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आज ओबीओ अपने चार वर्ष का सफ़र पूरा कर पांचवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. ज़िंदगी के अन्य सफ़रों की तरह यह सफ़र भी कई प्रकार उतार-चढ़ाव की एक गाथा रहा है. वर्ष 2010 में जो सफ़र भाई गणेश बागी जी के नेतृत्व में कुछ नौजवान साथियों द्वारा प्रराम्भ हुआ था, वह आज एक और मील का पत्थर पीछे छोड़कर अगले पड़ाव की तरफ रवाना हो चुका है.           

वर्ष 2010 में जब डरते डरते मैंने इस मंच की कमान थामी थी तो इस मंच की गर्भनाल भी नहीं काटी गई थी. लेकिन अपने शैशवकाल ही में इसका चेहरा-मोहरा आश्वस्त कर रहा था कि यह नन्हा बालक अपने पाँव पर खड़ा होने में अधिक समय नहीं लेगा. और हुआ भी वैसा ही. तब इस मंच को लेकर एक सामूहिक सपना देखा गया था, वह सपना था इस मंच को एक परिवार का रूप देने का. इसके इलावा यह निश्चय भी किया गया कि यहाँ सदैव स्तरीय नव-लेखन को प्रोत्साहित किया जायेगा, छुपी हुई प्रतिभायों को मंच प्रदान कर उन्हें सामने लाया जायेगा. इन्हीं 2-3 बिन्दुयों को लेकर इस मंच ने तब पहला लड़खड़ाता हुआ क़दम उठाया था. उसी दौरान कुछ नए साथी भी जुड़े, और मंच की नीतियों को नई दिशा मिलनी शुरू हुई. उसी दौरान भाई राणा प्रताप सिंह जी द्वारा ओबीओ पर "तरही मुशायरे" की शुरुयात हुई. यह मुशायरा इतना सफल हुआ कि बहुत ही जल्द यह साहित्यिक क्षेत्रों में चर्चा का विषय बन गया. भाई वीनस केसरी की प्रेरणा (प्रेरणा से ज़यादा डांट) से इस तरही मुशायरे में सम्मिलित रचनायों की गुणवत्ता में गज़ब का सुधार आया.        

ग़ज़ल और कविता तब तक इस मंच पर दो मुख्य विधाएं बन चुकी थीं, लकिन आचार्य संजीव सलिल जी और भाई अम्बरीश श्रीवास्तव जी की प्रेरणा से इस मंच पर भारतीय छंदों पर बात होनी शुरू हुई. यह बात इतनी आगे बढ़ी कि "चित्र से काव्य तक" नामक महाना आयोजन को पूर्णतय: छंद आधारित ही कर दिया गया. आज हमारा यह मंच छंदों पर जो काम कर रहा है वह अतुलनीय और अद्वितीय है. यही नहीं लगभग पूरी तरह से मरणासन्न "कह-मुकरी" और "छन्न-पकैया" जैसे  लोक-छंदों को पुनर्जीवित करने का पुण्य पुनीत कार्य भी हुआ है. यही नहीं, इन दोनों छंदों को बाक़ायदा शास्त्रीय छंदों की प्रमाणित गण-मात्रा, यति-गति व तुकांत-समांत आदि आभूषणों से विभूषित कर भारतीय सनातनी छंदों की श्रेणी में ला खड़ा किता गया है.

रचनाएं प्रकाशित करने वाले तो अनेक मंच मौजूद हैं, लेकिन रचनायों पर इतनी उच्च- स्तरीय समालोचना शायद ही कहीं और देखने को मिलती हो. हमारे सभी आयोजन एक वर्कशॉप की तरह होते हैं जहाँ रचना के गुण-दोषों पर खुल कर चर्चा की जाती है. उसी का परिणाम है कि कुछ अरसा पहले बेहद अनगढ़ साहित्य रचने वाले भी आज लगभग सम्पूर्ण रचनाएं रच रहे हैं. इसी क़वायद के तहत ग़ज़ल विधा की बारीकियों पर आ० तिलकराज कपूर जी द्वारा "ग़ज़ल की कक्षा" को  प्रारम्भ किया गया, तत्पश्चात एवं भाई वीनस केसरी जी के वृहद आलेखों ने ग़ज़ल लिखने वालों को एक नई दिशा प्रदान की. 

मठाधीशी और मठाधीशों के लिए इस मंच पर न कभी कोई स्थान रहा है और न ही कभी होगा, हमारा उद्देश्य केवल और केवल साहित्य-सेवा और साहित्य-साधना रहा रहा है और रहेगा. इन चार सालों में बहुत से नए साथी हमारे साथ जुड़े. सभी लोग भले ही अलग-अलग दिशायों और विधायों से आये थे लेकिन सब ने वही सपना देखा तो इस मंच का साझा सपना था. लेकिन कुछ लोग जिनकी महत्वाकांक्षाएं और अपेक्षाएं इस सपने के मेल नहीं खाती थीं, वे इस मंच को खैराबाद कहकर कर अपने अपने रस्ते हो लिये.

4 वर्ष पहले हम एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चल पड़े थे, कहाँ जाना है इसका पता तो था. लेकिन वहाँ तक कैसे पहुंचना है यह नहीं मालूम था. तब रास्ते में नए साथी  मिले, कुछ बुज़ुर्गों ने सही रास्ता बताया. धीरे-धीरे हम ऊबड़-खाबड़ रास्तों के काँटों को हटाते हुए आगे बढ़ते रहे. चार वर्ष के लम्बे सफ़र में कई पड़ाव पार करने के बाद भी हमे किसी तरह की कोई खुशफहमी नहीं होनी चाहिए. हमें सदैव याद रखना होगा कि दिल्ली अभी बहुत दूर है. इसलिए आवश्यक है कि हम सब एक दूसरे का हाथ मज़बूती से थामें रहें और अपना सफ़र जारी रखें.

मैं इस शुभ अवसर पर ओबीओ संस्थापक भाई गणेश बागी जी को हार्दिक बधाई देता हूँ  जिन्होंने यह मंच हम सब को प्रदान किया. मैं उन्हें दिल से धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने मुझे चार वर्ष पहले इस परिवार की बागडोर सौंपी. आदरणीय साथियो, भले ही मैं इस मंच का कप्तान हूँ लेकिन सच तो यह है कि अपनी टीम के बगैर मैं शून्य हूँ. इसलिए इस अवसर पर मैं  अपनी प्रबंधन समिति के सभी विद्वान साथियों आ० सौरभ पाण्डेय जी, श्री राणा प्रताप सिंह जी एवं डॉ प्राची सिंह  जी का हार्दिक व्यक्त करता हूँ जिन्होंने क़दम क़दम पर मेरा साथ दिया तथा मंच की बेहतर के लिए उचित निर्णय लेने में मेरा मार्गदर्शन किया. मंच की कार्यकारिणी के सभी सदस्यों का भी दिल से शुक्रिया जिनकी अनथक मेहनत ने मंच को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं. मैं मंच से जुड़े हुए हर सदस्य को भी धन्यवाद कहता हूँ जिनके स्नेह की बदलैत आज यह मंच अपने पांचवें वर्ष में पहला कदम रखने जा रहा है.

सादर
योगराज प्रभाकर

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आ० महेश्वरी कनेरी जी, सादर आभार !

हर व्यतीत होता पल भौतिक इकाइयों की आयु-गणना में ही केवल बढोतरी नहीं करता बल्कि सचेत इकाइयों के अनुभव तथा उनके दृढ भावों को भी बढ़ाता है. इसके साथ एक और बात होती है, हर व्यतीत पल इतिहास के विस्तृत पटल पर अपनी तथ्यात्मक कलमकारी भी करता चलता है जिसे जीती हुई पीढ़ियाँ व्यवहार के रूप में अपने लिए मानक बनाती हैं तो आने वाली पीढ़ियाँ लभ्य भावों को संस्कार और संस्कृति के रूप में जीती हैं. इस परिप्रेक्ष्य में साहित्य के लिए समर्पित मंच ओबीओ द्वारा अपने भौतिक जीवन के चार वर्ष जी लेना कई मायनों में उपरोक्त मंतव्य को संतुष्ट करता हुआ ही है. जहाँ वर्तमान ओबीओ से साहित्य-व्यवहार सीख रहा है तो वहीं भविष्य भाषायी संस्कार की नीं को पुख़्ता होते देख रहा है.

आदरणीय योगराजभाईजी की प्रस्तुत रिपोर्ट सहज, संतुलित और स्पष्ट है. आपने ओबीओ के मंच की साहित्यिक यात्रा में अबतक शामिल हुए सहयोगियों के प्रति जहाँ आभार व्यक्त किया है तो वहीं इस यात्रा को कतिपय कारणों से छोड़ कर चले गये अन्यान्य सदस्यों के व्यक्तिवाची अतुकान्त व्यवहारों के प्रति पूरी तटस्थता के साथ भावनाएँ अभिव्यक्त की हैं, ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर  की समग्र मनोदशा के तहत ! लेकिन यह मंच कृतघ्न नहीं है, इसकी स्पष्ट बानगी आपकी प्रस्तुत रिपोर्ट है. ओबीओ का मर्सिया पढ़नेवाले कई आत्ममुग्ध, द्वेषपूर्ण भावधारकों को इस रिपोर्ट से घोर निराशा हुई होगी, यह स्पष्ट है. लेकिन सात्विक, कर्मयोगी, रचनाधर्म के प्रति समर्पित सदस्यों के हर्षातिरेक को भी इस रिपोर्ट के माध्यम से समझा जा सकता है.

ऐसा कई बार होता देखा गया है कि रचनाकर्म के क्रम में हुई टिप्पणियाँ कई बार व्यक्तिगत आरोप प्रतीत हुई हैं. जिस कारण कई सदस्य बार-बार असहज हो जाते हैं. लेकिन यह भी समझना होगा कि आज के माहौल में, जबकि कूड़ा-साहित्य का अम्बार अपने चरम पर है, इतना कि मुख्यधारा के साहित्यकार ऐसे जमावड़े के कारण किंकर्तव्यविमूढ़ बने हैं, ओबीओ का योगदान सार्थक रहे, इसके लिए साहित्य-अनुशासन को, विधाजन्य रचनाकर्म को अपनाना ही होगा. इसके अलावे इस विन्दु विशेष पर कुछ और कहने की आवश्यक्ता नहीं रह जाती.

आजकी उपल्बधियों के लिए मंच के समस्त सदस्यों और रचनाकार-पाठकों को मेरी हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ.

विशेषकर, इस मंच के प्रधान सम्पदक और मुख्य प्रबन्धक के प्रति मेरा सादर आभार कि इस अभिनव मंच का सफल भौतिक स्वरूप हमसबके समक्ष है.
सादर

आ० सौरभ भाई जी, इस मुश्किल सफ़र को खुशगवार बनाने में आपका साथ मेरा सम्बल रहा है. ओबीओ की इस इमारत की नींव को आपने भी अपने खून पसीने से मज़बूती दी है. जहाँ शाना-बशाना चलने वाले साथियों ने मुझे बल बख्शा वहीँ अपने अपने रास्ते चले गए साथियों की कमी मुझे आज तक साल रही है. बहरहाल ये सब दौराने सफ़र होने वाले वाक़ये हैं जो होते आए हैं और होते रहेंगे। बस हमें इसी तरह अपने साझे सपने को मन में बसाये आगे बढ़ते जाना है.

आपका अनुमोदन आश्वस्तिकारी है, आदरणीय. वर्ना प्रतीत होते साहित्य के परिक्षेत्र में हवा भरे येब्ब्बड़े-ब्ब्बड़े गुब्बारे बहूऽऽऽऽऽऽत-बहूऽऽऽऽऽऽत हैं ! इतने-इतने कि विचारों के सात्विक ’पिन’ कम पड़ रहे हैं अब. फिरभी यह उम्मीद भी खूब ज़िन्दा है, कि, पारस्परिक साथ हमें जल्दी थकने नहीं देगा. 

सादर

ओबीओ के बारे में क्या कहूँ अल्फ़ाज़ नही हैं मुझे ओबीओ से जुड़े एक साल भी नही हुआ है इस पहले शेरो शायरी के नाम पर कुछ भी लिखा करता था ओबीओ से जुड़ने के बाद ही मुझे बाबह्र शेर कहना आया है, इस दौरान सारे ओबीओ सदस्यों से एक आत्मीय संबन्ध बन गया। दुआ है कि ओबीओ का सफर जारी रहे और नये नये कवि साहित्यकार देश को मिलते रहें। ओबीओ के चौथे वर्षगांठ पर आप सभी को हार्दिक बधाई

बेबह्र से बाबह्र होना एक बड़ी बात है, लेकिन उस से भी बड़ी बात है एक आत्मीय सम्बन्ध बन जाना। परिवार का कांसेप्ट यदि सफल हुआ है तो यक़ीनन हमने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. बस, यूं ही एक दूसरे का हाथ थामे आगे बढ़ते जाना है भाई शिज्जू जी. मुझे विश्वास है कि इस पांचवें साल में हम कुछ और सार्थक कदम अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ाने में अवश्य सफल होंगे।

आदरणीय योगराज जी, सादर प्रणाम ........... आपके इस लेख ने ओ बी ओ के चार वर्षों के सफरनामे से सहजता से परिचय करवाया उसके लिए हार्दिक धन्यवाद ..... और साहित्य की सेवाभाव के लिए लिखने वालों मैं इस मंच के माध्यम से जो अलख जगाई है उसके लिए नमन साथ ही ये अलख ऐसे ही दिन प्रतिदिन और प्रज्व्व्लित हो उसके लिए आपको, ओ बी ओ कार्यकारिणी के सभी सदस्यों तथा मंच पर लेखनी द्वारा योगदान करने वाले प्रत्येक साथी को हार्दिक शुभकामनाएं !  

आपकी शुभकामनायों के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया भाई सचिन देव जी.

आदरणीय योगराज भाई जी,

चार बरस की उम्र में, अद्भुत किया कमाल।           

ओबीओ फूले फले, सौ से ज्यादा साल॥                              

 

क्या लिखना कैसे लिखें, हम सब को समझाय।

कम समय में नौसिखिया, पारंगत हो जाय॥                    

 

योगराज, सौरभ, अरुण, प्राची और गणेश।                             

बधाई पूरी टीम को, देते ज्ञान विशेष॥

 

इस शुभ अवसर पर ओबीओ की पूरी टीम , प्रबंधन समिति के सभी सदस्यगण और इससे जुड़े हजारों साहित्य प्रेमियों को मेरी हार्दिक शुभकामनायें।

 

पुनः अच्छे स्वस्थ जीवन की शुभकामना के साथ ..... अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव 

सुन्दर दोहावली के माध्यम से दी गई शुभकामनायों का ह्रदयतल से आभार आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी.

आदरणीय योगराज जी सादर प्रणाम,

     हमारा  ओ. बी. ओ.  चार वर्ष पूर्ण कर पांचवे वर्ष में पदार्पण कर चुका है यह जानकर मन को अपार ख़ुशी हुई है. इस शुभ अवसर पर ओ.बी.ओ. परिवार के समस्त सदस्यों को अनंत हार्दिक शुभ कामनाएं प्रेषित करता हूँ.

      इस शुभ अवसर पर आपने संक्षिप्त लेख स्वरुप में स्थापना से लेकर आज तक के इतिहास को बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत  किया है लगता है की, हम सभी के मन की बात आप साझा कर रहे है.

      जिस उदार, नेक संकल्प को लेकर मंच की स्थापना हुई  उस संकल्पना को मैं नमन करता  हूँ जिसने साहित्य जगत में एक उदाहरण प्रस्तुत किया है जो सराहनीय एवं वन्दनीय है.  मुझे इस परिवार से जुड़े मात्र तेरह महीने ही बीते है किन्तु इस अल्प काल में काव्य विधा और उसके विधान के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिल रहा  है. जो ज्ञान कहीं अन्यत्र पुस्तकों में दुर्लभ है. नित्य प्रकाशित होने वाली रचनाओं के साथ साथ हर माह आयोजित होने वाले आयोजन भी कार्यशाला की भाँती सीखने के दृष्टी से निश्चित ही उत्सुकता के केंद्र बने हुए है.

 

       इस शुभ अवसर पर माँ भारती की सेवा में अहर्निश कार्यरत मंच के सभी विद्वत सदस्यों का मैं दिल से आभार प्रकट करता हूँ.  विशेषरूप से प्रधान सम्पादक के रूप में आदरणीय आपके साथ साथ,मुख्य सम्पादक आ. बागी जी,  आ. सौरभ जी, आदरणीया डॉ प्राची जी तथा आ. निगम जी जिन्होंने समय समय पर प्रस्तुतियों पर सारगर्भित प्रतिक्रियाओं, सटीक टिप्पणियों द्वारा काव्य विधा एवं विधान की सम्यक जानकारी, मार्गदर्शन एवं  लेखन के प्रति आत्मबल बढाने के साथ साथ मन में नए छान्दसिक प्रयोगों के प्रति अभिरुचि जगाई है.

        मंच ने साहित्य जगत में अल्प काल में एक परिवार के रूप में अपनेपन की नई पहचान पाई है. आदरणीय, किसी के प्रति अपनेपन के भाव मन में सहज ही तो नहीं उत्पन्न होते उसके पीछे जरूर कुछ कारण होगा जिसे  आप, और हम सभी भली भाँती जानते है. इस सन्दर्भ में अधिक कुछ कहने की आवश्यकता नहीं बस इतना ही कहना पर्याप्त होगा .....

                         “ओ बी ओ तुमको निहारे बिना, अँखियाँ दुखियाँ नहीं मानत हैं”.........

 

                                  ढेरों बधाई एवं अनंत शुभ कामनाओं सहित सविनय सादर  

ओबिओ के चतुर्थ वर्षगाँठ पर सभी विद्वतजनों और ओबिओ परिवार से जुड़े सभी बन्धु बांधवों को हार्दिक बधाईयाँ.. सादर
हम कोई साहित्यिक वाहित्यिक नहीं है फिर भी पता नहीं कहीं कमेन्ट करने में अनजाने में यहाँ पेज बन गया
अपनी लिखी एक दो रचना को देख ख़ुशी मिल जाती है बस ना जाने क्यों रिजेक्ट के डर से बिना मन के भी डाल देते है महीने में एक-दो आखिर क्या करे पेज बन ही गया है जब यहाँ हमारा तो कुछ तो लिखना पढना चाहिए ही  ....तहेदिल से शुक्रिया आप सभी साहियात्कारोंका 

शायद कभी सीख ही ले पढ़ते पढ़ते ही सही ....सभी को अभिवादन

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