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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 66 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-67

विषय - "प्रकाश/उजाला/रौशनी"

आयोजन की अवधि- 13 मई 2016, दिन शुक्रवार से 14 मई 2016, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान मात्र एक ही प्रविष्टि दे सकेंगे.  
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 13 मई 2016, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ पांडेय जी , रचना महोत्सव के अनुकूल हो , उसकी शोभा बढ़ाये इससे अधिक और क्या चाहिए। आपकी विश्लेषणात्मक टिप्पणी मनोबल बढ़ाती है। आपके सुझाव भी धनात्मक होते हैं और प्रेरित करते हैं , बस एक आशंका सी रहती है कि अधिक कसाव में कहीं और पाठक कम न हो जाएँ। वैसे प्रयास अवश्य करूंगा , शेष आपकी शुभकामनाएं तो साथ हैं ही. आभार एवं धन्यवाद, सादर।

आदरणीय विजय शंकर जी, रचना जहाँ रंजन का माध्यम हैं वहीं तार्किक सोच के लिए उत्प्रेरक भी हुआ करती हैं. यदि रचनाकार रचना की संभावना का दोहन करने से बचने लगे कि उसका आधारतल प्रभावित हो सकता है तो यह साहित्य और इसके ’हेतु’ समाज दोनों के लिए घाटा का कारण है.

सर्वोपरि, यह मंच ऐसे-वैसे पाठकों का नहीं रहा है, जो हल्की-फुल्की रचना प्रक्रिया के अलावा मिलने पर भ्रमित होने लगते हैं. यदि ऐसे पाठक सुलभ नहीं दिखते तो वर्तमान पाठक की सोच का दायरा बढ़ाना, उठाना और परिष्कृत कर संयत करना भी रचनाकार का ही दायित्व है. 

रचना में कसाव कभी संप्रेषणीयता से समझौता नहीं होता. यह गलत अवधारणा है. रचना में कोई कसाव संप्रेषणीयता को बनाये हुए रचना को साहित्यिक ऊँचाइयाँ देना हुआ करता है. और, इसके लिए किसी संवेदनशील रचनाकार को हर क्रम में अभ्यासशील रहना चाहिए. 

सादर

मेरी मान्यता है कि हर कसाव के साथ कोई भी रचना में और निखार आ जाता है। इसी निखार को लाने के लिए एक-एक शब्द को, एक-एक पंक्ति को तोलना पड़ता है, परखना पड़ता है। बहुत समय लगता है इसमें, मस्तिष्क थक भी जाता है, पर बहुत संतुष्टि मिलती है इस क्रिया से। जहाँ तक पाठक कम होने का सवाल है, रचना तो सर्व-प्रथम अपनी संतुष्टि के लिए ही लिखनी है। 

आदरणीय विजय निकोर भाईजी, आपके अनुमोदन का आभार ! आपने बिल्कुलसही कहा है कि -- हर कसाव के साथ कोई भी रचना में और निखार आ जाता है। इसी निखार को लाने के लिए एक-एक शब्द को, एक-एक पंक्ति को तोलना पड़ता है, परखना पड़ता है

यह इतनी सहज प्रक्रिया नहीं है. इसी कारण अतुकान्त पद्य-शैली जितनी सहज और सरल दिखती है, उतनी ही क्लिष्ट हुआ करती है. 

तथ्य को और सरल तथा व्यापक लरने केलिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय 

सादर

आदरणीय सौरभ पांडेय जी ,
आदरणीय विजय निकोर जी ,
इस महत्वपूर्ण चर्चा के लिए सादे धन्यवाद।

आदरणीय डॉ. विजय शंकर सर, वाकई हम रौशनी से इतना डरते है कि अँधेरों से मुहब्बत करने लगे है. विषयानुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.

हमें था खौफ़ इतना रौशनी से 

मुहब्बत हो गई है तीरगी से 

चिरागों से निभाई दुश्मनी तो

अँधेरा कैसे जाए जिंदगी से 

सादर 

प्रिय मिथिलेश वामनकर जी , आपने बहुत ही सही उदाहरण देकर रचना का मान बढ़ाया है , आपकी टिप्पणी के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।


आ0 भाई विजय शंकर जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , रचना के अनुमोदन एवं विचार प्रस्तुति के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।

रचना से आनंदित करने के लिए बधाई। ये अँधेरे का अंधेर है या तीव्र प्रकाश का , हमारी आँखें दोनों में ही नहीं देख पाती। 

" ये अँधेरे का अंधेर है या तीव्र प्रकाश का , हमारी आँखें दोनों में ही नहीं देख पाती। " बहुत ही सही टिप्पणी है आपकी। लम्बे अंतराल तक अँधेरे में रह लेने के बाद आदमी कुछ समय तक रौशनी से डरता है , यहां पर यह स्थिति कुछ अधिक समय तक बनी रह गयी है ,
रचना के अनुमोदन एवं विचार प्रस्तुति के लिए आदरणीय टी आर शुक्ल जी , आभार एवं धन्यवाद , सादर।

बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति आ० डॉ० विजय शंकर जी हार्दिक बधाई  

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