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आदरणीया रीता गुप्ता जी प्रस्तुति पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
आ.सुशील सरना जी बढिया प्रस्तुति
आदरणीया नयना जी प्रस्तुति पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
आपकी रचना को पढ़ कर एक पुराने गीत की यह पंक्ति याद आ गयी, "कभी मंदिर में कभी महफ़िल में सजता ही रहा हूँ मैं...", इस प्रवाह युक्त चुस्त लघुकथा हेतु बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील सरना जी|
आदरणीय चंद्रेश जी प्रस्तुति के मर्म पर आपके आत्मीय स्नेह का हार्दिक आभार।
ये हकीकत है आज के रिश्तों नातों की, अनुष्ठान कोई भी हो ,बिना रिश्तेदारों के संभव नहीं ,क्यूंकि लोग क्या कहेंगे अगर वो लोग न आये तो।
वैसे न आये कोई बात नहीं ,लेकिन दिखावे के लिए साथ होना कुछ पल के ही सही।
ये सब तो चल ही रहा था लेकिन अब इन्हीं रिश्तेदारों में माँ बाप की भी गिनती हो गयी ये चिंतन का विषय है।
मन को चिंतन के लिए उद्वेलित करती सार्थक व सटीक लघुकथा। ढेरों बधाई आपको आदरणीय सुशील सरना जी।
आदरणीया कांता रॉय जी प्रस्तुति के मर्म पर आपकी स्वीकृति युक्त प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
बढ़िया कथा हुई हैं ...पर क्या इस कथा में कालदोष नहीं हैं आदरणीय!सादर नमस्ते
हाँ , आदरणीया सविता जी ,यहां " भोर होते ही देवनारायण जैसे ही आँगन में आया........... " का स्थापित होना कालखण्ड दोष रोपित कर तो गया कथा में। सही आकलन हुआ है यह। तकनीकों के प्रति आपकी सजगता मुझे बेहद पसंद आई। बहुत खूब ! इसके लिए भी आप बधाई की पात्र हो।
नमस्ते दिदिया ..बड़ी मुश्किल से किसी की कमी बोल पाए वह भी वरिष्ठ और अच्छे महान साहित्यकार की कथा में
आदरणीया सविता मिश्रा जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार एवं आपका सुझाव स्वागतेय है।
बहुत अच्छी लघुकथा रची है आ० सुनील सरना जी. हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
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