For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।

पिछले 71 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-72
विषय - "सरहद"
आयोजन की अवधि- 14 अक्टूबर 2016, दिन शुक्रवार से 15 अक्टूबर 2016, दिन शनिवार की समाप्ति तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)


अति आवश्यक सूचना :-
सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान मात्र दो ही प्रविष्टियाँ दे सकेंगे.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 14 अक्टूबर 2016, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 14307

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय श्री कालीपद जी दुश्मन को खरी खरी सुनाती और चेतावनी देती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।

सरहद

एक से अनेक होने की मेरी संकल्पना को
ए प्रकृति ! तूने अनन्त विस्तार देकर,
बना डाली,
असंख्य सौर परिवार सम्हाले अनगिनत आकाशगंगायें।

कुछ वर्तुल, कुछ चपटी, कुछ छितरी सी
कोई कुंडलाकार और
कुछ रेडियो विकीर्णन से इतरायें।

क्रमागत रूप से चलने लगा तेरा यह प्रवाह
सबको काल और स्थान के निर्धारित नियमों से बाॅंधे।
मेरा सान्निध्य पाने को
चारों ओर इठलाते, मंडराते ।

तेरे इस असीम इन्द्रजाल के चक्र को
निस्प्रह मैं,
देख रहा हॅूं तन्मयता से।
सचमुच, कितना विचित्र, रहस्यमय और अद्भुद !

परन्तु, तेरे विराट परिवार की
इस कुन्डलाकार मन्दाकिनी के एक लघु सौर परिवार में,
धूल के कण से भी छुद्र इस धरती पर निवासरत
सभी जीवों से अपने को श्रेष्ठ मानने वाले
इन मानवों ने तो हद ही कर दी आज ।

अपने मूल को भूल, मानवता नष्ट कर,
देखो ! इन्होंने बना डाली हैं अपने बीच सीमायें और दीवारें,
कहने लगे हैं वे ,
कि यह है उनका देश, उनका साम्राज्य।

विपथित हो, वर्चस्व की ऐंसी होड़ लगी है कि
अपने अपने क्षेत्र को विस्तारित करने के लिये
कर रहे हैं एक दूसरे का संहार,
बड़ी ही निर्दयता से।

ए प्रकृति !
तेरे इस अनुपम असीमित सुखद परिवार में
क्या, यह सीमायें तोड़ी नहीं जा सकती ?
इनकी तुच्छ विचारधारायें,
मेरी ओर मोड़ी नहीं जा सकती ?

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरणीय शुक्ल जी उस विराट के आगे मानव कितना तुच्छ है फिर भी सीमाओं में उलझा हुआ है। नमन आपकी रचना को।

आदरणीय वासुदेव जी  रचना की गहराई तक जाकर अपने मनोभावों से सुसज्जित करने के लिए विनम्र आभार। 

प्रकृति ने कोई सीमा निर्धारित नहीं की है , यह तो मानव है जो स्वार्थवश  सीमाओं में उलझा हुआ है | वसुधैव कुटुम्बकम अब पीछे रह गया है | इस सुन्दर रचना के लिए आप को बधाई आ डॉ शुक्ल जी |

आदरणीय कालीपद प्रसादजी रचना की गहराई तक जाकर अपने मनोभावों से सुसज्जित करने के लिए विनम्र आभार।

अति सुन्दर अभिव्यक्ति आ० डॉ टी आर सुकुल जीI हार्दिक बधाईI  

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी , रचना को अनुमोदन देने के लिए विनम्र आभार। 

आदरणीय सुकुलजी

प्रभु से आपने बड़ी सुंदर बात की और आपकी माँग भी उचित है। पर प्रभु तो असहाय होकर अपने अवतार काल में भी इसी समस्या से जूझते रहे। प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ।

आदरणीय अखिलेश जी , आपके द्वारा रचना का अनुमोदन दिए जाने के लिए विनम्र आभार। दार्शनिक रूप से यह लीला तो परमपुरुष की आज्ञा से प्रकृति के द्वारा ही रची गयी है, परंतु सृष्टि चक्र की अन्तिम सीढ़ी पर पहुँचकर मानव अपने अहंकार के वशीभूत होकर अपने ही उद्गम और मूल स्वरुप को भूलकर पृथक सीमाओं में बंध कर भ्रमित हो रहा है। समय समय पर महासंभूति के रूप में आकर वही परम सत्ता बार बार व्यवस्था बनाती और सही रास्ता दिखाती है लेकिन प्रकृति के बहुरंगों से भ्रमित हम फिर ज्यों के त्यों हो जाते हैं और यह चक्र चलता जा रहा है। सादर।

आ. डॉ टी आर शुक्ल जी, आयोजन मैं आपकी इस उत्तम प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आपको ! 

आदरणीय सचिनदेव  जी , रचना को अनुमोदन देने के लिए विनम्र आभार। 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार सुशील भाई जी"
3 hours ago
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार समर भाई साहब"
3 hours ago
रामबली गुप्ता commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"बढियाँ ग़ज़ल का प्रयास हुआ है भाई जी हार्दिक बधाई लीजिये।"
3 hours ago
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"दोहों पर बढियाँ प्रयास हुआ है भाई लक्ष्मण जी। बधाई लीजिये"
3 hours ago
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"गुण विषय को रेखांकित करते सभी सुंदर सुगढ़ दोहे हुए हैं भाई जी।हार्दिक बधाई लीजिये। ऐसों को अब क्या…"
3 hours ago
रामबली गुप्ता commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय समर भाई साहब को समर्पित बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने भाई साहब।हार्दिक बधाई लीजिये।"
3 hours ago
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आहा क्या कहने भाई जी बढ़ते संबंध विच्छेदों पर सभी दोहे सुगढ़ और सुंदर हुए हैं। बधाई लीजिये।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सादर अभिवादन।"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
21 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service