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सर्द रात
(‘प्रत्युत्तर’ विषयाधारित कथा)
‘इसे भी आज खराब ही होना था। एक तो इतनी रात और उपर से टैक्सी वालों की हड़ताल।’ पौष की कोहरे भरी सर्द रात में भी मोटर साइकल घसीटते हुए पसीने से तरबतर हुआ वो अपने बच्चे की तबीयत और बिगड़ते देख बड़बड़ाए जा रहा था।
‘वो देखिए रिक्शा।’ सड़क किनारे रिक्शा पर ही कंबल ओढ़े लेटे रिक्शा वाले को देख पत्नी बोली
‘चल उठ ओए ! अस्पताल चलना है’ रिक्शा के हैंडल को ज़ोर से झटकते हुए वो आदेशात्मक स्वर में रिक्शा वाले को बोला
‘नहीं, हम नहीं जाएगे, कोई दूसरा रिक्शा देख लो’ कंबल से मुँह ढांपते रिक्शा वाला तल्खी से बोला
‘चलो ना भईया ! देखो, बच्चे की तबीयत बहुत खराब है।’ पत्नी ने नर्म आवाज में धीरे से कहा
‘ओह ! बच्चे की तबीयत खराब है ! तो फिर जल्दी बैठिए।’ फुर्ती से कंबल समेटते हुए रिक्शा वाला उठा
‘लो पकड़ो।’ अस्पताल के गेट पर उतरते ही जेब से कुछ पैसे निकाल रिक्शा वाले को देते हुए बोला
‘साहब... पैसे....!’
‘अब जो दे दिया उसे चुपचाप रख और चलता बन।’ रिक्शा वाला की आवाज को अनसुना कर वो तेज़ी से अस्पताल के अंदर चले गए
‘भगवान का शुक्र है, मुन्ना अब ठीक है। तुम एक मिनट यहीं खड़ो मैं सामने केमिस्ट से दवाई ले आता हूँ।’ अस्पताल से बाहर निकलते हुए वो अपनी पत्नी से बोला
‘अरे तुम ! अभी भी यहीं खड़े हो? जितने खुले पैसे थे दे दिए अब दो-चार रूपए कम थे तो क्या हो गया? तुम लोग किसी की मजबूरी नहीं समझते।’ गेट के पास कंबल ओढ़े रिक्शा वाला को खड़ा देख उसका पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया
‘साहब, अब मुन्ना कैसा है? मैं तो उसे देखने के लिए ही खड़ा था। बीते बरस गांव में ऐसी ही सर्द रात में मेरा बच्चा डाॅक्टर के पास पहुुुंचने से पहले भगवान को प्यारा...।’ कहते-कहते रिक्शा वाला सिसकने लगा
(मौलिक व अप्रकाशित)
आखिर आप लघुकथा गोष्ठी का आगाज़ करने में सफल रहे। बधाई हो अदरणीय रवि जी।
ओह !!! कथा पढ़ते ही दिल में धार सी उतर गयी। संवेदनाओं पर किसी का अख्तियार नहीं होता है। ये न आमिर होती है नहीं गरीब। बहुत ही खूबसूरत लघुकथा हुई है ये। बधाई स्वीकार करें अदरणीय रवि जी।
धन्यवाद आदरणीय कांता जी। लघुकथा पर आपके अनुमोदन से मन प्रसन्न हो गया।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय अर्चना जी ।
जहां एक ओर आयोजन में सबसे पहले कथा पोस्ट करने की खुशी है वहीं दूसरी ओर आपके स्वास्थ्य को लेकर मन निराश भी है। अापकी वृहद टिप्पणीयों की बहुत कमी महसूस हो रही है आदरणीय मिथिलेश वामनकर भाई जी ।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शेख साहिब ।
सादर धन्यवाद आदरणीय माला झा जी ।
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