यों की आवश्यकता नहीं है यहां -
//खरगोश जैसा कि आपको पता है । आप कहेंगे इसमें कौन-सी नई बात है । जो कथा आपने पढ़ी-सुनी थी अब उसका कलयुगी संस्करण आया है । तो सुनो , // सादर
हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, इस शानदार लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई. आरम्भिक तीन वाक्यों के बिना भी बाबत उम्दा कथा हैं.
हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी ।
बेहतरीन कटाक्ष, समय संदर्भित सटीक लघुकथा ।
हार्दिक आभार आदरणीय कनक हरलालका जी ।
शीर्षक आधारित सुंदर कथा के लिये बधाई आद० मोहम्मद आरिफ़ जी ।
हार्दिक आभार आदरणीया नीता कसार जी ।
कटाक्षपूर्ण शानदार लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी।
हार्दिक बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।आजकल तो हर गोष्ठी की शुरूआत आप ही की लघुकथा से हो रही है।सुंदर लघुकथा।
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