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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-74

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 74 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब शकील "बदायूँनी" साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
" ये सहर भी रफ्ता रफ्ता कहीं शाम तक न पहुंचे "

फइलातु     फाइलातुन   फइलातु    फाइलातुन

1121            2122       1121        2122

(बह्र:  रमल मुसम्मन् मशकूल )
रदीफ़ :- तक न पहुंचे 
काफिया :- आम (शाम, बाम, अवाम, पयाम आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 अगस्त दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 अगस्त दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 अगस्त दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीया राजेश दीदी, आपकी ग़ज़ल पर विस्तृत चर्चा भी हो गई और आपने संशोधित ग़ज़ल भी प्रत्युत्तर में पोस्ट कर दी. अब कहने को बस एक ही बात बची है. वाह वाह. इस शानदार ग़ज़ल पर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर नमन 

मिथिलेश भैया,संशोधित ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया ने बहुत आश्वस्त किया है आपकी इस दाद ने मेरा श्रम सार्थक कर दिया दिल से बहुत बहुत आभार शुभकामनाएँ| 

मेरे कहे के अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार दीदी 

आदरणीया राजेश जी ,  दूसरे शे र के सानी मे लिये ---  जो मफ्हूम    की मात्रिकता देख लें  एक बार ।

आद० गिरिराज जी इस शब्द के बारे में मैंने यहाँ किसी से राय ली थी जिसने १२१ बताया अब आपने टोका तो मुझे भी सोचना पड़ेगा आद० समर कबीर भाई जी से और राय  लेती हूँ वो क्या कहते हैं |

संशोधित ग़ज़ल खूब हुई है, आदरणीय गिरिराज सर का इशारा भी सही है

जी बहुत बहुत आभार आद०  गिरिराज जी ने  सही कहा यहाँ मफ्हूम लफ्ज़ मुनासिब नहीं मूल पोस्ट में चेंज  कर दिया है| 

दूसरे शैर को इस तरह किया जा सकता है:-
"वो लिखें तो क्या लिखेंगे,जो लिखा तो फ़ायदा क्या
जो है भाव उस ग़ज़ल का,तो अवाम तक न पहुंचे"
तीसरे शैर में सही शब्द है "फ़स्ल"देखियेग ।
चौथे शैर में "बाम"का अर्थ होता है "छत"इस अर्थ का लाल समंदर और मछेरे से क्या मतलब ?
गिरह का शैर ठीक है ।
आख़री शैर भी ठीक है,बस 'खिज़ां' को "खज़ां" कर लें,कि सही शब्द यही है । बाक़ी शुभ शुभ

आद० समर भाई जी आप मेरी संशोधित ग़ज़ल पर आये आपका बहुत बहुत शुक्रिया |

इस शेर को यूं किया है -

वो लिखे तो क्या लिखेगा ,जो लिखा तो फ़ायदा क्या

वो  किताब या रिसाले ,तो  अवाम तक न पंहुचे 

बाम का अर्थ भाई जी भोर Dawn भी होता है इसे उसी सन्दर्भ में लिया है |

जी  खज़ां का लूँगी  

रही बात फ़स्ल की तो भाई जी हिंदी में फसल ही होता है फिर यहाँ फ़स्ल फिट भी नहीं बैठेगा इसलिए फसल ही चलेगा | आपका दिल से शुक्रिया 

वो किताब या रिसाले.....यह शैर अब ठीक हो गया लेकिन "बाम" का अर्थ जो आपने बताया है वो आज तक मेरी नज़र से नहीं गुज़रा...उर्दू डिक्शनरी में "बाम" के यह अर्थ लिखे हैं :-
1) साँप की शक्ल की मछली
2) बाला ख़ाना (छत)
3) कोठा
4) सुब्ह (सवेरा)

आदरणीय समर साहब, सुब्ह और भोर तो एक ही हुए न ? फिर तो आदरणीया राजेश कुमारीजी भी सही हैं. 

:-))

जी बिल्कुल "भोर "पर ध्यान नहीं गया मेरा ।

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