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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-74 में स्वीकृत रचनाओं का संकलन

श्रद्धेय सुधीजनो !

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-74, जोकि दिनांक 10 दिसम्बर 2016 को समाप्त हुआ, के दौरान प्रस्तुत एवं स्वीकृत हुई रचनाओं को संकलित कर प्रस्तुत किया जा रहा है.

इस बार के आयोजन का विषय था – "कतार".

 

पूरा प्रयास किया गया है, कि रचनाकारों की स्वीकृत रचनाएँ सम्मिलित हो जायँ. इसके बावज़ूद किन्हीं की स्वीकृत रचना प्रस्तुत होने से रह गयी हो तो वे अवश्य सूचित करेंगे.

 

(नोट- जो पंक्तियाँ नियम विरुद्ध होने के कारण हटाई गई हैं. उन पंक्तियों को नियमानुसार संशोधित कर संकलन में सम्मिलित करने हेतु प्रस्तुत किया जा सकता है.)

 

सादर

मिथिलेश वामनकर

मंच संचालक

(सदस्य कार्यकारिणी)

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1.आदरणीय ब्रजेन्द्र नाथ मिश्रा जी

विषय आधारित प्रस्तुति

==========================================

जनता की लग रही कतार

संसद में नेता करते रहे तकरार।

बैंकों में जगह - जगह लग रही कतार।

 

पांच सौ, हजार के पुराने नोटों

का चलन हुआ बन्द।

काले धन, जमाखोरों का

उत्साह पड़ा मंद।

 

तिजोरियों में बंद है दौलत बेशुमार।

जनता की नोटों के लिए लग रही कतार।

 

नोट पड़े बैंक में

छुटटों की किल्लत।

खर्चा कैसे चले

रोज की यह  जिल्लत।

 

(नियम विरुद्ध होने के कारण यह पंक्ति हटाई गई है।– मंच संचालक )

जनता की जगह - जगह लग रही कतार।

 

पुराने को बदलने

नए - नए नोटों से।

हम रहे खड़े

लाइन में घंटों से।

 

न कोई शिकन, न कोई आर्त्त पुकार।

ये सब सह लेंगे, पर कम हो भ्रष्टाचार।

 

संसद में नेता कर रहे तकरार

जनता की बैंकों में  लग रही कतार।

 

महीना भर बीत चला

लाइन कम होती नहीं।

जनता के सब्र की

इंतहा लेना सही नहीं।

 

अब तो मिले राहत, करो कुछ विचार।

जनता की बैंकों में बढ़ रही कतार।

नेता संसद में करते रहे तकरार।

नोटों के बिना भी

काम चला लेंगे  हम।

बेटी की शादी भी

जश्न बिना कर लेंगें हम।

परंतु त्याग मेरा जाए ना  बेकार।

ख़त्म हो अनाचार, बंद हो चीत्कार।

 

फिर संसद में क्यों मचा हाहाकार?

नेता सब मिलकर क्यों कर रहे तकरार?

जनता की शांत लगी है कतार।

संसद में नेता क्यों कर रहे तकरार?

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2.आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी

गीत

=========================     

बचा रखी है आस भी

न थकता इंतज़ार में

बरसों से जो  खड़ा हुआ, रुकी सी इक  कतार में

 

जो  भागता यहाँ वहाँ

जुगाड़ने दो रोटियाँ

कहीं उसी के नाम पर

जमी हुई हैं गोटियाँ

 

हर आपदा उसे चुने,

दिखे उसीके प्यार में

बरसों से जो  खडा हुआ, रुकी सी इक  कतार में

 

नकाब को अदल बदल

वो लूटते उसे रहे

हर एक पाँच साल में

आ हाल पूछते रहे

 

मंदिर में है वही दिखा

दिखा वही मजार में

बरसों से जो खड़ा हुआ ,रुकी सी इक कतार में

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अतुकांत

====================

प्रिये, तुम एटीएम

और मै कतार में लगा

अंतिम शख्स

उपमा कठोर है ,माना

पर दूसरी उपमाओं से भी

कब खिली हो तुम ?

 

हर रोज़ बढती तुम्हारी महत्वकांक्षाऍ,

सपने और अहम् ,

कतार में मेरे आगे

घुसते रहते हैं

और मै रोज ,हर रोज

पीछे, और पीछे

धकिया दिया जाता हूँ

देखता रहता हूँ वहीँ से

तुम्हारी भावनाओं संवेदनाओं को

चुकते हुए

 

मेरे आगे की ये भीड़

हर दिन,यूँ ही  बढ़ेगी

और मै  पीछे धकियाया जाता रहूँगा

क्यों कि  तुम्हे रोग है

सपने पालने का

और मुझे सब्र का

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 3. आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी

 दोहा छंद

=============================

 प्रसव सृजन निर्माण में, होती पीड़ा यार।

तथ्य समझ यह देश की, जनता खडी कतार।१।

 

शहर नगर औ गाँव में, अंतर रहा न आज।

कालेधन की जंग का, यह अद्भुत आगाज।२।

 

देश बदलने के लिए, हलचल दिखती तेज।

लोग कतारों में खड़े, करते नहीं गुरेज।३।

 

सर्जन बन की सर्जरी, जब तुमने सरकार।

करें शिकायत दर्द की, आखिर किस दरबार।४।

 

जन मानस की वेदना, समझो कुछ सरकार।

धैर्य न टूटे देश का, हो ऐसा उपचार।५।

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4. मिथिलेश वामनकर

कतार (दोहा छंद)

 =============================

आह, वाह कैसा उठा, देखो एक हुजूम

न्यूज बनानी है गज़ब, करो कैमरा ज़ूम

 

गिनो नहीं, कितने यहाँ, लोग खड़े मज़लूम

केवल इस पर गौर हो, अब कितने मरहूम

 

कैसे परखें हम यहाँ, खूब मची है धूम

कौन यहाँ चालाक है, कौन यहाँ मासूम

 

सन्नाटा बाज़ार में, चुप है पावरलूम

बाक़ी चर्चा के लिए, अपना एसी रूम

 

रोने से क्या फ़ायदा, झूम बराबर झूम

पूरा देश कतार में, कब तक? क्या मालूम

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गीत

============

देख सखा हैरान हूँ, किस्मत का व्यव्हार

तेरी एक कतार है,

मेरी एक कतार

 

लाख बुझा लो पेट की, कब बुझती है आग

हिस्से में अपने रहा, सदियों से ही त्याग

हम दोनों ही आम जन,

ये अपना उपहार

 

राशन, पानी के लिए, चला निरंतर खेल

ख़ुद के पैसो को हुई, जब खातों की जेल

अब खिड़की के सामने,

अपना जीवन पार

 

---------------------------------

दुमदार दोहे

===================

 

नोट बंद की घोषणा कर बैठी सरकार

आओ प्रिये खरीद दूँ, इक सोने का हार

हार की खातिर प्यारे,

वहाँ भी लगी कतारें

 

साहब जी की नींद पर, जैसे चढ़ गई रेल

मन ही मन में हो रहा, जोड़ तोड़ का खेल

खेल अब खेले सारे

वहाँ भी लगी कतारें

 

आँखों आँखों में कटी पत्नीजी की रात

बोली, सुनिए आपसे कहनी है इक बात

बात कि बैंक निहारे

वहाँ भी लगी कतारें

 

सीए बोला- “सेठजी, क्यों करते हैं पाप

सीए भी कब तक सिये, ये बतलायें आप?”

आप जो चाहें वारे

वहाँ भी लगी कतारें

 

खाते में करते जमा, देखा सबको यार

इज्जत की खातिर लिए, पैसे आज उधार

उधारी खूब चुका रे

वहाँ भी लगी कतारें

 

चार दिशा में शोर है, आज हुए है बैन

सारा दफ्तर मौन है, अफ़सर है बेचैन

चैन तो स्वर्ग सिधारे

वहाँ भी लगी कतारें

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5.आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी

विषय आधारित प्रस्तुति (हाइकू)

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कोई हो काम

सुबह हो या शाम

दिखे कतार।।

 

सभ्य रहना

व्यवस्थित चलना

यही सिखाती।।

 

स्कूल में घंटी

ज्यो ही घनघनाई

दौड़े विद्यार्थी।

 

कतार बद्ध

खड़े हो गये सब

प्रार्थना शुरू।।

 

कतार बद्ध

कक्षा में जाते सब

कक्षाएँ शुरू।।

 

कतार बद्ध

दवा के लिए खड़ा

व्यक्ति बीमार।।

 

कतार बद्ध

फसलों की बुवाई

करे किसान।।

 

कतार बद्ध

सामान खरीदते

राजा या रंक।।

 

जानवर भी

कतार में चलते

देखो चीटियाँ।।

 

बिन कतार

सभ्यता असम्भव

सभी जानते।।

 

जीवन डोर

अंजान कतार सी

आगे या पीछे।।

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6.आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी

ग़ज़ल

================================

यूँ ही न शोरे हश्र बपा है क़तार में ।

हर कोई उनके दर पे खड़ा है क़तार में ।

 

कूचे में अपने आके कभी देख ग़ौर से

तेरी नज़र से कौन बचा है क़तार में ।

 

सेहरा यूँ ही बना नहीं मालन के हाथ से

हर एक गुल अदब से बंधा है क़तार में ।

 

पिछड़े हुओं को मिलती है अब सिर्फ़ नौकरी

क़ाबिल तो मुद्दतों से रहा है क़तार में ।

 

अख़बार में छपी है ख़बर आज ख़ास यह

ज़िंदा है कौन कौन मरा है क़तार में ।

 

उम्मीद हर किसी को है दीदारे यार की

हर शख़्स यूँ ही तो न डटा है क़तार में ।

 

तस्दीक़ नोट बंदी के असरात देखिये

हर शख़्स बैंक में ही पड़ा है क़तार में ।

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7.आदरणीय टी आर शुक्ल जी

अतुकांत

======================================

किस कतार में फँस गया मेरा जीवन,.......................................संशोधित 

कण्टकाकीर्ण, हर क्षण विलक्षण। कैसा ये. . .

 

दुनियाॅ में आते ही चिल्लाया चीखा,

कष्टों की थाली में भोजन भी फीका,

सुबह शाम होठों पर फिर वही सूखन। कैसा ये. . .

 

समय अन्तरालों ने काया बढ़ाई,

इसी सूखी रोटी ने आभा चढ़ाई,

मनोहर सुसन्ध्या, पर सबेरे का चिन्तन। कैसा ये. . .

 

आशा की धुन में भ्रमण ने थकाया,

तिरस्कार अनचाह ने मन झुकाया,

बलहीन काया में रोगों की पीड़न। कैसा ये. . .

 

परिश्रम का संचित धन बैंक ने छुड़ाया,

वापसी के लिये लम्बी कतार में लगाया,

दिन पर दिन बढ़ते, न घटती है लाइन । कैसा ये. .

.

जीवित अवस्था में दुर्भाग्य आया,

मृतवत रहा फिर भी सब ने नचाया,

निष्पृहता में भी मिला दोषारोपण। कैसा ये. . .

 

स्नेही कृपाचाह में आस टूटी,

व्यथित मन से बाधाओं में साॅंस टूटी,

उदर रिक्त होते हुए भी अजीरण। कैसा ये. . .

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8.आदरणीय मनन कुमार सिंह जी

गजल

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लगती रोज कतार यहाँ पर

मौसम है गुलजार यहाँ पर।1

 

कुछ बतिआते धीरे-धीरे

कुछ की बात कटार यहाँ पर।2

 

अफरातफरी मचती रहती

लगते कुछ लाचार यहाँ पर।3

 

नोट बदलने की खातिर भी

होतीं आँखें चार यहाँ पर।4

 

खूब मटकती देख 'गुलाबी'

है खुदरे की मार यहाँ पर।।5...............(संशोधित)

 

धन की सीमा है निर्धारित

ज्यादा की दरकार यहाँ पर।6

 

कार्डों से भुगतान न होता

नगदी बस आधार यहाँ पर।7

 

ढ़ेर कमीशन कट जाता है

बात यही बेकार यहाँ पर।8

 

डिजीटल भारत का है सपना

बढ़ता है बाजार यहाँ पर!9

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9.आदरणीया राजेश कुमारी जी

कुण्डलिया छंद  

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जनता पैसों के लिए ,दिन भर खटती यार|

भोर हुए से लग रही ,लम्बी रोज कतार||

लम्बी रोज कतार,बैंक भी अब तो खाली|

हँसता रोज विपक्ष ,ठोक  ताली पर ताली||

राजा का है स्वप्न ,वतन में आये समता|

उठा रही सब कष्ट ,इसी खातिर ये जनता||

 

बातें मन की सुन मनुज,मन की आँखें खोल|  

(नियम विरुद्ध होने के कारण यह पंक्ति हटाई गई है।– मंच संचालक )

(नियम विरुद्ध होने के कारण यह पंक्ति हटाई गई है।– मंच संचालक )

देश रहा है ढूँढ ,प्रकट हो काली माई||

छीना सबका चैन,लूट ली सबकी रातें|

सपनों में भी हाय ,नोट्बंदी की बातें||

 ---

दोहा छंद

====================

अर्थ व्यवस्था हो गई ,कैसी आज बीमार|

जित देखो उत देखिये, लम्बी रोज कतार||

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10. आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी

उल्लाला छंद

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जन-जन का जो चैन है,बहुत हुआ बेचैन है

टाइम की दरकार है,चारों तरफ कतार है।

 

कुदरत का यह खेल है,सब जीवों का मेल है

सीखों चलना प्यार से,अब मत मारा मार से

जीवन की रफ़्तार है,चारों तरफ कतार है।

 

 

एक ज्योंहि आगे बढ़े, बाकी चाल वही गढ़े

सबका यह ही हाल है,सबकी यह ही चाल है

हुआ भेड़-व्यवहार है,चारों तरफ कतार है।

 

खड़े हुए सब रो रहे,अपना आपा खो रहे

अब धन से है वास्ता,सूझ रहा कब रास्ता

मचती मारा-मार है,चारों तरफ कतार है।

 

अनुशासन का ढंग है,या दिक्कत का संग है

कुदरत की यह देन है,या टाइम का गेन है

मचती हाहाकार है,चारों तरफ कतार है।

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11. आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी

"महिमा कतार की" (मनहरण घनाक्षरी)

===========================================

आबादी ने दिन्ही भीड़, आराजकता भीड़ ने,

आराजकता से बनी, व्यवस्था कतार की।

राशन की दुकान हो, बैंकों का भुगतान हो,

आवंटन मकान का, महिमा कतार की।

देना हो जो इम्तिहान, लेना हो या अनुदान,

दर्श हो भगवान का, छटा है कतार की।

दिखलाओ चाहे मर्ज, लेना हो या फिर कर्ज,

वोट देना नोट लेना, धूम है कतार की।।

 

लागे इंद्रधनुष सी, बने घाटियों में जब,

न्यारे न्यारे वरणों की, फूलों की कतार है।

मन में उमंग भरे, नील गगन में जब,

खींचे रेखा बगुलों की, उड़ती कतार है।

व्यवस्था कतार करे, देवे अनुशासन ये,

धैर्य की भी पहचान, सुघड़ कतार है।

माचे खलबली घोर, छाये चहुँ ओर शोर,

नियंत्रित कर लेवे, भीड़ को कतार है।।

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12.आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

दोहा छंद                          

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पाप कर्म इतने किए, मनुज बना शैतान।

पंक्ति बड़ी है नर्क की, स्वर्ग लोक सुनसान॥

 

अनुशासित हैं चीटियाँ, चलती बना कतार।

लड़ती  हैं ना ये कभी, आपस में है प्यार॥....................... संशोधित 

 

उल्लाला छंद

=============================

भिक्षुक बाहर पंक्ति में, रिरियाते इंसान से।

अंदर भिक्षुक हैं बड़े, माँग रहे भगवान से॥

 

खड़ी बैंक की पंक्ति में, कुछ गोरी कुछ कालियाँ।

छेड़ छाड़ ना कीजिए, देंगी चप्पल गालियाँ॥

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विषय आधारित छंद मुक्त प्रस्तुतियां

==============================

नोट बंदी की देख सफलता, सदाचारी को आस है।

पंक्ति में कभी खड़े न हुए वो, भ्रष्टाचारी निराश हैं॥ [1]

 

पंक्ति बना बेईमान खड़े, क्या खूब मचा है हाहाकार।

समझ गये हम सही राह पर, निकल पड़ी अपनी सरकार॥ [2]

 

दाढ़ी बड़ी कपड़े भी फटे हैं, जर्जर उसकी काया है!

नाखून बड़े पागल दिखता, मुश्किल से नाम बताया है!!

कुछ लोग उसे पहचान गये, ये बंद नोट की माया है!!!

नवम्बर नौ से पंक्ति में था, सोलह को वापस आया है!!!! [3]

 

जब नोट पड़ोसन के बदले, तो मिलने आई रात !!

बीबी अचानक जाग गई, दोनों को मारी लात !!!! [4]

 

छोटी बड़ी खुशियों के लिए, जीवन भर लगे कतारों में।

उठो देखो तुम आगे हुए, पीछे हैं लोग हजारों में॥ [5]

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13. आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी

क्षणिकाएँ

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(1)

टिकट विण्डो

के बाहर

खड़ी कतार

टिकट ही नहीं खरीदती

शुभ-अशुभ

यात्रा के संयोग भी

खरीदती है।

(2)

राशन की दुकान पर

खड़ी कतार

जानती है

उन्हें कम राशन मिलेगा

फिर भी घंटों खड़े रहने पर

सरकारी नीति सहती है।

(3)

सरकारी अस्पताल में

मुफ्त दवा के केन्द्र पर

खड़ी लंबी कतार

कभी न स्वस्थ

होने का दाम चुकाती है।

(4)

नोट बंदी से

उपजी

बैंको के बाहर

लंबी कतारों में

कोई नोट के बदले

लाश को घर ले जा रहा है।

(5)

आज पूरा देश

कतार में खड़ा है

क्योंकि

बरसों बाद

कालाधन बाहर

आया है

गरीबों को कतार में

खड़ा करने के लिए।

(6)

नई भर्ती

के लिए

लगी लंबी

युवाओं की कतारें

देश की

बेरोजगारी के मुख पर

कालिख पोत रही है।

(7)

देश कतार में

खड़ा है

गुस्सा, आक्रोश

लाठी चार्ज

और ललकार को

सहते हुए

शायद

अच्छे दिन आएँगे।

(8)

सरकार ने

हमें कतार में

ला खड़ा कर दिया है

क्योंकि-

कालाधन बाहर

आ गया है

लेकिन वो खुद

कैशलेस ट्रांजेक्शन

सिखाने में लग गई है।

 

(9)

हम सब

कतार में खड़े होकर

मक इन इंडिया

स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत

और डिजीटल इंडिया बना रहे हैं।

(10)

स्वच्छ भारत मिशन

एक क़दम स्वच्छता की ओर

एक कदम कतार की ओर।

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14. आदरणीय सुशील सरना जी

कतार (अतुकांत)

=========================

भाई साहिब, ठहरिये

मुझ पर

थोड़ा कीजिये उपकार

ब्याह मेरा रुक जाएगा

गर ए टी एम की

ख़त्म न हुई

कतार

सर

बहुत ज़बरदस्त है

नोटों की दरकार

बच्चे की फीस है

बीमारी की टीस है

साली को घुमाना है

बीवी को मनाना है

गृहस्थी को चलाना है

निमंत्रण में

सगन भी दे के आना है

मन

बिन पैसे लाचार है

भाई साहिब

सच मानिये

इतनी सारी समस्याएँ

और इतनी लंबी कतार

सर

बहुत ज़बरदस्त है

नोटों की दरकार

नोटबंदी के छिड़काव से

अजब तमाशा हो गया

बिलों में सोया

काले धन का नाग

चुपचाप बाहर हो गया

स्याह चेहरे ज़र्द हो गए

काले कर्म

उजागर हो गए

मगर कहीं कही

दैनिक ज़िन्दगी रुकने लगी

कहीं मज़दूर परेशान था

कहीं आम आदमी हैरान था

कैसे होगा

बिन पैसे

बेटी का ब्याह

बीमार का इलाज़

अंतिम संस्कार

भाई साहिब

मजबूरी है

करना तो सब पड़ेगा

भ्रष्टाचार मुक्त हिंदुस्तान के लिए

थोड़ा दुःख सहना पड़ेगा

हर समस्या का निदान हो जाएगा

जानते हैं

हर इंसान को

हर काम के लिए

नोटों की दरकार है

ये ऐ टी एम की कतार तो

कल मिट जाएगी

नोटों की किल्लत भी

दूर हो जाएगी

मगर

भ्रष्टाचार न रुका तो

काले धन की आंधी

कभी रुक न पायेगी

और अंजाम

भ्रष्टाचार मुक्त

वो सुबह कभी न आएगी

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15. आदरणीय मुनीश तन्हा जी

ग़ज़ल

==========================

हर तरफ चलती कतार है

जुल्म को खलती कतार है

 

इक अजब सा शोर हर तरफ

खून से पलती कतार है

 

हक नही मिलता गरीब को

हाथ क्यूं मलती कतार है

 

नौजवां बेरोजगार सब

धूप सी ढलती कतार है

 

देश के मुददे हवा हुए

है अमन जलती कतार है

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16. आदरणीय महेंद्र कुमार जी

उगती हुई कतारें (अतुकांत)

============================

उगायी जा रही हैं कतारें

झरनों, पहाड़ों, झीलों

और जंगलों के बीच

शुष्क, बंजर, पथरीली

निर्मम और अँधेरी

दिखाये जा रहे हैं ख़्वाब

सड़कों से चल कर................ संशोधित 

आने वाली रौशनी के

जो लायेगी जीवन में

ख़ुशियों की बहार

जगायी जा रही है उम्मीद

आने वाले बेहतर कल की

जिसमें नहीं होगी कोई कमी

रोटी, कपड़े, मकान की

जिसमें मिलेगा सभी को

समान अवसर

पढ़ने, लिखने, खेलने का

होगी पूरी इच्छा

स्वस्थ और सुखी जीवन की

होगा नया निर्माण

एक चमकते देश का

जिसमें नहीं होगी जगह

किसी भ्रष्टाचार की

बस, आपको करना है तो इतना

कि इन लम्बी-लम्बी कतारों में

लग जाना है चुपचाप

बिना कोई आवाज़ किये

और कोई प्रश्न

सीमा पर खड़े

उन सैनिकों की भांति

स्कूल में पढ़ने वाले

इन बच्चों की तरह।

ये कतारें हर रूप

और रंग की हैं

विविधता से परिपूर्ण

ठीक वैसी ही

जैसी इन्हें उगाने वाला

चाहता है

अपनी ज़रूरत के अनुसार।

भूख़े, बीमारों, लाचारों

अशक्तों, निहत्थों

और मजदूरों की ये कतारें

सदियों से इसी तरह

हर मौसम, हर देश में

उगायी जा रही हैं

हर उस जगह पर

जहाँ की मिट्टी से

विकास की संभावनाओं भरी

भीनी-भीनी ख़ुशबू आती है

पर...

कौन उगाता है इन कतारों को?

कौन करता है इनकी खेती?

ये कतारें उगाने वाला आख़िर

कतारों में नज़र क्यों नहीं आता?

कहीं वह देवता तो नहीं?

तुम्हारे ही हाथों बनाया हुआ?

कहाँ जाती हैं ये

नीरस और बोझिल कतारें

मंज़िल से पहले

उन सभी को छोड़

इस्तेमाल के बाद

जो अपना सब कुछ त्याग

लगे रहे बरसों तक

इन्हीं कतारों में

तपस्या करते हुए?

क्यों लगती है इन कतारों में

दबे और कुचले

अनुशासितों की ही भीड़

जो बन चुके है मशीन...................... संशोधित 

आधे से भी ज़्यादा

कतार में खड़े-खड़े?

कतारों में जान गंवाने वाले ये लोग

जो हो गए हैं शहीद

बिना किसी मुकम्मल शोर के

क्या पहुँच गए हैं स्वर्ग

बकरे की तरह यज्ञ में बलि देकर?

याद रखना...

अफ़ीम के जैसी ये कतारें

तब तक उगायी जाएँगी

जब तक बन्द नहीं कर दोगे तुम

अपनी आँखों से देखना झूठा ख़्वाब

और उनमें पलती खोखली उम्मीद!

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17. आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी

लाइन तोड़

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कतारें

हर जगह कतार में आएं।

स्टेशन , एयर पोर्ट ,

सिनेमा और मंदिर में भी ,

कुछ लेने के लिए तो है ही ,

कुछ देने के लिए भी कतार में आएं।

शिष्टाचार , व्यवस्था की विवशता

या दोनों के नाम पर

अत्याचार और अव्यवस्था ?

कतारें भी ऑनलाइन हो सकतीं हैं ,

होती ही हैं , कुछ तो होती हैं।

कतार से अलग , लाइन से हट कर

चलने का अलग ही मजा है।

लाइन तोड़ने में मजा है ,

एक कैडेट, सिपाही , फ़ौजी

से पूछो " लाइन तोड़ " में क्या है ?

कितना मजा है।

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18. आदरणीय समर कबीर जी

दोहे

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इक लाइन में आ गये, तीतर लवे बटेर ।

खड़ा शिकारी ताक में,मौला करना ख़ैर ।।

 

क़तरा क़तरा देखिये,जमा किया था ख़ून ।

चूस लिया सब आपने,चुप है क्यों क़ानून ।।

 

आठ नवम्बर को हुआ,सरकारी ऐलान ।

जनता खड़ी कतार में,है अब तक हैरान ।।

 

ख़ाली पीली बोम है, अच्छे दिन की यार ।

अपनी रोटी सेंकते,नेता जी हर बार ।।

 

हमको तो आये नज़र,मुफ़लिस या बेजान ।

देखा लाइन में कहीं, तुमने इक धनवान ।।

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19. आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी

 गजल

 =====================================

आदमी कहाँ कहाँ  क़तार में खड़ा हुआ

मौत  का लिए निशाँ कतार में खड़ा हुआ .............. संशोधित 

 

भीड़ इस कदर जमा कि जिस्म तक मसान में

कफ्न का लिए निशाँ कतार में खड़ा हुआ

 

फूल को हवा मिले कली सदा रहे जवाँ

फिक्रमंद बागबाँ क़तार में खड़ा हुआ

 

हो रहा है अर्थ का विकास अब गली-गली

वृद्ध हो कि हो जवाँ कतार में खड़ा हुआ

 

आ गया मैं तंग ऐसी जिन्दगी की जंग से

हूँ इसीलिये मियाँ क़तार में खड़ा हुआ

 

देखकर हूँ दंग इतनी भीड़ स्वर्ग पंथ में

नर्क ही सही  यहाँ कतार में खड़ा हुआ............... संशोधित 

 

तू अजीब शै तुझे तो ढूंढते रहे सभी

दीद को मैं हमनवाँ कतार में खड़ा हुआ

-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

20. आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी

विषय आधारित प्रस्तुति

==========================

पंक्ति एक जीवन है

साथी पंक्ति एक जीवन है ।

दीन-हीन पंक्ति का कैदी, धरती का ठीवन है ।।

दो जून पेट का ही भरना, दीनों का तीवन है ।

आजीविका ढूंढते यौवन, शिक्षा का सीवन है ।।

यक्ष प्रश्न आज पूछथे क्यों, धन बिन क्या जीवन है ।

आँख मूंद कर बैठे रहना, राजा का खीवन है ।।

--------------------------

गीत

===============

सेठों को

देखा नही,

हमने किसी कतार में

 

फुदक-फुदक कर यहां-वहां जब

चिड़िया तिनका जोड़े

बाज झपट्टा मार-मार कर

उनकी आशा तोड़े

 

जीवन जीना है कठिन,

दुनिया के दुस्वार में

 

जहां आम जन चप्पल घिसते

दफ्तर-दफ्तर मारे ।

काम एक भी सधा नही है

रूके हुयें हैं सारे

 

कौन कहे कुछ बात है,

दफ्तर उनके द्वार में

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

21. आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी

दोहा छंद

=============================

पूछ रहा है देश यह , ऐ मेरी सरकार |

घटा कहीं क्या देश में, बोलो भ्रष्टाचार ||

 

लम्बी-लम्बी ना सही, फिरभी लगी कतार |

अपने ही धन के लिए, जन-जन है लाचार ||

 

नोट-बदल को दे दिया, नोटबंद का नाम |

हुई मौत बेवक्त ही , दुखद मिला परिणाम ||

 

मर्ज कर्क का है मगर , लम्बी देख कतार |

नित्य बदल औषधि नयी, करते वे उपचार ||

 

चोरों को पकड़ा नहीं, किया न एक प्रयास |

सौ करोड़ का कर दिया, पलभर में उपहास ||

-------------------------------------------------------

कुण्डलिया छंद (आदरणीया राजेश कुमारी जी की प्रस्तुति पर प्रतिक्रिया छंद)

=========================================

मन की पीड़ा आपने, लिख डाली है आज |

देखा जब व्याकुल खडा , पूरा देश समाज ||

पूरा देश समाज, नगद बिन सँभल न पाए,

तर्क खोजता पक्ष , विपक्षी शोर मचाए,

खुलती है अब रोज, पोल बस काले धन की,

निर्धन लगा कतार, सुने जब बातें मन की ||

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

22. आदरणीय सतीश मापतपुरी जी

विषय आधारित प्रस्तुति

==================================

यह पुराना मर्ज है, रच - बस गया विचार में ।

आज की नहीं बात है, कब से खड़े हैं कतार में ।

स्कूल हो - कॉलेज हो, या क्रिकेट का ही पास हो।

वो अस्पताल की भीड़ या, जिओ सिम की ही आस हो ।

हर जगह लाइन लगे, राशन में या आधार में ।

आज की नहीं बात है, कब से खड़े हैं कतार में ।

शोर आखिर क्यों मची है, फिर लगी है कतार यूँ ?

हाय तौबा क्यों लगी है, हो रही चीत्कार क्यूँ ?

अब ना कोई साथ देगा, काले भ्रष्टाचार में ।

आज की नहीं बात है, कब से खड़े हैं कतार में ।

कष्ट तो आदत है  अपनी, और भी सह लेंगे कुछ ।

अब सुबह दिखने लगी है, बच गयी है रात कुछ ।

काले धन की डोंगी डूबेगी ही, अब मंझधार में ।

आज की नहीं बात है, कब से खड़े हैं कतार में ।

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

23.आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी

दोहा छंद

=================================

नोट बंद जब से हुआ, लम्बी लगी कतार

बैंकों में मुद्रा नहीं, जनता है लाचार|

 

लम्बी लम्बी पंक्ति है, खड़े छोड़ घर बार

ऊषा से संध्या हुई, वक्त गया बेकार |

 

दो दो हज़ार नोट सब, गायब छोटे नोट

चिंतित है सब नेतृ गण, कैसे मिले वोट |

 

सोते थे जो नोट पर, हुए सब बेकरार

(पंक्ति नियम विरुद्ध होने के कारण हटाई गई हैं- मंच संचालक)

 

(पंक्ति नियम विरुद्ध होने के कारण हटाई गई हैं- मंच संचालक)

आतंक और नेतृ गण, सबके धन बेकार

 

व्याकुल है नेता सकल, कैसे होगा पार

बिकता वोट चुनाव में, होता यह हर बार |

 

सचाई और शुद्धता, प्रजातंत्र आधार

नेता सभी बना दिया, उसको इक व्यापार |

 

जनता करे कतार में, चुपचाप इंतज़ार

संसद में नेता सकल, विपक्ष का हुंकार |

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

24. आदरणीया कल्पना भट्ट जी

कतार

==========================

मकानों की कतारों में

खो गये है रिश्ते नाते ।

रहता कौन है आस पास

देखता नहीं कोई आते जाते ।

 

हर घर में लगे ताले है

हर कमरे में लोग न्यारे है

होते हैं साथ साथ मगर

अपनों से अनजाने है ।

 

लगी कतारें हर जगह मगर

लोग सभी अनजाने है

जानो तो यह जान जाओ

दुनिया के बहुत फ़साने है।

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

25. आदरणीय सुरेश कुमार ‘कल्याण’ जी

कतार (दोहा छन्द)

==================================

भोली जनता देश की, लोग रहे बहकाय।

जन-जन खड़ा कतार में, रुपिया कबहूँ आय।1।

 

परिवर्तन का दौर ये, कहती है सरकार।

रुपया-पैसा ना मिला, सरकी नहीं कतार।2।

 

धनवानों की भीड़ में, निर्धन हैं लाचार।

लाले रोटी के पड़े, घटती नहीं कतार।3।

 

भारत में जबसे हुए, बन्द पुराने नोट।

जनता लगी कतार में, जैसे डालें वोट।4।

 

उड़ते हुए कतार में, पंछी दें संदेश।

सबके हैं धरती गगन, बदलो ना मुख भेष।5।

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

26. आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी

क्षणिकायें

===================

 

[१]

 

प्लास्टिक कचरे से परेशान

हाइटेक होता इन्सान

घर-घर में सेंध मारता

विदेशी सिंथेटिक शैतान

स्वच्छता अभियान में

अब बटुये में

प्लास्टिक मनी

पॉलीमर नोट कतार में

आधुनिकता की चादर ओढ़े

'मैं' भी कतार में!

 

[२]

 

नई सोच

नई विधियाँ

जुगाड़बाज़ों की

नोटों की मण्डी में

यथार्थ से आभासी

दुनिया में

भ्रष्टाचारी कतार में

तकनीकी ज्ञान/अल्प ज्ञान समेटे

'मैं' भी कतार में!

 

[३]

 

ओह

'स्वप्न दोष' व 'शीघ्र पतन'

की बीमारी

'राजनीति' या 'सत्ता' की लाचारी

नोटों के व्याभिचारी

येन-केन-प्रकारेण कतार में

वैश्वीकरण के दौर में

होड़बाज़ी की चपेट में

'मैं' भी कतार में!

---------------------

हाइकू

====

 

[१]

 

मुद्रा व भ्रष्ट

नवीन अवतार

कपि-कतार

 

[२]

 

व्याधि सत्कार

नकलची कतार

भार व वार

 

[३]

 

नैया खेवैया

सूरज नमस्कार

कतारबद्ध

 

[४]

 

आँखों में पट्टी

मैं खड़ा कतार में

स्वप्न संजोये

 

[५]

 

लम्बी कतार

कन्या भ्रूण हत्यायें

टूटते मोती

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

समाप्त 

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बेहतरीन विषय पर सफल आयोजन, संचालन व उत्कृष्ट संकलन प्रस्तुति पर बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय मंच संचालक महोदय व सभी सहभागी रचनाकारों को। गंभीर, चटपटी व विचारोत्तेजक कटाक्ष पूर्ण रंग-बिरंगी रचनाओं से परिपूर्ण इस संकलन में मेरी हठात लिखी गई दोनों रचनाओं को स्थापित करने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।

__शेख़ शहज़ाद उस्मानी

हार्दिक धन्यवाद आपका 

आदरणीय मंच संचालक महोदय,मिथिलेश वामनकर जी ओ बी ओ लाइव महा उत्सव अंक ७४ के आयोजन एवं सफल संचलन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस आयोजन दौरान  बहुत कुछ  सीखने को मिला है अतएव मंच का एवं आपका आभारी हूँ  तथा  आयोजन में सम्मिलित समस्त रचनाओं को संकलित कर मंच पटल पर उन्हें त्वरित प्रस्तुत करने के लिए आपका हृदयतल  से आभार व्यक्त करता हूँ.   

हार्दिक धन्यवाद आपका 

कार्यक्रम के सफल संचालन एवं रचना-संकलन हेतु बधाई प्रेषित है आदरणीय मिथिलेश जी।यथानिवेदित, कृपया मेरी गजल के 5वे शेर के सानी को निम्नवत कर सकें,तो अच्छा होगा:
'है खुदरे की मार यहाँ पर।'

हार्दिक धन्यवाद आपका 

यथा निवेदित तथा प्रतिस्थापित 

आभार

आ० मिथिलेश जी , सादर अभिवादन . कृपया निम्न रेखांकित के अनुसार गजल में सुधार करना चाहें . सादर .  

 

आदमी कहाँ कहाँ  क़तार में खड़ा हुआ

मौत  का लिए निशाँ कतार में खड़ा हुआ 

देखकर हूँ दंग इतनी भीड़ स्वर्ग-पंथ  में

नर्क ही मिले   यहाँ कतार में खड़ा हुआ

हो जमीं या आस्माँ  कतार में खड़ा

हार्दिक धन्यवाद आपका 

यथा निवेदित तथा प्रतिस्थापित 

आदरणीय मिथिलेश भाईजी
महा उत्सव ७४ के आयोजन सफल संचालन और संकलन हेतु बधाई और शुभकामनायें। निम्न दोहे को संकलन में प्रतिस्थापित करने की कृपा करें।
अनुशासित हैं चीटियाँ, चलती बना कतार।
लड़ती हैं ना ये कभी, आपस में है प्यार॥
सादर

हार्दिक धन्यवाद आपका 

यथा निवेदित तथा प्रतिस्थापित 

मुहतरम जनाब मिथिलेश साहिब , ओ बी ओ लाइव महाउत्सव अंक -74 के त्वरित संकलन और कामयाब संचालन के लिए मुबारकबाद
क़ुबूल फरमाएं ---

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