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आपके अनुमोदन का बहुत बहुत आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी..
प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत अच्छी लघु कथा हुई विनय जी दिल से बधाई लीजिये ऐसी मजबूत बुनियाद जो निःस्वार्थ भाव से
रक्खी गई
आपके अनुमोदन का बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी..
आपके अनुमोदन का बहुत बहुत आभार आदरणीया नीता कसार जी , अधिकांश लोग बुनियाद को भूल ही जाते हैं .
अच्छी ल्गुकथा पेश की - बधाई
बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल जी ..
आदरणीय विनय जी बहुत ही शानदार लघुकथा हुई है. कामयाबी के शिखर तक पहुँचने वाली बुलंद इमारत की नीव में कितने ही लोग भागीदार होते है. आपने जिस तरह से कथा को प्रवाह दिया है और चरमोत्कर्ष पर आँखों को नम किया है, अद्भुत है. बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति पर. सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , कथा को आपका अनुमोदन मिल गया , दिल को तसल्ली हुई । आप जैसे लोग ही लेखकों का उत्साह बढाकर उनसे बेहतर लिखवा देते हैं , सादर धन्यवाद..
देर आये पर दुरुस्त आयें . वाह बहुत खूबसूरत कहानी बनाई आपने .बधाई आदरणीय विनय जी . धोनी मेरे शहर रांची से है और ठीक ऐसी खूबी मैंने उसमे भी देखा है ,अपने जड़ों से जुड़ाव और हर उस इंसान का शुक्रगुजार होना जिसने उसकी बुनियाद बनाई.
बहुत बहुत आभार आदरणीय रीता गुप्ता जी , कथा को आपका अनुमोदन मिल गया , दिल को तसल्ली हुई ।
कितना सुंदर विचार है आदरणीय विनय सर, ऐसा होता ही है कि बड़ी बड़ी उपलब्धियों के पीछे छोटी छोटी बुनियादों को कोई याद नहीं रखता और जो याद रख सकता है वो ही सच्चा मानव है| बधाई हो सर आपको इस सार्थक सकारात्मक रचना के लिये|
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