आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
लघुकथा
-------------
पछतावा
------------
पड़ोस में रामदीन के घर से घुटी घुटी सी रोने की आवाज सुनकर खुद को जाने से रोक नहीं पाया।
रामदीन अपने पिता जी के मृत शरीर के पास सिर पर हाथ रखे बैठा था।
मैंने पर्याप्त दूरी रखते हुए पूछा, "रामदीन.. क्या भाई साहब.. कोरोना के कारण...??"
"नहीं अंकल पापा तो तीन चार दिन से घर में समाप्त राशन को देख कर घर का सामान लाने बाहर निकले थे पर पुलिस वालों ने बिना कुछ सुने जो मारा तो एक लाठी सिर पर लग गई... पापा किसी तरह घर तक तो पंहुचे पर पंहुच ही न पाए...."
"तो अब दाह संस्कार...??"
"क्या करूँ अंकल..श्मशानघाट पर तो कोरोना वालों के शवों का ही दाह संस्कार नहीं हो पा रहा है.. लम्बी लाइन लगी हुई है..बिना संबंधियों के उस ढेर में कैसे पापा को छोड़ आता..." कहते हुए आंगन में लगे हुए एक मात्र पेड़ के कटे हुए ठूंठ पर सिर रख कर रोने लगा जिसे उसने कुछ ही दिन पहले नया फोन खरीदने के लिए बेच दिया
था।
मौलिक व अप्रकाशित
सादर नमस्कार। मंच गोष्ठियों की हीरक जयंती का आग़ाज़ करती बढ़िया समसामयिक लघुकथा का हार्दिक स्वागत। हार्दिक बधाई आदरणीया कनक हरलाल्का जी। शब्द 'कोरोना' विज्ञान जगत में पुराना होते हुए भी समसामायिक है लेकिन रचना को सीमित काल में बाँध देता है। संदेश दोहरे हैं, गुँथे हुए हैं आपस में.. पछतावा भी... माहौल की विसंगतियाँ... विवशता भी। बहुत ही मार्मिक। यह भी एक संयोग है कि हीरक जयंती वर्ष में हमने अपने बहुत से साहित्यिक हीरे भी खोये हैं और हमारे दायित्व बढ़ गये हैं।
हार्दिक आभार उस्मानी सर ...।कथा पर आपकी समर्थनात्मक टिप्पणी उत्साहित करती है ।
आदरणीय कनक हरलालका जी, आप की लघुकथा बहुत बढ़िया हुई हैं. आप ने एकसाथ कई विसंगतियों का निर्वहन करते हुए बेहतरीन लघुकथा लिखी है. वास्तव में कोरोनाकाल में ऐसे कई हादसे हुए है जिस से इंसानियत शर्मसार हुई हैं. आप को हार्दिक बधाई इस बेहतरीन लघुकथा के लिए.
हार्दिक आभार सर..कथा पर आपकी प्रोत्साहन दायक टिप्पणी के लिए धन्यवाद..
आ. कनक जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई।
हार्दिक बधाई कनक जी। बेहतरीन लघुकथा।
सर्वप्रथम इस हीरक जयंती उत्सव का फीता काटने के लिये बधाई आदरणीया कनक जी। रचना सामयिक मुद्दे को उठा रही है। निर्वहन भी आपकी शैली ने शानदार किया है। बधाई
लघुकथा एक साथ कई विन्दुओं पर विमर्श के लिए स्थान छोड़ रही है, अच्छी लघुकथा हुई है, बधाई इस प्रस्तुति पर स्वीकार करें आदरणीया।
बहुत समसमयिक रचना कनक जी
शुभ प्रभात,कनक हरलालका, लघुकथा के स्वरूप को सही से समझे बिना लघुकथाकार होना , मुझे लगता है, सम्भव नहीं है। और, यह प्रस्तुति उक्त मान्यता को सही सिद्ध करती है।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |