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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-60 (विषय: धरोहर)

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-60 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-60
विषय: धरोहर
अवधि : 30-03-2020 से 31-03-2020
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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आदरणीय सतविंदर जी,आपका आभार। हां,त्रुटियों को इंगित करें।यदि होंगी, तो सुधार होगा।

आदरणीय मनन कुमार जी, आज के हालात का उल्लेख करती और दिए गए विषय के साथ इन्साफ़ करती इस सुंदर और कल्पनाशील लघुकथा पर बधाई स्वीकार करें।

आपका आभार आदरणीय भसीन जी।

भाई मनन जी, जब अनबोलो से बुलवाकर कर कथा सृजित होती है तो उसमे सबसे बड़ा रिस्क होता है कि कही लेखक न बोलने लगे, यहाँ मुझे कुछ ऐसा ही लगा, लघुकथा दुबारा मसक्कत चाहती है. बधाई इस प्रस्तुति पर.

बंधु बागीजी,न बोलनेवाले भी बोलते हैं। हां,यह दीगर बात है कि लोग उन्हें समझ नहीं पाते हैं।अभिव्यक्ति के अन्य माध्यमों में से एक संकेतों वाला भी है। अन - बोलते (हमारी भाषा में न बोलनेवले जीव/पक्षी)इसी माध्यम से खुद को व्यक्त करते हैं।अपने भाव प्रकट करते हैं,जैसे पक्षी समूह में उड़ें,अलग - थलग होकर उड़ें,दोनों में फर्क होता है।वही पक्षी कभी अपने डैने को पूर्ण रूप से फैलाकर उछाह में उड़ते देखा जाता है।फिर कभी गमगीन माहौल हो,कोई उसका करीबी पक्षी आपके द्वारा हत हो गया हो,तब उसकी उड़ान देखिए।

पुन श्च, पात्र चाहे जो हो,लेखक क्या उसके नेपथ्य में नहीं होता है?होता है।पात्र लेखक की आवाज है,उसका स्वर है और धुन भी।ऐसा मानने में हर्ज क्या है?पक्षियों के वार्तालाप के उपरांत शेष तथ्य को गंतव्य देने के लिए लेखक भावों को शब्द देगा।और शायद यह समीचीन भी होगा,ऐसा मेरा भी मानना है।

हां,यह लघुकथा एक सुविचारित चिंतन पर आधारित है,पर मशक्कत इसमें नहीं हुई है।यह मैं मानता हूं और  इसे और उर्घ्वगामी बनाने का मेरा आयास जारी रहेगा।आपका शुक्रिया।

आदरणीय मनन जी, मेरी प्रतिक्रिया को कृपया एक पाठकीय प्रतिक्रिया ही समझे, जितना एक पाठक के रूप मे मैं समझ सका उसे अवगत कराना उचित समझा, आवश्यक नही की पाठक की प्रत्येक प्रतिक्रिया पर लेखक मनन करे ही । यदि उचित न लगे तो इग्नोर भी किया जा सकता है ।

सादर ।

आदरणीय, मैंने आपकी टिप्पणी के मान के तौर मननोपरांत अपनी प्रतिक्रिया देना मुनासिब समझा।

राष्ट्रीय राजधानी सहित देश के अन्य हिस्सों से हो रहे वर्तमान पलायन की पृष्ठभूमि में एक अच्छी मानवेतर लघुकथा कही है आ० मनन कुमार सिंह जी. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह दरअसल प्रस्थान है पलायन नहीं. वैसे भी इस प्रस्थान/पलायन के पीछे बहुत सी वजूहात हैं, जो आज न कल सामने आ ही जाएँगी. बहरहाल, इस सुंदर लघुकथा पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

आदरणीय योगराज जी,आभार एवं नमन! लघुकथा अपने लक्ष्य तक पहुंच पाई है,यह जानकर अत्यधिक उत्साहित हूं।आपकी सार्थकता पूर्ण टिप्पणी कथा की राह का संबल हुआ करती है,सादर।

 आदरनीय मनन जी , सुंदर लघुकथा के लिए बहुत बधाई स्वीकार करें 

आपका आभार आदरणीय मोहन जी।

 बढ़िया कथा के लिए हार्दिक बधाई आ.मनन कुमार सिंह जी 

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