आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
पिछले 44 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-45
विषय - "अनंत-असीम-अपरिमित "
अक्सर हम एक ऐसी अवस्था को जीते हैं जहाँ कोइ भाव अपने असीम होने का एहसास कराता है... योगियों के लिए ये परब्रह्म का निःसीम विस्तार हो सकता है.. तो किसी प्रेमिका या प्रेमी के लिए उसका प्रेम ऐसा अनंत आकाश होता है जिसमें वो पर फैलाए हर सीमा के परे भाव भूमि में विचरण करते हैं... वहीं दार्शनिक समय की अवधारणा को भी अनंत काल से अनंत काल तक देखते हैं.... तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और प्रदत्त विषय को दे डालें एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति.
आयोजन की अवधि - 11 जुलाई 2014, दिन शुक्रवार से 12 जुलाई 2014, शनिवार की समाप्ति तक (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 11 जुलाई 2014,दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालिका
डॉo प्राची सिंह
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
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बहुत सुन्दर भावपूर्ण i लम्बी किन्तु अद्वितीय i आभार i
आदरनीय हरि वल्लभ भाई , आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिये आपको बधाइयाँ ॥
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी सराहना हेतु हार्दिक आभार...स्नेह बनाये रखें कृपया.
आदरणीय हरिभाईजी, आपका इस मंच पर स्वागत करते हुए मैं भी व्यक्तिगत तौर गौरवान्वित हो रहा हूँ.
इस आयोजन में प्रदत्त शीर्षक के अनुरूप आपकी कविता अनंत-निराकार की कई परिचयात्मकता को बिम्बों में सहेजती हुई है. यह अवश्य है कि किसी सामान्य गीत के तीन से पाँच बन्द पढ़ने के लिहाज से अन्यतम माने जाते हैं.
किन्तु आपके गीत में ध्वन्यात्मक प्रवाह है. अतः वाचन क्रम सधा रहता है.
प्रतिभागिता हेतु सादर बधाई और अनेकानेक शुभकामनाएँ आदरणीय
सादर
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी से अभिभूत हुआ ..गीत की उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका आत्मिक आभार..आप का सहज मार्गदर्शन हमें इसी तरह प्रोत्साहित करता रहेगा ..नियमो की अल्पज्ञता हेतु खेद है.आपके सानिध्य में लेखनी परिष्कृत होगी इसका हर्ष है...सादर.
आदरणीय हरि शर्मा साहब सादर स्वागत है आपका इस मंच पर. बहुत ही सुन्दर रचना, महोत्सव के लिहाज से कुछ अधिक बड़ी किन्तु प्रारम्भ से अंत तक बाँध कर रखती इस दिए विषय को सार्थक करती रचना पर बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.
सुन्दर (किन्तु बेहद लम्बी) प्रस्तुति के लिये आपको शुभकामनाएँ
प्रदत्त विषय पर बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति..
बहुत बहुत बधाई आ० हरिवल्लभ शर्मा जी
तेरा असीम विस्तार कभी,
शब्दों में लेख नहीं पाऊँ।
अनुभूत हुई कितनी गतियाँ,
प्रभु तुमको देख नहीं पाऊँ।
....
ऊषा की अनुपम लाली में,
सूरज में रंगत है तेरी।
कलकल बहते इन झरनों में,
सुनती सी धड़कन है तेरी।
ये पेड़ पुष्प धरती अम्बर,
चित्रित कर दूँ ये प्रकृति सारी।
पर स्पंदन रेख नहीं पाऊँ।प्रभु तुमको....।।
....
विधु में मौन बसता है कौन,
तारों के मिस हँसता है कौन।
सौगाते देकर बारिश की,
ये ताप धरा हरता है कौन।
प्रकृति प्राणी जीवन ओ जरा,
प्रभु संचालित करते कैसे।
यह अब तक भेद नही पाऊँ।प्रभु तुमको...।
(मौलिक व अप्रकाशित )
सीमा हरि शर्मा
संचालिका महोदया ..मेरी रचना पर नाम के नीचे ..मौलिक और अप्रकाशित लिखना रह गया है..कृपया...एडिट का बटन भी नहीं रहा....सीमाहरी शर्मा.
यथा निवेदित तथा प्रतिष्ठित
अतीव सुन्दर i
पन्त जी याद आ गए -----न जाने तपक तड़ित में कौन ? निमंत्रण देता मुझको मौन i
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