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आपकी पहली प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई आ जानकी बिष्ट वाही जी
प्रतिभागिता के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीया जानकी जी। ये रचना लघुकथा की श्रेणी में नहीं आती क्योंकि इसमें अलग अलग समय में घटी कई घटनाओं का वर्णन है।
लघुकथा अच्छी है आ० जानकी बिष्ट वाही जी, लेकिन सम्पादन से कहीं और बेहतर हो सकती थी. आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें.
आदरणीया जानकी जी, इस संवेदनशील प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. शिल्प स्तर पर गुनिजन इशारा कर चुके है. सादर
आदरणीया जानकी जी, इस संवेदनशील प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. शिल्प स्तर पर गुनिजन इशारा कर चुके है. सादर
लघुकथा अच्छी हुई - बधाई हो
वाह बधाई हो . लगता है आज यादों की अंधड़ चली थी जिससे वक़्त के तालों के पीछे छुपे राज आम हो गए .
बुनियाद
दोपहर का सारा काम निपटा ,थोड़ा आराम करने वह कमरे में आ गयी I जाने क्यों कुछ दिनों से उसे इस पुश्तैनी घर की दीवारें अधिक पुरानी व् ढहती सी प्रतीत होने लगी थीं I बच्चे स्कुल से आ कमरे में ही खेल रहे थे ,बिस्तर पर लेट वह अपनी आँखे मूँद सोने का उपक्रम करने लगी किन्तु मन में कुछ कुछ चलना बंद नही हुआ I कुछ सालों में कितना बोझ आ गया था उस पर ,सास पूर्णरूपेण बिस्तर की ही होकर रह गयी थीं उनके साथ साथ सामाजिक आर्थिक जिम्मेदारियाँ भी ,तिस पर इस महंगाई में बच्चों की बेहतर शिक्षा ,परवरिश !! बैल की तरह खटते हैं दोनों पति -पत्नी ,फिर भी अपनी कमाई से एक खुद का घर भी नही ....लगता हैपूरा जीवन यूँ ही निकल जाएगा ,सोचा उसने I घुटन सी होने लगी उसे I तभी उसके कानो में आवाज़ आई -
" भैया, चलो बिजनेस -बिजनेस खेलते है I "
" ठीक है छोटू ,मैं बिजनेस मीटिंग में जा रहा हूँ ,तुम माँ- पापा का ख्याल रखना I "
" ठीक है भैया ,वैसे ही न ,जैसे माँ पापा दादी का रखते है I "
" हां ,वैसे ही !"
" भैया ,फिर मैं मीटिंग में जाऊँगा ,और आप ख़याल रखना I "
यह सुनकर उसकी आँखे खुल गयी ,मन का सारा गुबार धुंआ हो उड़ने सा लगा I अचानक ही पुरानी दीवारोँ में संस्कारो की चमक के पार ,उसे अपने भविष्य की मजबूत नींव नजर आने लगी थी
.
मौलिक व् अप्रकाशित
अति उत्तम प्रस्तुति आद० मीना जी . सच है संस्कार बोलकर ही नहीं सिखये जाते बल्कि वे हमारे व्यवहार से स्वयं ही बच्चों में आ जाते हैं . एक माँ के लिए इससे संतोषजनक बात और कोई नहीं हो सकती कि उसके बच्चे उसके संस्कारों को सही से समझ रहे हैं और जीवन में उतार रहे हैं .
आभार आ शशि बंसल जी ,आपने कथा के मर्म को समझा ,बहुत बहुत धन्यवाद आपको
वाह , बहुत उम्दा लघुकथा | बच्चों में अगर सही संस्कार डालने में सफल हो जाएँ तो उससे बड़ी कमाई और क्या होगी | बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा पर आदरणीया मीना पाण्डेय जी.
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