For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-46 (विषय:मोह)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-46 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-46
"विषय: "मोह" 
अवधि : 29-01-2019  से 30-01-2019 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 7286

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

मेरा नाम जोकर

"मेरी, मरीना और मीनू! एक आदमी की तीन प्रेमिकाएँ और तीनों का नाम एक ही अक्षर से शुरू!" सर्कस के मालिक महेन्द्र ने रिंग मास्टर से कहा। "हाँ, पर आप अपने आप को भूल रहे हैं।" रिंग मास्टर ने चौथे इत्तिफ़ाक़ की तरफ़ इशारा किया।

अब तक राजू जोकर का आख़िरी करतब शुरू हो चुका था, पर उसकी निगाहें अब भी दरवाज़े की तरफ़ लगी हुई थीं। "मैडम जी मुझे बहुत मानती हैं।" उसने मन ही मन कहा।

"ये मेरा आख़िरी खेला है मैडम जी। मुझे यकीन है आप ज़रूर आएँगी।" डेविड ने राजू का ख़त पढ़ने के बाद अपनी पत्नी मेरी की तरफ़ बढ़ाया और कहा, "लगता है तुम्हारा स्टूडेण्ट अभी भी तुमसे प्यार करता है?" डेविड की बात ने मेरी के चेहरे पर गर्वीली मुस्कान ला दी। उसने झट से डेविड को गले लगा लिया। दोनों एक दूसरे को बेतरह चूमने लगे। इस बीच जोकर का वो पुतला जिसे राजू ने ख़त के साथ भेजा था, न जाने कब मेरी के हाथ से छूट कर उसके क़दमों तले पहुँच गया और वो बेदर्दी से उसे कुचलती रही।

"मरीना ने भले ही मुझसे कभी कुछ नहीं कहा पर मैं जानता हूँ वो मुझे चाहती थी।" राजू की आँखें मरीना को ढूँढ रही थीं।

रूस में राजू का ख़त पाते ही मरीना परेशान हो गयी। उसकी अभी हाल ही में शादी हुई थी। घर परिवार भी अच्छा था और पति भी। वो नहीं चाहती थी कि उसकी हँसती-खेलती ज़िन्दगी में कोई नयी समस्या खड़ी हो और वो फिर से सर्कस में पहुँच जाए। इसलिए उसने राजू के ख़त को चुपचाप जला कर जोकर के पुतले को सड़क किनारे लगे कूड़े के ढेर में फेंक दिया।

उधर जनता राजू की तरफ़ देख रही थी मगर राजू दरवाज़े की तरफ़। "मेरे जितना प्यार मीनू को कोई नहीं कर सकता। मेरा ख़त मिलते ही वो दौड़ी चली आएगी।"

पर मीनू अब टॉप की हीरोइन बन चुकी थी। प्यार-मुहब्बत जैसी बातें उसके लिए दकियानूसी थीं और राजू जैसे मामूली जोकर से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध उसके स्टेटस के ख़िलाफ़। इसलिए डाकिये ने जैसे ही राजू जोकर का नाम लिया उसने तुरन्त कहा, "मैं राजू नाम के किसी भी आदमी को नहीं जानती।" डाकिया जैसे ही मुड़ा बंगले का कुत्ता डाकिए के हाथ से ख़त और जोकर के पुतले को छीन कर भाग गया। थोड़ी ही देर में उस कुत्ते ने ख़त के साथ-साथ उस पुतले को भी चीर-फाड़ कर रख दिया।

राजू जोकर का आख़िरी खेला ख़त्म हो चुका था मगर तीनों में से कोई भी नहीं आया। सर्कस का पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। जोकर रो रहा था और दुनिया हँस रही थी। राजू ने आख़िरी बार चारों तरफ़ घूम कर देखा और फिर वहीं दम तोड़ दिया। ज़मीन पर उसके गिरते ही दर्शक और ज़ोर-ज़ोर से ताली बजाने लगे। वो इस बात से बेख़बर थे कि जोकर का तमाशा ख़त्म हो चुका है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

मोहतरम जनाब महेन्द्र कुमार जी बहुत जज़्बाती ख़ूबसूरत लघुकथा के लिए दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ मालिक आपकी क़लम में और कमालत पैदा करदे.....

रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन का हृदय से आभारी हूँ आदरणीय आसिफ़ ज़ैदी जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

आदाब। सुस्वागतम अभिनंदन। कई बार हम लेखन प्रेमी एक सा सोचते हैं। अक्षर 'म' पर मैं भी कुछ सोच रहा था। रचना हमेशा की तरह अनुपम और अद्भुत है। हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार साहिब इस परिकल्पना और भावपूर्ण रचना हेतु।

अभी एक बार पढ़ने के बाद पात्रों में उलझ गया। शाम को पुनः पढ़ूंगा।

सादर आदाब आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. //कई बार हम लेखन प्रेमी एक सा सोचते हैं।// सहमत हूँ. रचना पर आपकी उपस्थिति और अमूल्य टिप्पणी का हृदय से आभारी हूँ. //शाम को पुनः पढ़ूंगा।// आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

मैंने सोचा था कि केवल शीर्षक वैसा लिया गया है। मुझे उस फ़िल्म की कहानी याद नहीं है। टिप्पणियों से लाभान्वित हुआ। मोह-माया;  एक-तरफ़ा बेपनाह प्रेम-भाव और प्रेमिकाओं के बदलते तेवर/रुख़ के साथ जोकर की दुनिया और दर्शक-वर्ग के 'तात्कालिक व क्षणिक' संवेदनाहीन मनोरंजन-मोह आदि को उभारती, एक साथ तीन-चार दृश्य समानान्तर रूप से बाख़ूबी शाब्दिक करती विषयांतर्गत बेहतरीन रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार साहिब। इस पर लघु-फ़िल्म बेहतरीन सम्प्रेषण कर सकेगी।

रचना पर आपकी पुनः उपस्थिति और उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु हृदय से आभारी हूँ आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

आपकी कल्पनाशीलता की दाद देनी पड़ेगी भाई महेंद्र कुमार जी. फिल्म "मेरा नाम जोकर" का अंत ही बदल कर रख दिया, वाह. लघुकथा बहुत ही उम्दा हुई है. प्रदत्त विषय के साथ भी पूर्ण न्याय हुआ है जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई प्रस्तुत है.   

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय योगराज सर. आपकी प्रतिक्रिया से आश्वस्ति हुई की प्रयास निष्फल नहीं रहा. सच कहूँ तो इस लघुकथा को पोस्ट करते हुए मैं काफी डर रहा था क्योंकि एक सुपरिचित विषय पर कलम चलाने पर औंधे मुँह गिरने का डर हमेशा बना रहता है. "मेरा नाम जोकर" राज कपूर साहब का ड्रीम प्रोजेक्ट था जिससे वह पूर्णतः संतुष्ट नहीं रहे. यदि आज वह होते तो उनकी प्रतिक्रिया जानकर मुझे बेहद ख़ुशी होती. आपसे निवेदन है सर कि इस लघुकथा में यदि आपको कहीं भी कोई कमी महसूस होती है तो अवश्य इंगित कीजिएगा. मुझे बेहद ख़ुशी होगी. आपका हृदय से आभार. सादर.

जनाब महेंद्र कुमार साहिब, प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l 

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ जी. हार्दिक आभार. सादर.

आद0 महेंद्र जी सादर अभिवादन। आपकी कल्पनाशीलता को सलाम करता हूँ, क्या भावपूर्ण लघुकथा लिखी आपने। अंत और भी मार्मिक। बधाई स्वीकार कीजिये

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service