मिलती है ख़ूए-यार[1] से नार[2] इल्तिहाब[3] में
काफ़िर हूँ गर न मिलती हो राहत अ़ज़ाब[4] में
कब से हूँ क्या बताऊँ जहां-ए-ख़राब में
शब-हाए-हिज्र[5] को भी रखूँ गर हिसाब में
ता फिर न इन्तज़ार में नींद आये उम्र भर
आने का अ़हद[6] कर गये आये जो ख़्वाब में
क़ासिद[7] के आते-आते ख़त इक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ, जो वो लिखेंगे जवाब में
मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में
जो मुन्किर-ए-वफ़ा[8] हो फ़रेब उस पे क्या चले
क्यों बदगुमां हूँ दोस्त से, दुश्मन के बाब[9] में
मैं मुज़्तरिब[10] हूँ वस्ल में ख़ौफ़-ए-रक़ीब[11] से
डाला है तुमको वह्म ने किस पेच-ओ-ताब में
मै और हज़्ज़-ए-वस्ल[12] ख़ुदा-साज़[13] बात है
जां नज़्र देनी भूल गया इज़्तिराब[14] में
है तेवरी चढ़ी हुई अंदर नक़ाब के
है इक शिकन पड़ी हुई तर्फ़-ए-नक़ाब में
लाखों लगाव, एक चुराना निगाह का
लाखों बनाव, एक बिगड़ना इताब[15] में
वो नाला दिल में ख़स के बराबर जगह न पाये
जिस नाले से शिगाफ़ पड़े आफ़ताब[16] में
वो सेह़र[17] मुद्दआ़-तलबी[18] में न काम आये
जिस सेहर से सफ़ीना[19] रवां[20] हो सराब[21] में
'ग़ालिब' छूटी शराब, पर अब भी कभी-कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्रो[22]-शब-ए-माहताब[23] में
1. प्रेयसी का स्वभाव 2. आग(नरक) 3. लपट 4.दुःख 5. वियोग की रातें 6. वादा 7. संदेशवाहक 8. वफ़ा से इंकार करनेवाला 9. सम्बंध 10. बेचैन 11. प्रतिद्वंदी 12. मिलने का खुशी 13. खुदा की देन 14. विकलता 15. गुस्सा 16. सूरत 17. जादू-मंत्र 18. इच्छापूर्ती 19. नाव 20. चलता 21. मरीचिका 22. जिस दिन बादल छाया हो 23. चाँदनी रात
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Yogendra B. Singh Alok Sitapuri
मुल्ला फंसे हुए हैं अजाब-ओ-सवाब में
पंडित की पंडिताई हिसाब-ओ किताब में,
छोटा है घर जरूर मगर दिल तो है बड़ा
आने की खबर दीजिए खत के जवाब में,
खुशबू तेरे बदन की गुलों में समा गयी
चंपा चमेली रात की रानी गुलाब में,
शाम-ए-गम-ए फिराक़ का आलम न पूछिए
दिल छटपटा रहा है गमें इज़तिराब में,
बच्चों नें जो लिखाया वही खत में लिख दिया
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगें जवाब में,
हाथों में है कमाल तो जादू निगाह में
देखो बदल न जाय ये पानी शराब में,
आओगे सनम बन के तो फिर जा न पाओगे
'आलोक' ला के देखिये तशरीफ़ ख्वाब में,
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ख़त दूसरा रख आऊँ, फिर से चनाब में
मैं जानता हूँ, जो वो लिखेंगे जवाब में.
कोई राह भी दिखती नहीं, इतना अँधेरा है,
खुर्शीद छुप के बैठा है, क्यूँ कर नकाब में.
मद्धम सी रौशनी हुई, मायूस रात है,
कैसा ये दाग अबके लगा, माहताब में.
जो दिन ख़ुशी के थे, यूँही पल में गुज़र गए,
अब देखें क्या बचा है, जहान-ए-खराब में.
मिट्टी की कोख चीर के सोना निकाल दे,
इतना सकत कहाँ है अब, दरिया के आब में.
इससे निकलने की कोई तरकीब भी तो दे,
तू मुझको ले के, आ तो गया है अज़ाब में.
आजिज़ थे ऐसी कतरा-कतरा मैकशी से हम,
आखिर डुबो के छोड़ दी, प्याली शराब में.
घटायें देस की, परदेस में संदेशा लायी हैं,
अब लौट चल, हासिल है क्या आखिर सराब में.
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क्या पूंछें क्या लिखा है उनकी किताब में
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगें जवाब में
उनकी तो फितरतों में बसा एक ही नशा
सत्ता की डोज़ तगड़ी मिली हो शराब में
दागी खड़े किये हैं सभी ने उम्मीदवार
आओ चटायें धूल इनको इस चुनाव में
गाफिल न बैठें हम मिला अवसर ये बेमिसाल
छुट्टी का कोई मौका नहीं है हिसाब में
तब तक न होगी कम, चलेगी दबंगई
जबतक चुनाव के दिन निकलें न ताव में
दागी-दबंगियों की धमकी से क्यों डरें
वोटों का जब ब्रह्मास्त्र लिए हैं जवाब में
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देखा किए सदा तुझको यार ख्वाब में |
अक्सर दिखा मुझे अपनापन जनाब में |
शामिल करो मुझे अपनी फेहरिस्त में
मैंने लिखा तुझे दिल वाली किताब में |
सब छोडकर सदा पढना बाब प्यार का
पा लोगे जिन्दगी बस इस एक बाब में |
दिल को सकूं मिला बस खत भेजकर उसे
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में |
खुद को भुला देना गर इस राह पर चलो
वो इश्क क्या करेंगे पड़े जो हिसाब में |
छोडो न साथ जो पकड़ो हाथ एक बार
दोस्ती सदा निभाना ख़ुशी में , अजाब में |
पहचान क्या करूं उनकी विर्क क्या कहूं
जो चेहरा छुपाकर रखते नकाब में |
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जिसमें था फ़ायदा, लिया वो ही हिसाब में
यूँ तो लिखा हुआ था बहुत कुछ किताब में
नादान दिल कभी भी सुनेगा नहीं मेरी
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
पीके नज़र से उनकी हुआ जो नशा इसे
दिल ढूँढता है आज वही हर शराब में
जब जिस्म से लिबास हया का उतर गया
तब रूह ने छिपा लिया चेहरा नकाब में
चिनगी वो पहली आग की दिल में तड़प रही
यूँ तो तपिश है आज बहुत आफ़ताब में
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दौरे-मोहब्बत में हो या इन्कलाब में.'
मै जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में.
अपने लिये तू जाके कोई घर तलाश कर
दो पैर कैसे आयंगे इक ही जुर्राब में!
भ्रष्ट - आचरण का सफाया हो पेट से ,
आस है "अन्ना" के दिखाए जुलाब में.
फैले हुए हैं हाँथ हर इक वोट के लिये,
क्या फर्क रह गया है फकीरों-नवाब में?
दिन में सुकून रात का तलाश ना करो,
ढूंढो न चांदनी किसी भी आफ़ताब में!
'अविनाश' सैर बाग की कम ही किया करें,
कांटे भी छिप के बैठे है अब तो गुलाब में.
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अल्लाह जो लिखे किस्मत की किताब में |
कोई कमी न रहे कभी उस हिसाब में ||
माना कि बहुत दिलकश अदा है जनाब में |
मालूम है उसे हम भी हैं शबाब में
ख़त है लिखा उसे इजहारे-इश्क में पर ,
मै जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में||
उनसे जुदा हुआ , जिंदगी ही बिखर गई ,
बस ढूंढता रहा उनको मै शराब में ||
पाया क्या ,क्या खोया है इश्क में.
उलझा रहूँ इसी अनसुलझे हिसाब में |
उसने दिया कभी नजराना -ए- उंस मुझे,
है आज भी महक उस सूखे गुलाब में ||
वादा करो अगर मुझसे तो "नजील"मैं,
सोया रहूँ उम्र भर तेरे ख्वाब में
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अरमान घुट रहे हैं यूँ दर्दे अज़ाब में
ढूंढे कहाँ सुकूने दिल फरेबी सराब में
वो ले गया नींदे भी मेरी देखो लूट कर
कैसे यकीं हो अब वो आएगा ख़्वाब में
शाखों से फूल तोड़ कर राहों में फेंक दो
यूँ छोड़ दी कश्ती मेरी उसने सैलाब में
रोशन नहीं होती अब सितारों की महफिलें
वो चाँद भी जा बैठा है देखो हिज़ाब में
मौसम तो बदलता है मेरा उसके ही आने से
अब ख़ाक भी शौखी न बची रूहे शबाब में
ना नज्म ना मौसिक़ी ना ग़ज़ल अब कोई
जब बरखे ही दफ़न हो गए दिल की किताब में
आगोश ए तसव्वुर में ही आ जाओ एक बार
कुछ फर्क ना होगा तेरे हिज्रे हिसाब में
कैसे लिखूं अब ख़त कोई पूछता है दिल
मैं जानती हूँ जो वो लिखेगा जबाब में
ये होगा मुहब्बत का सबब इब्तदा से जानती
क्यूँ 'राज' ढूँढती वफ़ा इस जहाने खराब में !
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बेदार हो के मुन्तजिर चला अज़ाब में |
वादा करे, नहीं मगर मिले वो ख्वाब में |१|
नीची नजर शरारती वो मुस्कुरा रहे,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में |२|
छू के महक उठा ये चमन गेसु शबनमी,
के हुस्न यार का महक रहा गुलाब में |३|
उस्ताद खुश कि हो के मगन पढ़ रहां हूँ मैं,
तस्वीर सनम की इधर छुपी किताब में |४|
है पूछना बहेच वजह जामबलब से,
क्यूँ छोड़ इश्क डूब रहा वो शराब में |५|
पाले हुए अभी तलक खिला पिला रहे,
शायद खुदा का नूर दिखे है 'कसाब' में ! |६|
संकल्प लें सभी कि जगायें सभी को हम;
फंसना नहीं फजूल के लब्बो लुआब में |७|
माथे से लफ्ज चू कर पा तक पहुंच गये,
बनते नहीं अशार भटकता इताब में |८| :))
चालाक है बड़े वो मेरा मुल्क लूटते,
वो जानते 'हबीब' है जाहिल हिसाब में |९|
*बहेच = व्यर्थ | जामबलब = पीने वाला |
********************************************************************************************************************satish mapatpuri
लिख दूँ तो हाले दिल खतो - क़िताब में.
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में .
लब भींच के हंसते हैं, बोलते नहीं.
जब भी हुई है बात, हुई है ख़्वाब में.
चाँद सा मुखड़ा है पर चाँद वो नहीं.
दिखता है दाग दूर से, माहताब में.
वोटर भी अबके उतने भोले नहीं रहे.
वो जानते हैं क्या छिपा, है आदाब में.
रोना कहाँ हंसना कहाँ , जानते हैं वो.
गिरगिट सा बदलने की अदा, है ज़नाब में.
दर- ब- दर क्यों ढुंढते महबूब को मियाँ.
दिखता है अक्स उनका, ग़ज़ल की क़िताब में.
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वो मेरे और उनके मै जाता हूँ ख्वाब में,
मै सोचता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में.
उल्फत में ज़माने का बता के यूँ डर मुझे,
काँटों की बात करते हो बज्मे-गुलाब में!
साकी से हाँथ छूते ही लगने लगा मुझे,
डूबी है सारी कायनात ज्यूँ शराब में.
रह गए तड़प के जो नज़रे नहीं मिली,
चिलमन में थे वो और थे हम भी नकाब में.
यारों ने आके तोडा जो यादों का सिलसिला,
हड्डी से जैसे लग रहे थे वो कबाब में!
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हम भी ज़रा अनाड़ी हैं उल्फ़त के बाब में
कच्चे हैं थोड़े वो भी वफ़ा के हिसाब में
देखे हैं कैसे कैसे हसीं रंग ख़्वाब में
कितने ही अक्स तैर रहे हैं हुबाब में
क्या फायदा है ऐसी सहर से भी दोस्तों
अब तो सियाही दिखने लगी आफ़ताब में
बढ़ चढ़ के काटते हैं दलीलें ख़िरद की हम
ज़िद का सबक़ पढ़ा है जुनूँ की किताब में
राहत, सुकून, मस्तियाँ, बचपन, शबाब, घर
सामान कितना छूट गया है शिताब में
अब तो कोई इलाज है लाजिम हयात का
कब तक सुकून पाते रहें हम अज़ाब में
लिख तो दिया है हाल ए तबाही उन्हें मगर
"मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में "
शायद ये तश्नगी का सफ़र मुस्तक़िल रहे
'मुमताज़ ' आज देखा है सेहरा जो ख़्वाब में
बाब= पाठ, हिसाब= गणित, हसीं= सुन्दर, ख़्वाब= सपना, अक्स= प्रतिबिम्ब, हुबाब= बुलबुला, सहर= सुबह, सियाही= कालिख, आफ़ताब= सूरज, ख़िरद= बुद्धिमानी, जुनूँ= पागलपन, शबाब= जवानी, शिताब= जल्दी, लाज़िम= ज़रूरी, हयात= ज़िन्दगी, अज़ाब= यातना, तश्नगी= प्यास, मुस्तक़िल= लगातार, सेहरा= रेगिस्तान
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इक रोज रख गये थे वो दिल की किताब में
ताउम्र बरकरार है खुशबू गुलाब में.
कच्ची उमर की हर अदा ओ चाल नशीली
वो मस्तियाँ ना मिल सकीं कच्ची शराब में.
दोनों रहे गुरूर में हाय मिल नहीं सके
मैं रह गया रुवाब में और वो शवाब में.
आईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
वो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में.
कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.
हुश्नोशवाब पर तो गज़ल खूब लिखी हैं
रोटी ही नजर आती है अब माहताब में .
दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
नाकाम रह गये जमाने के हिसाब में.
पहले से खत जवाबी लिखके भेज दे ‘अरुण’
"मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"
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चुपचाप रख दिया है ख़त उनकी किताब में .
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में .
महफ़िल में शराफ़त से काम लीजिये हुज़ूर.
थम्सअप को मिला लीजिये अपनी शराब में.
भूल जाएँ सब, वो शख्स भूलता नहीं.
जिसका रहा उधार कुछ भी हिसाब में.
तेज लौ को देख खुश होइए नहीं.
बुझने के पहले ऐसा ही होता चिराग़ में.
महबूब के ईन्कार से होती है क्या जलन.
वैसी जलन भला कहाँ होगा तेज़ाब में.
मौक़ा मिले सबाब का तो लूट लीजिये.
कुछ तो इज़ाफा होगा दीने निसाब में.
मस्जिदे मंदर की जरुरत भला है क्या.
पाकीज़ा मन तो कहीं बैठिये नमाज़ में.
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वो रोशनी सभी को मिले आफताब में,
अहले वतन का महके पसीना गुलाब में.
बाँटा हमें जरूर ये किससे करें गिला,
लाखों हुए शहीद यहाँ इन्कलाब में.
दिल मानता नहीं था मगर मैंने लिख दिया ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगें जवाब में.
किसको नहीं खबर है कहाँ मुल्क जा रहा,
लेकिन बजिद हैं लोग हिसाबो-किताब में.
‘अम्बर’ को प्यार की ये जमीं रास आ गयी,
दिन को है आफताब शब–ए-माहताब में.
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जब हूँ तुम्हारे सामने खुद बेनकाब मैं !
रखते हो अपने आप को तुम क्यूँ हिजाब मैं !!
क्या अपनी शोहरतों का तुम्हे दूँ हिसाब मैं !
उनकी इनायतों से हुआ कामयाब मैं !!
दुनिया में क्या वुजूद बशर1 की हयात का !
जैसे कोई हुबाब2 समंदर के आब3 में !!
उनके जवाब का मै करूँ इंतज़ार क्यूँ !
मै जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब मै !!
तुझसे बिछड़ के नींद मयस्सर नहीं मुझे !
किस तरह तुझको देखूं शबो रोज़ ख्वाब मैं !!
औराक़4 पर लिखा हुआ होगा हमारा नाम !
इक बार देखिये ज़रा दिल की किताब मैं !!
जुगनू सितारे शमअ हिलाल5 और कहकशां !
कितनो के नूर क़ैद है इक आफताब6 मैं !!
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वो दिन भले रहे जो वफ़ा थी हिजाब में
परदा हटा कि डूब चुके हम शराब में
वो तो जला चुका है सुगंधें बहार की
मैं सोचता हूँ फूल मिलेंगे किताब में
मैं बाटता रहा था खुशी घूम घूम कर
फिर यूँ हुआ कि डूब गया मैं अजाब में
वो तो सिले की बात कभी सोचता नहीं
है कर के नेकियाँ जो बहाता चनाब में
अपना पता लिखा न खतों में कभी उसे
मैं जानता हूँ वो जो लिखेंगे जवाब में
मैं जुगनुओं को कैद करूँगा नहीं कभी
कुछ रोशनी बची है मिरे आफ़ताब मे
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देशी को जो नकारे भला किसकी ताब में.
चीनी में है मज़ा वो कहाँ जो है राब में.
नाजुक बहुत हुजूर यहाँ दिल का मामला
इजहार कीजिये न मुहब्बत सिताब में,
जिन्दा हूँ आप से ही जुड़े दिल के तार हैं,
तशरीफ़ लाइएगा कभी रात ख्वाब में,
कोई तो जिंदगानी में आ ही गया है जब
बनना नहीं मुझे कभी हड्डी कवाब में
माँगी जो इत्तला थी मिली आज तक कहाँ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगें जवाब में.
‘अम्बर’ को आज इश्क तेरी रूह से सनम,
बेशक तेरा ये हुस्न न झलका हिजाब में.
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तकदीर के सारे कमाल हैं नकाब में
जैसे के चाँद बैठा हो छुप के हिजाब में
हूँ मुन्तज़र उस दिन से ही जब दिल कह दिया
मै जानता हूँ क्या वो लिखेंगे जवाब में
उनकी समझ पे रो के या हँस के भी क्या करें
जो ढूँढते हैं सुर की नज़ाकत गुऱाब में
आँखों को हँसी ख़्वाब की दावत न दीजिये
खुशबू नहीं आती कभी नकली ग़ुलाब में
जिनकी सिफ़त डूबी हैं सफ़ा ओ सबाब में
उनको डुबो ना पाओगे ग़म के अज़ाब में
जैसा नशा कविता ग़ज़ल या शायरी में है
ऐसा नशा मिलेगा भला क्या शराब में..
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संदेश भेज दीजिये मौजे चिनाब में
है आज भी मुहब्बत गंगा के आब में।
जाना न फ़र्क जिसने लहू औ शहाब में
शामिल कभी हुआ न किसी इंकिलाब में।
शहाब (फ़ारसी) 'लाल रंग'
इक फ़ूल दे गया जो छुपा कर किताब में
उसने छुपा रखा था चेहरा, निक़ाब में।
भटका तमाम उम्र जो तेरे सराब में
थक हार कर वो डूब गया है शराब में।
सराब मृगतृष्णा
है इश्क भी अजब शै, जो इज्तिराब में
अक्सर बदल गया है किसी इल्तिहाब में ।
इज्तिराब बेचैनी, इल्तिहाब आग की लपटें
ऑंगन में छन के पेड़ से उतरी है चॉंदनी
देखा कभी न चॉंद को ऐसे हिज़ाब में।
हिजाब ओट, पर्दा
कहते हैं आप आपकी फि़त्रत बदल गयी
कुछ भी नया न हमको दिखा है जनाब में।
फित्रत स्वभाव
खत भी उन्हें लिखूँ तो भला किसलिये लिखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में।
'राही' किसी से आप न शिकवा करें कभी
किस ने दिया है साथ किसी के अजाब में।
अजाब कष्ट
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मैने पूछा सवाल कुछ उनसे है ख्वाब में
मैं जानता हूँ जो वो लिखेगें जबाब में
था जो लिखा हुआ खुशियों का पता यहाँ
गुम हो गया कहाँ वही पन्ना किताब में?
है धड्कनें तेरी बिखरी मेहफिल में
छुपा न पाएगा खुदको तू नकाब में
थी भूल एक छोटी उछाले जो बारबार
जो लाख अच्छा किया न आया हिसाब में
क्या खौफ है उसे कभी कुछ लुट जाने का?
'अनुज' जी रहा सदा यहाँ है अभाब में
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बहता है लहू अब भी मिरा इस चनाब में .....
मत पूछ रुदादे इश्क़,रहा किस गिर्दाब में
बहता है लहू अब भी मिरा इस चनाब में
अजीब शै है मोहब्बत ,मिल जाये तो हसीं
फूल वर्ना सूखा गुलाब , किसी किताब में
घबरा न यूँ अय दिल , ख़त के इंतजार में
''मैं जानती हूँ जो वो , लिखेंगे जवाब में ''
पढ़ सको तो पढ़ लो नजरों से दिल हमारा
लब तो खामोश रहेंगे इश्क़ के हिजाब में
तुझसे की मोहब्बत औ' बदनाम हो गए हम
आज लफ्ज़ 'बेहया' का मिला है खिताब में
दिल धड़कना संभल के,ठहर गईं हैं सांसें
बैठे हुए हैं जब से , वो आकर ख़्वाब में
'हीर'इश्क़ है अलालत तिश्नगी की ये ऐसी
जो बुझाये नहीं बुझती किसी भी तलाब में
रुदादे इश्क़- इश्क़ की कहानी , गिर्दाब-भंवर, हिजाब- लज्जा ,
अलालत-बीमारी, तिश्नगी-प्यास
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Yogendra B. Singh Alok Sitapuri
ऐसी नफासतों की अदा है ज़नाब में
जैसी न रही होगी किसी भी नवाब में
बोतल में बंद लाल परी को सलाम कर
उभरा न ज़िंदगी में जो डूबा शराब में
तुमने जो रुख से पर्दा हटाया तो देख लूं
शरमा के कैसे चाँद छुपा है नकाब में
काले सुराख से ही निकलती है रोशनी
रोशन है हर्फ़-ए-स्याह हमारी किताब में
माले-ए-हराम मुफ्त का खाते रहे मियां
हो हाज़मा दुरुस्त करारे जुलाब में
पूजा नमाज़ दोनों में है तेरी बंदगी
फिर क्यों लगे हैं लोग सवाल-ओ-जवाब में
'आलोक' इन्कलाब सियाही में आजकल
लिपटा कोई हिजाब में कोई खिजाब में.
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ऐश वो रहे नहीं जिंदगी की रकाब में
ना ही असर है कोई उनके रुआब में
.
बस नाम रह गया पर रूतबा नहीं रहा
अब बात ना वो रही किसी नबाब में l
जिंदगी में उलझनें बढ़ती ही जा रहीं
गलतियाँ भी होती हैं कभी हिसाब में l
खिले थे फूल चमन में कितने तरह के
पर हम ढूँढते खुशबू रहे चंपा-गुलाब में l
इंसा ने पर्दा फाश किया जाके मून का
ना वो बात रही तब से है माहताब में l
कुरबतें बदल रहीं जमाने की सोच पर
मिलता नहीं सुकूं किसी को अहबाब में l
सितारों की मजलिस लगी स्याह रात में
पर अफ़सुर्दा चाँदनी थी छिपी हिजाब में l
माँ-बाप ने जिस पे किया नाज़ बहुत ही
पढ़-लिख के ऐंठ आ गयी उन जनाब में l
चांटा जो पड़ा गाल पे तो हाथ ना उठा
दूसरा भी गाल कर दिया आगे जबाब में l
सरफ़रोशी की तमन्ना करी थी जिन्होनें
वो शहीद हो गये वतन पे इंकलाब में l
हर बात तो लिखी नहीं होती किताब में
कुछ लोग होते आदतन हड्डी कबाब में l
हमें इंतज़ार मौत का रहता है जन्म भर
फिर क्या मज़ा रखा किसी असबाब में l
पूछो किस तरह का दिल होता कसाब में
मैं जानती हूँ जो वो लिखेंगे जबाब में l
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मिलना उनसे वो भी अदब-ओ-अदाब में,
जी चाहता है आग लगा दूँ नक़ाब में......[1]
उनके खतों का मुझको इंतज़ार यूँ नहीं,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगें जवाब में....[2]
इक बार उनकी आँखों से पीकर जो देख ली,
फिर वो नशा नहीं मिला किसी भी शराब में...[3]
दिल को जो है समझना तो दिल में उतर के देख,
ये ज़ज़बा वो नहीं है जो लिखें हम किताब में....[4]
दुनिया के ज़ख्मो का जब हमने नहीं रखा,
कैसे रखे तुम्हारे सितम फिर हिसाब में.....[5]
या रब वो कब मिले है हमें आकर के रूबरू,
बस मिलते है तसव्वुर में या मेरे ख्वाब में.... [6]
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देह की मंडी में या डूबी शराब में!!
कलयुग की मस्तियाँ हैं यूँ पूरे शबाब में!!
आई जो उनकी याद तो नश्तर चुभो गई,
धोये है चश्म हमने तो अश्कों के आब में..
जुल्फों पे नाज़नीनो के करना नहीं यकीन,
रखतें हैं गेसुओं को वो अक्सर खिजाब में!
अपनी जमीं पे शेर रही टीम-इण्डिया,
आ फंसी है देखिये दौरे-ख़राब में!!
ओहदे ने उनसे आँख जो फेरी है या खुदा,
आई कमी बला की है उनके रुआब में.
लिखकर मै तुमको देता हूँ होशो-हवास में,
मै सोचता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में.
दिल की लगी को दिल्लगी कहतें है बारहा!
पर पाक इबादत है ये मेरे हिसाब में.
नफरत के बीज बो के भला कौन है अविनाश?
गिनती हमेशा होती है उनकी ख़राब में!
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रखने लगे है वो शायद खुद को हिजाब में |
दिखते नहीं तभी अब वो माहताब में ||
बस सोचता रहूँ कि मिटेंगे नहीं कभी ,
हैं फांसले बड़े अब मुझ में ,जनाब में ||
हक़ है ख़ुशी मिरा , तू ही बता मुझे ,
आखिर क्यों जीता रहूँगा मै अज़ाब में ||
हर तरफ से घिरा बादलों में , क्या हुआ ,
है रोशनी अभी तक इस आफ़्ताब में ||
ख़त खून से लिखूं कि स्याही से ,फर्क नहीं ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में ||
दोस्त कहें "नजील" यूँ खुदकशी न कर,मगर ,
मैं जानता नहीं स्वाद कैसा है शराब में ||
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बोले न मुंह से लिखे माही किताब में
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
जगमग हुआ है दिल कितने दिन के वास्ते
महका खिला ये गुल उजड़े से सराब में
वो ऐब को हुनर कहते हैं सही नहीं
मय लुत्फ़ दे मगर खुमारी शबाब में
नाशाद दिल किसी दिन टूटे यक़ीन हैं
तदबीर ढून्ढ लो इस पल तुम अज़ाब में
हैवान, तिशन-ए-खूं सियासत पसंद जो
फिर मुल्क लूटेंगे सब इस इन्तखाब में
रहमो-करम दुआ करना भूल सा गये
तहज़ीब की झलक मिले "रत्ती" अब ख़ाब में
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ज़रूरत क्या है चंदन की बागे गुलाब में .
इज़ाफ़ा इत्र से होता नहीं उनके शबाब में.
मुस्कराते हैं वो भी मुस्कराहट के ज़बाब में .
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे ज़बाब में.
नहीं है फायदा कोई भी खुश्बू मिलाने से .
सुना है एक मछली आ गयी है इस तलाब मे.
मौज़ूदगी किसी भी अज़ीज़ शक्स की.
दो प्रेमियो को लगती है हड्डी कबाब में.
इशके हकीकी का नशा लग गया जिसको .
आता नहीं उसको मज़ा साकी ओ शराब में.
मोड़ देते है तूफ़ानो को जिनके दिल में कुब्बत है.
मगर कमज़ोर बह जाते है मामूली बहाव मे.
शर्म से बात दिल की रु-ब-रु कह पाए न हमसे
छिपाया कुछ नहीं हमसे वो आये जो ख्वाब में
निकाला नुक्स है घोड़े में जिस आली जनाब ने .
नहीं सीखा है उसने पाँव भी रखना रकाब में. .
करोडो खर्च करते हो तुम जिसके रख रखाव में .
लेके आये हो तुम मुल्क को यह किस अज़ाब में.
एक मुजरिम है वो इंसा कोई पीर नहीं है .
क्यों ढूँढ़ते हो फ़रिश्ता तुम अजमल कसाब में.
नहीं झुकता है ये सर किसी भी बेजा दबाव में.
या गल्तियों से या अदब से मुर्शिद के रुआब में.
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उमर ढली पर अभी भी दिखते शवाब में
ये काली जुल्फें रँगी हैं जब से खिजाब में.
कवाब, हड्डी, कलेजी, कीमा हर एक दिन
उन्हें यकीं है बड़ा ही यारों जुलाब में.
मिली वसीयत में भारी दौलत नसीब से
समय बिताने पकड़ते मछली तालाब में.
व्ही.आर. लेने की सोचता हूँ मैं आजकल
मजा नहीं रह गया जरा भी है जॉब में.
सलाम ठोकूँ क्यों डाकिये को बिना वजह
"मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"
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ek hi misra ek hi manch itni saari ghazal ek saath maja aa gaya dekh kar.bahut achcha laga.
भाई राणा जी, ओ बी ओ सीखने सिखाने का मंच है
आपको "लाल - हरा" सूचक का प्रयोग निः संकोच करना चाहिए था
जिन्होंने शेर बह्र में कहे हैं उनको प्रोत्साहन/सम्मान मिलाना ही चाहिए
सादर
मैं वीनस जी की बातों का अनुमोदन करता हूँ. लाल-हरा रंग की परिपाटी प्रारम्भ होते ही खत्म न हो जाये. इस परिपाटी को अपने तईं वीनसजी ने शुरू किया था जिसे राणाजी ने पिछले तरही मुशायरे में स्पष्टतः एक नई ऊँचाई दी थी. इस परिपाटी ने नये शायरों का कितना भला किया है या कितना भला कर सकती है इस पर चर्चा हो चुकी है. और, मैं स्वयं ही उक्त परिपाटी का ज्वलंत उदाहरण हूँ.
यदि कुछ बातें हुईं जिनकी अग्रजों और जानकारों से जानकारी मिले तो यह ’सीखने-सिखाने’ की परम्परा को और सुगठित करेगी. सम्यक, सकारात्मक और सार्थक बहस तथा किसी विन्दु पर मनन-चिंतन किसी लिखे का अपमान नहीं, पाठकों और नये शायरों के लिये पाठशाला होगी.
सधन्यवाद.
सौरभ जी, अनुमोदन के लिए धन्यवाद
वाह! वाह! बढ़िया संकलन बन गया आदरणीय राणा जी...
लाल हरा सूचक के सम्बन्ध में आदरणीय वीनस जी और आदरणीय सौरभ बड़े भईया जी की बातें अत्यंत महत्वपूर्ण और समर्थनीय है...
यह न केवल सीखने वालों को रास्ता दिखाता है बल्कि शिल्प संबंधी त्रुटियों को सुधारने का यह एक दमदार वसीला है...
सादर बधाई/आभार.
जय ओ बी ओ
मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में
ग़ालिब चचा का ये शेर पढता हूँ तो झूम जाता हूँ
जो जाम कभी न आया, वो आज आया है ... आया है यानी आज जरुर साकी ने कुछ मिलाया है
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