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“लक्ष्मी तुम काम में बेईमानी करोगी तो नर्क में जाओगी।” मैंने लक्ष्मी से चुहल की।
“मैडमजी, जो है सो एही लोक में है। परलोक में कोई स्वर्ग-नरक नहीं है।”
“यानी तुम परलोक को नहीं मानती?”
“मानती हूँ न मैडमजी, उहाँ भगवान् रहते है लेकिन उहाँ बैठकर स्वर्ग-नरक का बंदरबाट नहीं करते। वो इत्ते सक्छम है कि उहीँ से इस लोक को चलाते है।”
“यानी स्वर्ग नरक सब इसी लोक में है।”
“जी मैडमजी, ये इत्ता बड़ा घर, बड़ी-बड़ी गाड़ी, साहबजी की इत्ती बड़ी नौकरी, इत्ता बढ़िया खाना-पीना, यही तो स्वर्ग है।”
लक्ष्मी की बात से मैंने बहुत गौरवान्वित महसूस किया। अपने अहं तुष्टि के लिए जानबूझकर मैंने पूछा-
“अच्छा ये स्वर्ग है तो फिर नरक?”
“ये गरीबी है नरक, मैडमजी, नरक में तो हम रहते है। भरपेट खाने को नहीं, ढंग का कपड़ा नहीं.... ऊपर से हम औरत जात.... मर्द पैरों की जूती समझता है, इज्जत नहीं करता। शराब पीकर आये तो मारता है, न पीकर आये तो जबरदस्ती। पैसा नहीं दो तो बेचने को तैयार। पूरा दिन बाहर काम करते हुए मरों और रात को......। अब ये नरक नहीं तो क्या है मैडमजी?”
लक्ष्मी की बात सुनकर अचानक इनके हाथ उठाने से लेकर, इस बंगले को खरीदने के लिए पापा से हेल्प मांगने को कहना और पार्टी में बॉस को कम्पनी देने के लिए कहना, जैसी कितनी ही बातें मेरे दिमाग में कौंध गई। लेकिन न चाहते हुए भी मैंने लक्ष्मी के स्वर्ग की परिभाषा को स्वीकार कर लिया।
(मौलिक व अप्रकाशित)
आ मिथिलेश जी आप ने स्वर्ग/नरक को बेहतर ढंग से परिभाषित किया है. इस सुन्दर व सटीक लघुकथा के लिए बधाई.
आदरणीय ओमप्रकाश जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
स्त्री की दशा पर करारा व्यंग... ये ऐसा सच है जिससे ९०%स्त्रियां गुज़रती हैं.. परन्तु ना स्वीकारने की हिम्मत रखती हैं ना नकारने की.. अपने ही भ्रम में जीने वाली स्त्रियों को दर्पण दिखाती कथा पर हार्दिक बधाई .. आ० मिथिलेश जी
आदरणीया सीमा जी, लघुकथा के प्रयास पर कथ्य के मर्म के सापेक्ष सार्थक प्रतिक्रिया तथा सराहना हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद.
बहुत सुंदर रचना वामनकर सर । अमीर का स्वर्ग और गरीब के स्वर्ग को बहुत ही अच्छे ढंग से परिभाषित किया है । बाद में ना चाहते हुए भी लक्ष्मी के स्वर्ग की परिभाषा को मौन स्वीकृति कमाल है ।
आदरणीय पंकज जी, लघुकथा के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय विजय जोशी जी, लघुकथा की सराहना और सटीक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
स्वर्ग और नर्क यहीं, जिसे जो सुविधा नहीं मिलती कई बार उसे स्वर्ग समझ लेते हैं और हर दुविधा तो नर्क के समान ही है| बहुत बढ़िया लघुकथा कही है आ० मिथिलेश जी, बधाई आपको |
आदरणीय चंद्रेश जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय मिथिलेशभाई, आपकी प्रस्तुत लघुकथा अबतक की आपकी सबसे सफल लघुकथा है. इसके लिए तो पहली बधाई.
दूसरा, कि जिस तरह से तथ्य को आपने विस्तार दिया है वह आवश्यकता के अनुरूप अत्यंत रोचक है. वस्तुतः जीवन जितना जिया हुआ दिखता है, उससे कहीं अधिक अदृश्य जिया हुआ होता है. इसी अदृश्य पहलू को समाज के सापेक्ष उद्येश्यपूर्ण ढंग से खोलना साहित्यकर्म है.
आपकी प्रस्तुति से इस पहलू का स्वर मिला है. इसी कारण आप सफल भी हुए हैं. हार्दिक बधाई स्वीकार करें
और, तीसरी बधाई आयोजन का फीता काटनेकेलिए ..
:-))
शुभेच्छाएँ
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