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आदरणीय विनय कुमार जी आपको मेरी लघुकथा अच्छी लगी, इसके लिए आपका हार्दिक आभार।
अच्छी लघुकथा हुई है आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाई जीl आत्मिक बधाई स्वीकार करेंl
आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई साहब आपको मेरी लघुकथा अच्छी लगी ,यह मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं है। हार्दिक आभार आपका।
हार्दिक बधाई इस सुन्दर लघुकथा के लिये आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रीय जी
आदरणीय प्रतिभा पांडे जी आपको मेरी लघुकथा अच्छी लगी, इसके लिए आपका हार्दिक अभिनंदन व आभार।
हार्दिक बधाई आदरणीय भाई ओम प्रकाश जी।बेहतरीन लघुकथा।
आदरणीय ओमप्रकाश भाई साहब, प्रतियोगिता, उसके पीछे उछलने वाले प्रश्न आदि को समाहित कर अच्छी लघुकथा कही है, बधाई आपको।
आदरणीय गणेश जी बागी साहब आपकी सारगर्भित समीक्षा पढ़कर अच्छा लगा हार्दिक अभिनंदन आपका इस सारगर्भित टिप्पणी के लिए।
आदाब। रचना में सही व गंभीर विसंगति को उभारा गया है। होता है ऐसा। विद्यार्थियों के साथ भी। हार्दिक बधाई जनाब ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' साहिब।।
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय साहब, आपको इस बेहतरीन लघुकथा की रचना पर दिली मुबारक़बाद।
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय सर, शिक्षण कार्य से जुड़े होने के कारण इस कथावस्तु के मर्म को भी समझ पा रहा हूँ, तथापि यह कथा कई क्षेत्रों के हालातों को इंगित करती महसूस हुई। सादर बधाई
रौशनी कायम है- लघुकथा
एक हफ्ते गुजर चुके थे उस तोड़ फोड़ और मार काट के बाद, एक तंग सी गली के एक थोड़े जले मकान में बैठे दो पुराने दोस्त गंभीर लेकिन चिंतित मुद्रा में बैठे थे.
"सत्तर साल तो हो ही गए हमारी दोस्ती को, लेकिन आज तक यह नौबत नहीं आयी थी नजीब. अब तो तुमसे भी ऑंखें मिलाने का साहस नहीं होता मुझमें, तुम्हारे घर को आग के हवाले कर दिया था इन कमजर्फों ने", रघुनन्दन ने अपना कांपता हाथ उठाया और नजीब के हाथ पर रख दिया.
नजीब ने एक गहरी सांस ली और रघुनन्दन के हाथ को कस कर पकड़ लिया "दोष इनका नहीं है रघु, ये बड़ी आसानी से बहकावे में आ जाते हैं. गरम खून सही गलत नहीं सोच पाता, बस आवेश में बह जाता है".
कुछ देर सन्नाटा छाया रहा, चाय के कप रखने की आवाज ने सन्नाटा तोड़ा.
"ये आखिर कहाँ आ गए हम, यहाँ आने के लिए तो हमने आगे बढ़ना नहीं शुरू किया था", रघु ने चाय का कप उठाया और धीरे से सुड़पने लगे.
नजीब भी चाय पीने लगे और अखबार को उठाकर रघुनन्दन के सामने रख दिया. पहले पन्ने पर ही जलते मकानों के चित्र के बीच में एक खबर थी "हिन्दू मोहल्ले में स्थित मस्जिद को वहां के हिन्दुओं ने बचाया और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा भी की".
"हमारा सफर यहीं के लिए जारी है रघु, इंशा अल्लाह ये मंजिल भी जल्द प्राप्त हो जायेगी", कहते हुए उन्होंने चाय का कप खाली कर दिया. रघुनन्दन के चेहरे पर अखबार की खबर पढ़कर संतुष्टि का भाव आ रहा था, नजीब के हाथ दुआ में ऊपर उठ गए.
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