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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-63

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 63 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा -ए-तरह अज़ीम शायर जनाब  "बशीर बद्र" साहब की ग़ज़ल से लिया गया है |

 
"ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे"

1212 1122 1212 112

मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फइलुन

(बह्रे मुज्‍तस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर)
रदीफ़ :- ही लगे 
काफिया :- आ (हवा, खुदा, नया, दुआ, खिला आदि)

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 सितम्बर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 सितम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

शुक्रिया भैया इन्तजार रहेगा .

जी ....

  आo राजेश कुमारी जी,

बेहतरीन ग़ज़ल कि बधाई हो  

अजीब हो गई इस शह्र की तो  आबो हवा

न जाने क्यूँ मुझे हर शख्स ग़मज़दा ही लगे- बहुत ही उम्दा शे'र 

 

आ० मोहन बेगोवाल जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा दिल से आभार आपको | 

आदरणीया राजेश जी । शानदार अशआर के लिए शेर दर शेर दाद क़ुबूल करे कतअ के साथ शुरुआत पसंद आई । किसी एक शेर का ज़िक्र दुसरे शेर के साथ ना इंसाफी होगा मगर सुकून के लिए इश्तहार का भाव बिलकुल ताज़ा ख्याल लगा

हरेक शेर में क्या खूब कह दिया तुमने
कलाम राज तुम्हारा मिसाल सा ही लगे

आदरणीय दीदी आपके लिए तुम्हारा सम्बोधन मजबूरी में लिया है (आपका से वज्न बिगड़ रहा है न :~) ) पर दीदी के स्नेह की सुरक्षा भी है इसलिए शुभ शुभ ।

बहुत खूब आदरणीय रवि जी,  प्रतिक्रिया में आपके शेर पढ़कर मुग्ध हो रहा हूँ. आपने आयोजन को और अधिक सरस बना दिया. 

//आदरणीय दीदी आपके लिए तुम्हारा सम्बोधन मजबूरी में लिया है (आपका से वज्न बिगड़ रहा है न :~) ) पर दीदी के स्नेह की सुरक्षा भी है // 

आपके शेर पर ये  चरबा,  इस सुरक्षा घेरे को तोड़ने लिए कह रहा हूँ रवि जी ----

हरेक शेर में क्या खूब कह दिया दीदी
कलाम आपका दीदी मिसाल सा ही लगे

हमने आपका भी लिखा और दो बार दीदी भी ..... हा हा हा 

वाह्ह्ह्ह  वाह आप दोनों का स्नेह देखकर अभिभूत हूँ ये चरबा भी दिल को छू गया बहुत बहुत आशीष दोनों को| 

प्रणाम दीदी

इस बार मुशायरे मे शिरकत से अभ्‍यास बहुत अच्‍छा हुआ है पिछले मुशायरे की गैर मौजूदगी का रंज नहीं हो रहा आभार आपके स्‍नेह का ।

रवि भैय्या, दीदी भी कह रहे हो और इतनी औपचारिकता की बात भी कर रहे हो आपने जिस शेर से मेरी ग़ज़ल को दाद दी है वो तो बहुमूल्य है मेरे लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया एवं शुभकामनायें |

वाह !!!! कितनी खूबसूरत बात कही है ये इस्तेहारों वाली । उस अखबार का पता जरा हमें भी मिले आदरणीया राजेश कुमारी जी । कितना पवित्र है ये भाव यहाँ राह से पत्थरों को चुनने का । दुआ की उम्मीद ऐसे ही में कायम रहती है । बधाई आपको दिल से , बडी़ ही खूबसूरत गजल पेश की है ।

आ० कांता रॉय जी,आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ आपको ग़ज़ल  पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से बहुत- बहुत आभार आपका | 

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