परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 58 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह उस्ताद-ए-मोहतरम जनाब फरहत एहसास साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है|
"मेरा इश्क भी कोई इश्क है कि न खुश करे न मलाल दे"
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मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अप्रैल दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 25 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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वाह वाह शिज्जू भैया ,क्या खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है सभी शेर असरदार हुए तहे दिल से बधाई आपको |
शिकायतें हैं नसीब से, मुझे लुत्फे इश्क़ मिला नहीं
“मेरा इश्क भी कोई इश्क है, कि न खुश करे न मलाल दे”.......जानलेवा शेर बना दिया ,आदरणीय शिज्जू जी
हुये बेअसर यूँ पड़े पड़े, मेरा हौसला मेरी हिम्मतें
नहीं जानता कि न जाने क्या, मेरा इंतज़ार मआल* दे.......बहुत खूब,सर जी. डिप्रेसन :))
कहीं ज़र्द ज़र्द हैं पत्तियाँ, कहीं शाख लगती हरी भरी
यूँ बदलती रुत ये हर एक पल, मुझे उलझनों मे ही डाल दे....... क्या कमाल का शेर कहा है ,सर
मुझे ठोकरों से ज़माने की, वो पता चला जो अयाँ* नहीं
हूँ चराग एक बुझा हुआ, कोई तीरगी से निकाल दे......वाह! बहुत उम्दा. तहे दिल से दाद कुबुलियेगा
आपका बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर कबीर साहब
आदरणीय शिज्जु भाई जी बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. मतला कमाल हुआ है. गिरह आपने जबरदस्त लगाईं है. इन अशआर पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं-
कहीं ज़र्द ज़र्द हैं पत्तियाँ, कहीं शाख लगती हरी भरी
यूँ बदलती रुत ये हर एक पल, मुझे उलझनों मे ही डाल दे
मुझे ठोकरों से ज़माने की, वो पता चला जो अयाँ* नहीं
हूँ चराग एक बुझा हुआ, कोई तीरगी से निकाल दे
ये नसीब तेरा बदल गया, कि बदल गई तेरी चाहतें
तू रहा नहीं वो हबीब* अब, कि ये दुनिया तेरी मिसाल दे
सादर
आदरणीय मिथिलेश जी रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार
क्या कहने हैं भाई शिज्जू शकूर जी, लाजवाब अश'आर हुए हैं। दिल से मुबारकबाद हाज़िर है।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय योगराज सर
शिज्जू भाई के रँग में रची पगी एक और शानदार ग़ज़ल हुई है. हर शैर खूब हुआ है.
हर शेर पर दाद स्वीकार करें
बहुत बहुत शुक्रिया निलेश भैया
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