आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
पिछले 58 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-59
विषय - " समय "
(कितनी विचित्र होती है समय की सत्ता.... प्रिय साथ हो तो पंख लगा उड़ जाता है समय, और विरह के क्षण हों तो पल पल लगने लगता है सदियों सा भारी. समय बलवान हो तो रंक भी राजसी सुख भोगता है और वहीं प्रतिकूल हो तो पल पल नारकीय दुख अनुभव कराता है. बीता समय कभी वापिस नहीं आता इसलिए हर एक पल मूल्यवान है और सोच समझ कर उपयोग किया जाना चाहिए....... आइये आज इसी बहुमूल्य 'समय' को अपनी भावनाओं से जोड़ कर ओढ़ाते हैं शब्दों का आवरण और अभिव्यक्त करते हैं अपने मन की बात कविताओं में.....)
आयोजन की अवधि- 11 सितम्बर 2015, दिन शुक्रवार से 12 सितम्बर 2015, दिन शनिवार की समाप्ति तक (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 11 सितम्बर 2015, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालिका
डॉo प्राची सिंह
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
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दोहा गीत पसंद कर सराहने के लिए बहुत बहुत आभार आपका श्री सुशिल सरना साहब
बहुत बहुत आभार आपका श्री श्री सुनील जी
समय चक्र पर बहुत सुन्दर दोहा गीत रचा है आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी
हार्दिक बधाई
दोहें रचने की कला तो आपसे ही सीखने को मिली है डॉ.प्राची सिंह जी | आपकी प्रशंसा ही प्रोत्साहित करती रही है | तहे दिल से हार्दिक आभार आपका
आदरणीय लक्ष्मण भाईजी
सुंदर मुखड़े से शुरुवात कर आपने उस सुंदरता को अंत तक बनाये रखा
पो फटने के साथ ही,शुभ हो समय व्यतीत,
गया वक्त मिलता नहीं, बीता समय अतीत |
जिस पल साधे काम को, उस पल ही उत्कर्ष
सार्थक श्रम बदले समय, मन में होता हर्ष |
कठिन राह पर धैर्य से, सफ़र लगे आसान
उपर्युक्त पंक्तियों का क्या कहना, लाजवाब
इस सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई
गीत रचना सराहने के लिए बहुत बहुत आभार आपका श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
लडीवाला जी सुन्दर रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें
रचना पसंद करने के लिए आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
सादर
रच डाला सुन्दर सरस, ऐसा दोहा गीत
थोड़ी बातें आज की, थोडा बहुत अतीत
रामानुज की बात हर, देती गहरा ज्ञान
सच बोला है आपने, समय बड़ा बलवान
दोहा गीत पर छंदमय सराहना के लिए ह्रादयतल से हार्दिक आभार आदरणीय योगराज भाई जी | मुझे याद है जब आपने मुझे फोन कर बताया ये दोहे नहीं है और दो दोहे लिखकर बोले - "अब दो तीन दोहे आप भी लिखो" – उसी का स्मरण करते हुए सादर निवेदन -
योगराज से गुरु मिले,ओबीओ था धाम,
सिखा रही बेटी मुझे, प्राची जिसका नाम |
दोहे केवल लक्ष्य थे, समय दिया भरपूर
अम्बरीश,सौरभ कहे, लिखते रहे जरूर |
दो दोहे मैंने लिखे, तीन लिखों अब आप
मुझे पसीना आगया, किया योग का जाप |
दोहे लिख पाए नहीं, द्वी पदियाँ ये खूब
शिल्प साधना सीखले,लिखो भाव में डूब |
मिली सफलता जब मुझे, पाया तब सम्मान
सही समय पर चेतना, समय बड़ा बलवान |
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