आदरणीय साथिओ,
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यह प्रतिस्पर्धा अक्सर समान उम्र के बच्चों में पायी जाती है, बहुत खूबसूरत रचना विषय पर. बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया रचना के लिए आ तेज वीर सिंह जी
हार्दिक आभार आदरणीय विनय कुमार जी।
शिक्षाप्रद,प्रेरणात्मक बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय तेजवीर सरजी।
हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।
आख़िर क्यों
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रोज़ की तरह अधेड़ दंपत्ति शाम की सैर पर पार्क में आये। कुछ देर पार्क की पटरी पर चक्कर लगा कर दोनों पास ही के एक बेंच पर बैठ गए। पार्क का माहौल रोज़ की तरह का ही था।
अधेड़ पुरुष ने भी रोज़ की तरह ही बैठे-बैठे पास बैठी पत्नी को अनदेखा कर पार्क में घूमने आये लोगों पर कमेंट्री शुरू कर दी।
" ये जो लड़की चूड़ा पहन कर घूम रही है, मुझे कहीं से भी नई ब्याहता नहीं लग रही। और जब ये आई थी पार्क में मैंने देखा था इसने मुँह बाँध रखा था कपडे से। और ये लड़का कहीं से भी इसका पति नहीं लगता।"
"और वो सुशील को देखो। इसका समय हमेशा तभी क्यों होता है जब सुनयना आती है पार्क में। ये इत्तेफ़ाक़ तो हो नहीं सकता। "
"सुनो, ये जो बुज़ुर्ग हैं ये दोनों के साथ कभी कोई बच्चा नहीं देखा। वापिसी में इन्हें सब्ज़ी वग़ैरह खरीदते भी देखा है। कैसे बच्चे होंगें इनके!"
"वो सामने बैठा है ना दिवाकर। सत्तर साल का हो गया अभी तक इसकी नज़र औरतों से नहीं हटती। मैं रोज़ देखता हूँ इसे। "
पत्नी जो अब तक और शायद आजतक चुप ही थी, अचानक बोल उठी। "पर आप ये सब क्यों देख रहें हैं, क्यों सोच रहें हैं, क्यों बोल रहें हैं। मैं भी तो हूँ यहाँ।" पति की नज़रें उसके चेहरे पर चिपक गई थी और बहुत कोशिश करने पर भी न नीचे जा पा रही थी न ऊपर।
***मौलिक एवं अप्रकाशित
आदाब। वाह और आह। बेहतरीन सृजन के लिए हार्दिक बधाई जनाब अजय गुप्ता साहिब। आज के दौर में बहुत सी अधेड़ और बुज़ुर्ग महिलाओं की पीड़ाओं का प्रतिनिधित्व करती विषयांतर्गत 'वृद्ध/अधेड़ विमर्श' पर बेहतरीन रचना। (कृपया स्टार वग़ैरह चिन्हों के इस्तेमाल से यहाँ परहेज़ कीजिएगा।)
शुक्रिया उस्मानी साहब
आदरणीय अजय गुप्ता जी , वाह ! सुन्दर प्रस्तुति , बधाई , सादर।
शुक्रिया डॉ विजय
वाह, बहुत अच्छा विषय उठाया है आपने, बहुत खूब. लेकिन अधिकार विषय से हटकर लग रही है यह रचना. बहरहाल बहुत बहुत बधाई इस शानदार रचना के लिए आ अजय गुप्ता जी
हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी। विषयांतर्गत बेहतरीन लघुकथा।पर निंदा करना पुरुष को अपना जन्म सिद्ध अधिकार लगता है।मगर वह यह भूल जाता है कि जो कमियाँ या बुराई दूसरों में गिना रहा है, वह खुद भी उन कमजोरियों से अछूता नहीं है।
शुक्रिया तेजवीर जी
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