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हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर कुमार जी।बहुत गंभीर विषय को दर्शाती बेहतरीन लघुकथा।
आदरणीय तेजवीर जी, अनुमोदन एवं उत्साहवर्धन के लिए सादर हार्दिक आभार
आदरणीय सलिक जी, सादर नमन। प्रयास पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने के लिए सादर आभार।
आदाब। विषयांतर्गत कथानक पुराना है लेकिन नई सदी के साथ सदा सजीव व नया रूप लिये हुए है। इस सदी के हालात से रूबरू कराती प्रवाहमय रचना। हार्दिक बधाई जनाब सतविंदर कुमार राणा साहिब। ख़ुदा क़सम, यह कहने में मुझे तनिक भी संकोच नहीं है है कि इस वर्ग में अब सामान्य वर्ग का मुस्लिम समुदाय भी शामिल आख़िर करवा दिया गया है। अपने अनुभवों के आधार पर मै कह सकता हूँ कि पिछले कुछ वर्षों के हालात की परिणति और लॉकडाउन कोरोना काल में अवसरवादिता ने मुस्लिमों के लिए किरायेदारी, शिक्षार्थी, दुकानदारी, रोज़गारी और पेटपूजा के लिये ऐसे रवैये की सत्तर फ़ीसदी संभावनाएं पैदा कर दीं हैं। विशेष रूप से बच्चों और महिलाओं के माध्यम से। आशय यह है कि 'चमार' वर्ग/शब्द अब इस सदी में यह एक 'बिम्ब' बन गया है, जो इस रचना को वर्तमान में व आने वाले समय तक भी एक व्यापक फलक दे रहा है। मेरे ताज़े सर्वेक्षण के अनुसार अँग्रेजी माध्यम तक के बच्चे भी मुस्लिमों के बच्चों के साथ खेलकूद मैदान या वस्तुएं शेअर/टच करने में कतरा रहे हैं, संकोच कर रहे हैं, टालाममटोली कर रहे हैं, आँखें तरेर रहे हैं... महिलाएं भी! फ़र्क का यह प्राकृतिक/अप्राकृतिक आचरण या प्रदूषण वास्तव में कुछ एक न्यूनतम दोषियों के कारण अद्भूत विकासोन्मुखी है।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी सादर नमन, विद्यार्जन, आर्थिक उत्थान और ओहदेदार होने के बावजूद कुछ वर्ग के लोग आज भी इन बातों का सामना करते हैं। जातीयता प्रत्यक्ष या परोक्ष अपना यह बदरूप यदा-कदा दिखाती रहती है। निस्संदेह प्राचीन समय के हालातों में परिवर्तन आया है, लेकिन सुधार का अब भी लम्बा रस्ता है। आपने प्रयास पर उपस्थित होकर समर्थन दिया और उत्साह वर्धन किया उसके लिए तहेदिल शुक्रिया।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी!
मानवीकरण की बेहतरीन व्याख्या! बहुत-बहुत बधाई सरजी।
आदाब। रचना पटल पर प्रथम उपस्थिति और इस प्रोत्साहक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा।
देख तमाशा कुदरत का.........
टीव्ही पर कोरोना वायरस के कहर से त्रस्त जनता,प्रशासन व नेताओं के दंगल दिखाये जा रहे थे,वही लाॅकडाउन से वातावरण में शुद्धता का प्रतिशत बढ रहा था।शहरों में जहां इंसान नदारत था,गाङी-घोङो की कानफोङ आवाजें कही गुल हो गई थी तो डरकर छुपे जानवरों की चहल-पहल सङकों पर दिख रही थी जैसे वो सोच रहा हैं, कहीं मैं गलत जगह तो नहीं आ गया।पशु-पक्षियों की चहचहाट,शुद्ध हवा,चारों तरफ हरियाली सब कुछ खुशगवार बस,मनुष्य ही पिंजरे में कैद। ऐसा देखसुन कर चीकू को खिङकी से झांकते देख दादाजी पूछा,'क्या देख रहे हो,बेटा?'
'कुछ नहीं दादाजी। जो टीव्ही पर दिखाया क्या वो सही हैं! '
'बिल्कुल सही हैं, बेटा!देखों आसमान में, आसपास देखों, सङकों पर आराम से टहलते गाय,कुत्ते को देखों.......'
'हां दादाजी,इससे पहले इतनी तरह के पक्षियों को नहीं देखा।गाय आराम से घास खा रही हैं, और दादाजी,जो पेङ गाड़ियों के धुएं से मुरझा जाते थे,वो सब हरे-भरे हो गये।'
'कितना शुकून और शांति हैं '
'हां दादाजी, हमे भी बाहर घूमने जाना हैं,'मिलते हुये चीकू ने कहा।
'पर बेटा,सोशल डिस्टेन्स बनाना होगा और फिर लाॅकडाउन के कारण घर पर ही रहना होगा,कोरोना वायरस के कारण.'
'हां, वो बहार घूम रहे और हम घर में बंद....'
'यही तो कुदरत का तमाशा हैं।
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