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बहुत बहुत शुक्रिया आ चंद्रेश जी
भ्रष्टाचार की मजबूत जड़ें फैली हैं समाज में , सुन्दर लघुकथा आ. विनय जी
प्रत्यूत्र
"रेहाना, सुना तुमने अंकुर उस हब्शी लड़की के साथ रह रहा है."
"पंकज, तो क्या हो गया? कोई alien तो नही है."
"तुमसे मुझे ऐसे जवाब कि उमीद नही थी; तुम ही ऐसी बात करोगी; हमारे संस्कार वो क्या समझेगी."
"पंकज, तुम्हारी चिंता सुन कर; पापा कि कही सब बाते याद आ रही है; औऱ "generation-gap" क्यों औऱ क्या है वो भी सहज लगा समझने में."
मौलिक व अप्रकाशित
कुछ उलझ सी गई कथा आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी । शायद कथा को कुछ और समय दिया जाना चाहिए था। सादर
आदरणीय राजेंद्र जी इस बार आप की लघुकथा में वह बात नहीं है जो हमेशा रहती है. शायद आप जल्दबाजी में ऐसा कर गए हो .
इस लघुकथा के माध्यम से आपने कहना क्या चाहा है आ० राजेंद्र कुमार गौड़ जी ?
आदरणीय राजेन्द्र जी इस सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई
नाम का उच्चारण हर संवाद में नहीं हुआ करता है आदरणीय राजेन्द्र जी। इससे कथा की सहजता पर फर्क ंपड़ता है। गोष्ठी में आपकी उपस्थिति अच्छी लगी। सादर
आदरणीय भाई जी, इस बार रचना लगता है बहुत जल्दी में लिखी है| हालांकि समझ में ऐसे आती है कि स्वयं ने प्रेम-विवाह किया और अब अपने बेटे के लिये राजी नहीं| इस कथानक पर इसी रचना में थोड़ा और समय देकर काफी अच्छा किया जा सकता है| आपके सदप्रयास हेतु हृदय से बधाई स्वीकार करें|
थोड़ा समय मांग रही है लघुकथा आ. राजेन्द्र जी, प्रयास के लिए बधाई
"प्रत्युतर" पर आधारित
'चुप्पी'
शाम के समय बैठे एक ख्याति प्राप्त लोगों की मित्र मण्डली में सब अपने पत्रकार मित्र की चाटुकारितापूर्ण बड़ाई में लगे थे।
"वाह!क्या ख़ूब लिखते हो?कमाल करते हो|"
"प्रश्न भी ऐसे करते हो साक्षात्कार में कि सामने वाले को उत्तर सुझाए न सूझे।"
"हाँ हाँ उस दंगे पर जो लेख लिखा, गज़ब था ।कैसे उस मामले को उठाया था?लाज़वाब था।"
कई मित्रों की ये प्रतिक्रियाएं पत्रकार महोदय को गौरवान्वित कर रही थी।
एक अन्य मित्र बोला-"अरे इस दंगे पर तो भयंकर रिपोर्टिंग की आपने।ऎसे ऎसे सवाल छोड़ दिए लोगों के जहन में कि शांति मिलना मुश्किल है।प्रशासन को कटगहरे में खड़ा किया वो अलग।बेहतरीन!"
अचानक उस मण्डली में अभी तक बिलकुल चुप बैठा शख्स बोल उठता है,"शब्दों की बदबू से अराजकता फैलाने से गर्वानुभूति ,शायद ही किसी देश या समाज के लिए..................।"
मण्डली के अन्य सदस्यों की ख़ुद पर पड़ी अचंभित नज़र और उनके होठों पर पड़ी लज्जायुक्त चुप्पी शायद उसकी अधूरी बात को पूरा कर गई।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
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