आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आभार नीताजी
हार्दिक बधाई इस बढ़िया रचना के लिए आदरणीय अजय गुप्ता जी| आपकी शुरुवात की पंक्तियाँ /फत्ता और नफे दोनों रिक्शा चलाते हैं। अभी 10 दिन से दोनों की जान पहचान हुई है। और दोनों की ऐसी पटी कि रोज़ शाम को पव्वे का कार्यक्रम साथ ही होता है। कल शाम की मुलाकात/ यहाँ १० दिन से ज्यादा होते तो की क्या फर्क पड़ता या कम होते तो क्या फर्क पड़ता? आगे तो गुणीजन ही स्पष्ट कर पायेंगे|
शुक्रिया कल्पना भट्ट जी। जैसा कि आपने जानना चाहा है उसका उत्तर देने की चेष्टा कर रहा हूँ।
दस दिन का समय इसलिए दिया गया कि ज्यादा पुराना संबंध हो और दारू का साथ हो तो ये घर का सिस्टम पहले से पता होता। और 3-4 दिन में कोई किसी को घर की बात बताता नहीं। कम से कम 10-12 दिन तो एक दूसरे से पटरी बैठने में लग जाते हैं।
कुछ दिन भी एक आप्शन हो सकता है, मेरे ख्याल से| आगे गुणी जन मार्गदर्शन करेंगे ऐसा मुझको लगता है| सादर|
जी बिल्कुल। कुछ दिन बेहतर विकल्प है। सुझाव के लिए आभार
आदाब। दरअसल ऊपर की भूमिका रूपी दो-चार पंक्तियों की आवश्यकता ही नहीं लगती। वे बातें दोनों पात्रों के संवादों में पिरोई जा सकती हैं। अंत में //.. मेरी देखा-देखी घर वाले भी छूट लेने लगे तो? // बहुत महत्वपूर्ण हैं और कथ्य में निवेश करतीं हैं। //...कि ये 'पव्वा' किसे कह रहा है।//.. मैं इस वाक्यांश को, इस की आवश्यकता या संदेश को नहीं समझ पा रहा हूं। सादर।
शुक्रिया उस्मानी साहब आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए
आदरणीय अजय गुप्ता जी बहुत बहुत बधाई बहुत शानदार लघुकथा सबको आमेज़,सादर
लघुकथा बहुत अच्छी है, बधाई प्रेषित है। आ० तेजवीर सिंह जी की बात का संज्ञान लें
अंदर की बात - लघुकथा -
"बड़े भैया आपसे एक विनती करनी है।" छोटे ने दोनों हाथ जोड़ कर बड़े भाई से डरते डरते निवेदन किया|
"अबे ऐसे क्यों गिड़गिड़ा रहा है? तू हमारा छोटा भाई है। बेधड़क बोल क्या बात है?"
"भाई साहब, लगभग दो ढाई साल से अधिक हो गया, माँ बाबूजी को मेरे पास रहते हुए। अब उन्हें आप ले जाते तो अच्छा रहता।"
"क्यों क्या हुआ अचानक? तुझे कोई समस्या हो रही है क्या?"
"भाई साहब , आजकल मेरा बज़ट गड़बड़ा रहा है।"
"कैसी बेसिरपैर की बात करता है? दो प्राणी, वे भी सत्तर पार। कितना खर्चा होता है उनकी दाल रोटी में? मुझसे ले लिया कर।"
"भाई साहब, बात दाल रोटी के खर्चे की नहीं है।"
"तो फिर क्या समस्या है? खुलकर क्यों नहीं बोलता?"
"आप तो ठहरे जिले के बड़े सरकारी अधिकारी। मैं एक प्राइवेट कंपनी में मामूली सा मुलाज़िम। आपके पास रहने से उनका इलाज़ मुफ़्त होता रहेगा। मुझे हर महीने हज़ारों रुपये प्राइवेट अस्पतालों में इनकी दवाओं पर खर्च करने पड़ते हैं।"
"यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। तू उनके मैडीकल बिल मुझे भेज दिया कर। मैं उनको रिएंम्बर्स करा कर तुझे पैसे भेज दिया करूँगा।"
"भाई साहब, इतना बखेड़ा खड़ा करने से तो अच्छा होगा कि आप उन्हें अपने पास ही रख लेते।"
"अबे यार छोटे, तू समझता क्यों नहीं है? उनको मेरे पास रखने में मुझे बहुत बड़ी स्टेटस प्रॉब्लम फेस करनी पड़ती है।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
अच्छी लघुकथा हुई तेजवीर जी। कथानक बहुत पुराना है पर आपने उसे नई शैली में गढ़ा है जिसमें स्टेटस, फाइनेंस और मां-बाप की सहूलियत तीनों पक्षों को दिखाया है। कुछ बदल चुका है, कुछ बदल रहा है, कुछ बदलना पड़ेगा। बहुत ख़ूब।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |