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एक लम्बी और बेहद घिनौनी साज़िश सिर्फ तन की सुंदरता को पाने के लिए ! बेहद दुखद विसंगति का यहां रोपण हुआ है। निजी स्वार्थ के लिए इंसान कहाँ तक गिर सकता है। बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय विजय जी इस सार्थ लघुकथा के लिए।
आप जैसे -जैसे obo के वातावरण में घुलेंगे आदरणीय विजय जी ,आपको स्वयं ही समझ में आने लगेगा की यहाँ साहित्य का अद्वितीय समागमों का अद्भुत संगम है। जो भी रचनाकार साहित्य के रस के मर्मज्ञ है ,उनके लिए ये दुनिया का सबसे सुन्दर और सार्थक स्थान है। सादर
जय हो.. सही बात !
आदरणीय विजय जोशी जी बढ़िया प्रस्तुति हुई है
कुटिल चाल
माँ समान भाभी के प्रति दुराचार मन में रखना और उसके लिए अपने भाई को दुर्घटना का शिकार करवा देना, गजब की चाल है| आपकी लघुकथाओं में कथानक हमेशा विशिष्टता लिए हुए होता है आदरणीय विजय जोशी जी सर| कृपया सादर बधाई स्वीकार करें|
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