परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 73 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहसान बिन 'दानिश' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"हमने देखा नहीं ज़िन्दगी की तरफ"
फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
212 212 212 212
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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हर अशआर खुबसूरत है आपके .ख्यालों को बेहद खूबसूरती से गुन कर गढ़ा है आपने यहाँ अपनी इस ग़ज़ल में .
ह्रदय से बधाई प्रेषित है आपको आदरणीया हरकीरत हीर जी .
आदरणीय पंकज भाई , बढ़िया गज़ल हुई है , गिरह भी अच्छी लगी है , दिल से बधाइयाँ आपको ।
जानवर आजकल अपने प्रतिमान हैं।
आप लेकिन रहें आदमी की तरफ़।। इस शे र के होने पर आपको दिली बधाइयाँ
कष्ट है की प्रगति पथ पे चलते हुए।
हमने देखा नहीं ज़िन्दगी की तरफ़।।............वाह ! अच्छी गिरह लगाई है.
आदरणीय पंकज कुमार मिश्र जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल कही है. बढ़िया अशआर हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें.सादर.
जानवर आजकल अपने प्रतिमान हैं।
आप लेकिन रहें आदमी की तरफ़।।
बहुत खूबसूरत गजल कही है पंकज जी ....
आ. पंकज जी अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई
आद० पंकज जी ,काफिया क्या लिया आपने?
जो हुईं गल्तियाँ हैं विगत में कई।
ध्यान बरबस गया है उसी की तरफ़।।---बहुत अच्छा शेर
मतला सही हो जाए तो बहुत अच्छी ग़ज़ल है
दिल से दाद लीजिये
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