आदरणीय साथिओ,
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बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय आरिफ़ जी ,बधाई आपको ,सादर
हार्दिक आभार आदरणीया बरखा जी ।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती उम्दा पैग़ाम देती,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत-बहुत दिली शुक्रिया आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
सकारात्मकता को बरकरार रखती रचना के लिए हार्दिक बधाई
बहुत-बहुत आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी ।
बहुत ही संदेशपरक लघुकथा है, प्रदत्त विषय के अनुरूप। हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ० मोहम्मद आरिफ़ साहिब।
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, प्रदत्त विषय पर आपसी सौहार्द्र एवं विश्वास का सन्देश देती अच्छी लघुकथा। बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी ।
पास्कल का दांव
"आओ पास्कल आओ, मुझे तुम्हारा ही इन्तज़ार था।" भगवान ने पास्कल को देखते ही कहा।
अब से पहले, उस वक़्त जब पास्कल ज़िन्दा था। "ईश्वर को तर्कबुद्धि द्वारा नहीं जाना जा सकता।" पास्कल ने गहरी सांस लेते हुए कहा।
"अब?" पास्कल असमंजस में था। "जब ईश्वर का ज्ञान नहीं हो सकता तो उसे मानने की क्या आवश्यकता है?" वह नास्तिकता की तरफ़ बढ़ ही रहा था कि तभी उसे ख़्याल आया। "ज़रूरी तो नहीं कि जिस चीज़ को न जाना जा सके उसका अस्तित्त्व भी न हो?"
अँधेरी रात में आसमान तारों से जगमगा रहा था। पास्कल ने ऊपर की तरफ़ देखा और कहा, "क्या हो यदि ईश्वर का अस्तित्त्व हुआ तो?" वह दो राहे पर खड़ा था। "मैं नास्तिक बनूँ या आस्तिक?"
काफी देर तक सोचने के बाद उसने कहा, "चाहे मैं नास्तिक बनूँ या आस्तिक दोनों ही सूरतों में दो ही स्थितियाँ सम्भव हैं : या तो ईश्वर होगा या फिर नहीं होगा।" उसे दो में से एक पर दांव लगाना ही था।
उसने पहली स्थिति का मूल्यांकन किया। "यदि ईश्वर न हो तो नास्तिक बनना फ़ायदेमन्द होगा और आस्तिक बनना नुकसानदायक।" और फिर दूसरी स्थिति का। "यदि ईश्वर हो तो आस्तिक बनना फ़ायदेमन्द होगा और नास्तिक बनना नुकसानदायक। पर किसमें ज़्यादा नुकसान होगा?" शतरंज के मंझे हुए खिलाड़ी की तरह पास्कल हर सम्भावना पर विचार कर रहा था।
"ईश्वर के न होने से कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ेगा पर यदि वह हुआ तो मुझे लम्बा नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि उसकी सत्ता को ठुकराने के लिए वो मुझे नर्क़ में भेज देगा। इसलिए नास्तिक बनना ज़्यादा नुकसानदायक है।" इस तरह पास्कल ने लाभ के आधार पर अपना दांव चल दिया।
भगवान के सामने खड़े पास्कल को अपनी बुद्धि पर गर्व हो रहा था। वह जानता था कि उसका दांव चल गया है।
मगर तभी। "नर्क़ में ले जा कर इसका वो हाल करो कि इसकी रूह कांप उठे।" भगवान ने उन यमदूतों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा जो पास्कल को पकड़ कर ले आये थे।
पास्कल चौंक गया। "ये क्या भगवन्? मैंने तो आजीवन आपकी सेवा की है। मुझे तो स्वर्ग मिलना चाहिए?"
"तुम्हें क्या लगा था, मैं तुम्हारी चालाकी पकड़ नहीं पाऊँगा?" भगवान ने पास्कल की तरफ़ घूर कर देखा और कहा। "लोग दुनिया को धोखा देते हैं और तुमने मुझे धोखा देने की कोशिश की?"
यमदूत उसे घसीटते हुए ले जा रहे थे और वो ज़ोर-ज़ोर से चीख़ रहा था। "ये गलत है। मेरे साथ धोखा हुआ है।"
(मौलिक व अप्रकाशित)
दुविधा में भी स्वार्थपरक निर्णय लेने वाला प्रबुद्ध मानव शतरंज के खिलाड़ी माफ़िक़ रवैये अख़्तियार करता आया है। एक वैज्ञानिक पात्र के माध्यम से विचारोत्तेजक विवादित विषय बाख़ूबी उठाया है आपने विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार साहिब। ढोंंगी स्वार्थपरक आस्तिकता/पूजा पाठ/इबादत ऊपरवाले पर्ययवेक्षक सर्वशक्तिमान को भी पसंद नहीं है। मृत्यु पश्चात ऐसे मानव की रूह भी दुविधा में फंस जाती है उस जज के निर्णय सुनकर! वाह!अद्भुत लेखन! किंंतु मुझे ऐसा भी लगा कि रचना अभी और समय मांग रही है। समय देने पर तनिक सम्पादन व समापन पंचपंक्ति संबंधित पुनर्विचार किया जा सकता है। आपके विषय/पात्र और परिकल्पना का मैं प्रसंशक हूं, व ऐसा लेखन सीखना व करना भी चाहता हूं। सादर
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