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मेरा नाम जोकर
"मेरी, मरीना और मीनू! एक आदमी की तीन प्रेमिकाएँ और तीनों का नाम एक ही अक्षर से शुरू!" सर्कस के मालिक महेन्द्र ने रिंग मास्टर से कहा। "हाँ, पर आप अपने आप को भूल रहे हैं।" रिंग मास्टर ने चौथे इत्तिफ़ाक़ की तरफ़ इशारा किया।
अब तक राजू जोकर का आख़िरी करतब शुरू हो चुका था, पर उसकी निगाहें अब भी दरवाज़े की तरफ़ लगी हुई थीं। "मैडम जी मुझे बहुत मानती हैं।" उसने मन ही मन कहा।
"ये मेरा आख़िरी खेला है मैडम जी। मुझे यकीन है आप ज़रूर आएँगी।" डेविड ने राजू का ख़त पढ़ने के बाद अपनी पत्नी मेरी की तरफ़ बढ़ाया और कहा, "लगता है तुम्हारा स्टूडेण्ट अभी भी तुमसे प्यार करता है?" डेविड की बात ने मेरी के चेहरे पर गर्वीली मुस्कान ला दी। उसने झट से डेविड को गले लगा लिया। दोनों एक दूसरे को बेतरह चूमने लगे। इस बीच जोकर का वो पुतला जिसे राजू ने ख़त के साथ भेजा था, न जाने कब मेरी के हाथ से छूट कर उसके क़दमों तले पहुँच गया और वो बेदर्दी से उसे कुचलती रही।
"मरीना ने भले ही मुझसे कभी कुछ नहीं कहा पर मैं जानता हूँ वो मुझे चाहती थी।" राजू की आँखें मरीना को ढूँढ रही थीं।
रूस में राजू का ख़त पाते ही मरीना परेशान हो गयी। उसकी अभी हाल ही में शादी हुई थी। घर परिवार भी अच्छा था और पति भी। वो नहीं चाहती थी कि उसकी हँसती-खेलती ज़िन्दगी में कोई नयी समस्या खड़ी हो और वो फिर से सर्कस में पहुँच जाए। इसलिए उसने राजू के ख़त को चुपचाप जला कर जोकर के पुतले को सड़क किनारे लगे कूड़े के ढेर में फेंक दिया।
उधर जनता राजू की तरफ़ देख रही थी मगर राजू दरवाज़े की तरफ़। "मेरे जितना प्यार मीनू को कोई नहीं कर सकता। मेरा ख़त मिलते ही वो दौड़ी चली आएगी।"
पर मीनू अब टॉप की हीरोइन बन चुकी थी। प्यार-मुहब्बत जैसी बातें उसके लिए दकियानूसी थीं और राजू जैसे मामूली जोकर से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध उसके स्टेटस के ख़िलाफ़। इसलिए डाकिये ने जैसे ही राजू जोकर का नाम लिया उसने तुरन्त कहा, "मैं राजू नाम के किसी भी आदमी को नहीं जानती।" डाकिया जैसे ही मुड़ा बंगले का कुत्ता डाकिए के हाथ से ख़त और जोकर के पुतले को छीन कर भाग गया। थोड़ी ही देर में उस कुत्ते ने ख़त के साथ-साथ उस पुतले को भी चीर-फाड़ कर रख दिया।
राजू जोकर का आख़िरी खेला ख़त्म हो चुका था मगर तीनों में से कोई भी नहीं आया। सर्कस का पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। जोकर रो रहा था और दुनिया हँस रही थी। राजू ने आख़िरी बार चारों तरफ़ घूम कर देखा और फिर वहीं दम तोड़ दिया। ज़मीन पर उसके गिरते ही दर्शक और ज़ोर-ज़ोर से ताली बजाने लगे। वो इस बात से बेख़बर थे कि जोकर का तमाशा ख़त्म हो चुका है।
(मौलिक व अप्रकाशित)
मोहतरम जनाब महेन्द्र कुमार जी बहुत जज़्बाती ख़ूबसूरत लघुकथा के लिए दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ मालिक आपकी क़लम में और कमालत पैदा करदे.....
रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन का हृदय से आभारी हूँ आदरणीय आसिफ़ ज़ैदी जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
आदाब। सुस्वागतम अभिनंदन। कई बार हम लेखन प्रेमी एक सा सोचते हैं। अक्षर 'म' पर मैं भी कुछ सोच रहा था। रचना हमेशा की तरह अनुपम और अद्भुत है। हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार साहिब इस परिकल्पना और भावपूर्ण रचना हेतु।
अभी एक बार पढ़ने के बाद पात्रों में उलझ गया। शाम को पुनः पढ़ूंगा।
सादर आदाब आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. //कई बार हम लेखन प्रेमी एक सा सोचते हैं।// सहमत हूँ. रचना पर आपकी उपस्थिति और अमूल्य टिप्पणी का हृदय से आभारी हूँ. //शाम को पुनः पढ़ूंगा।// आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
मैंने सोचा था कि केवल शीर्षक वैसा लिया गया है। मुझे उस फ़िल्म की कहानी याद नहीं है। टिप्पणियों से लाभान्वित हुआ। मोह-माया; एक-तरफ़ा बेपनाह प्रेम-भाव और प्रेमिकाओं के बदलते तेवर/रुख़ के साथ जोकर की दुनिया और दर्शक-वर्ग के 'तात्कालिक व क्षणिक' संवेदनाहीन मनोरंजन-मोह आदि को उभारती, एक साथ तीन-चार दृश्य समानान्तर रूप से बाख़ूबी शाब्दिक करती विषयांतर्गत बेहतरीन रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार साहिब। इस पर लघु-फ़िल्म बेहतरीन सम्प्रेषण कर सकेगी।
रचना पर आपकी पुनः उपस्थिति और उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु हृदय से आभारी हूँ आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
आपकी कल्पनाशीलता की दाद देनी पड़ेगी भाई महेंद्र कुमार जी. फिल्म "मेरा नाम जोकर" का अंत ही बदल कर रख दिया, वाह. लघुकथा बहुत ही उम्दा हुई है. प्रदत्त विषय के साथ भी पूर्ण न्याय हुआ है जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई प्रस्तुत है.
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय योगराज सर. आपकी प्रतिक्रिया से आश्वस्ति हुई की प्रयास निष्फल नहीं रहा. सच कहूँ तो इस लघुकथा को पोस्ट करते हुए मैं काफी डर रहा था क्योंकि एक सुपरिचित विषय पर कलम चलाने पर औंधे मुँह गिरने का डर हमेशा बना रहता है. "मेरा नाम जोकर" राज कपूर साहब का ड्रीम प्रोजेक्ट था जिससे वह पूर्णतः संतुष्ट नहीं रहे. यदि आज वह होते तो उनकी प्रतिक्रिया जानकर मुझे बेहद ख़ुशी होती. आपसे निवेदन है सर कि इस लघुकथा में यदि आपको कहीं भी कोई कमी महसूस होती है तो अवश्य इंगित कीजिएगा. मुझे बेहद ख़ुशी होगी. आपका हृदय से आभार. सादर.
जनाब महेंद्र कुमार साहिब, प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ जी. हार्दिक आभार. सादर.
आद0 महेंद्र जी सादर अभिवादन। आपकी कल्पनाशीलता को सलाम करता हूँ, क्या भावपूर्ण लघुकथा लिखी आपने। अंत और भी मार्मिक। बधाई स्वीकार कीजिये
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