आदरणीय साथियो,
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हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी।सुन्दर रचना।
कलम का कहर
मोहल्ले के महिला प्रशिक्षण केन्द्र पर आने वाली महिलाओं को स्वावलंबी बनने के साथ उन्हें अपनी जिन्दगी में अधिकारों की ताजी हवा में जीने की उम्मीद की रोशनी भी दिखाई जाती हैं। महिलाओं का बेड़ियां तोड़कर अपना स्वतंत्र अस्तित्व को रेखांकित करना मर्दों के शान के खिलाफ चोट पहुंचा रहा था। रोजमर्रा की तरह सभी अपने कार्यों से व्यस्त थी कि तभी धड़ल्ले से अंदर आते गाली-गलोच करते हेतराम ने अपनी पत्नी सुखवन्ती का हाथ पकड़ घसीटते हुये बाहर सड़क पटक दिया।उसके साथ आए और आठ-दस लोगों ने पथराव के साथ उसके इस अभद्रता का समर्थन करते हुये संचालिका अवन्ति के खिलाफ नारे लगाने लगे।
अवन्ति ने धैर्यता के साथ विनम्रता से हेतराम को समझाने की कोशिश की लेकिन वो साथ वालों के साथ उस पर उल्टा अशिष्ट शब्दों की बौछार करने के साथ सुखवन्ती को पीटने लगा।
अवन्ति का अपमान और सुखवंती पर अत्याचार होते देख आपस में महिलाओं की ऑखों के रेशे लाल हो गये।आगे बढ़कर महिला ने रोती-बिलखती सुखवन्ती को उठाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि हेतराम ने उसे भद्दी गाली देकर मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि साथ खड़ी महिलाओं ने जमीन पर पड़े पत्थर उठाकर पलटवार दुत्कारते हुये कहा, 'हमारी लज्जा को मत ललकारों! हाडमांस की कठपुतली में हक के लिए संघर्ष के तेल में चिन्गारी लग चुकी हैं।'
'अपने अहंकार से बुझाने की कोशिश भी मत करना...वरना सृष्टि रचयिता, वक्त पड़ने पर संहार भी कर सकती हैं।'
महिला चेतना का करारा प्रहार देख हेतराम के साथ लोगों के बढ़ते कदम जमीन पर जैसे धंस-से गये।
सिसकती सुखवंती के चारो ओर से सुरक्षा घेरा बनाकर दुत्कारते हुये हिकारत भरी दृष्टि से कठोरात्मक लहजे में कहा, 'शब्दों को गढ़ना ही नहीं ,उनकी ताकत दिखाना भी आता हैं।'
स्वरचित व अप्रकाशित हैं।
बबीता गुप्ता
आ. बबीता बहन सादर अभिवादन । प्रदत्त विषय पर कथा लिखने के लिए बधाई , लेकिन यह कथा आपके स्तर के अनुरूप बिलकुल नहीं है । इसे पढ़कर लग रहा है कि यह किसी नवसिखिये ने लिखी है । कथा में तमाम त्रुटियों के साथ साथ तारतम्य का अभाव है । इसमें बहुत कार्य करने की आवश्यकता है । सादर...
नमन, आदरणीया बबिता जी, आपकी लघुकथा का फोकस महिला सशक्तिकरण है, न कि लेखक / लेखिका और उनकी रचनात्मक सोच! जबकि विषय बिल्कुल स्पष्ट है ! यह सही है शिक्षा के बिना महिला सशक्तिकरण संभव नहीं किन्तु वह विमर्श है ! सो, आपकी लघुकथा विषय, "कलम के सिपाही" होने के परिदृश्य पर कुछ नहीं कहती । सादर
आदाब, बबीता जी ,धैर्य, स्वयं संज्ञा है, धैर्यता मैंने आज तक नहीं देखा! सादर
गोष्ठी में सहभागिता के लिए बधाई।शेष कहा जा चुका है।गौर करें।
हार्दिक बधाई आदरणीय बबीता जी। अच्छा प्रयास।
चोर की दाढ़ी में तिनका
सच्चा कलम का सिपाही था, राम भरोसे लाल! आकर अपने दुखों का रोना रोते लोग उसके पास आकर! कोई विधवा आती, कई वर्ष पूर्व सैनिक पति मर गया था!
लेकिन पत्नि को पारिवारिक पेंशन नहीं मिली, राम भरोसे लाल आर टी आई लगा देता! और विधवा को पैंशन दिलवाकर ही अफसरों का पीछा छोड़ता! ठेकेदार को सड़क निर्माण का भुगतान रातो - रात अफसरों ने पमाइश भी कर ली और गुण वत्ता भी जांच ली, हफ्ते भर में टोटल भुगतान हो गया!
बेचारे मजदूर अभी तक अपनी दिहाड़ी कम गिनी जाने की शिकायत कर रहे थे! राम भरोसे लाल ने पूरे प्रकरण आर टी आई की माँग कर डाली! मजदूरों का भी भाग्य था! राम भरोसे लाल की पैरवी पर मैजिस्ट्रेट ने जांच बैठ दी थी! भ्रष्ट बाबुओं
की जान पर बन आयी थी! अभी सुबह लोकल अखबार बाला चिल्ला-चिल्ला कर अपने अखबार बेच रहा थे ! राष्ट्र वंदना चौक भीड़ पर भीड़ उसके अखबार दनादन खरीद रही थी! खबर थी, राम भरोसे लाल को रात दस बजे दो नकाबपोश आये, उसके दरवाजे पर आवाज लगाई और दरवाजा खुलते ही राम भरोसे लाल को सर से सटा कर दो और दो गोली सीने में उतार दी!
मौलिक व अप्रकाशित
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर कथा का प्रयास अच्छा है , पर कथा कुछ और समय माग रही है। कई जगह त्रुटियाँ भी हैं । देखिएगा। फिलहाल इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
आ. चेतन जी , मुझे किस चीज का ज्ञान नहीं है ?
आदाब, मुसाफिर भाई जो मैंने लिखा आप स्पष्ट रूप से पढ़ सकते हैं, उद्धृत कर सकते हैं, इसमें कोई विवाद नहीं है ।
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