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हार्दिक बधाई आदरणीय रश्मि जी!बेहतरीन लघुकथा !मनुष्य के जीवन में अकसर ऐसे मौके आते हैं कि वह अपने आप को एक दोराहे पर पाता है और उसी स्थिति में उसे संकल्प रूपी सहारे का आभास होता है!सही वक्त पर लिया निर्णय ही सच्चा संकल्प साबित होता है!
आदरणीय रश्िम जी, जहां लघुकथा एक ओर अत्याचार, शाेषण, अन्याय, अनैतिकता एवं टूटते जीवन-मूल्यों का चित्र प्रस्तुत कर, बाहरी एवं आंतरिक विकृतियों को उजागर करती है वहीं दूसरी ओर सामाजिक व्यवस्था में जो भी 'ग़लत' हाे रहा है उसे देख 'सही' करने के प्रति प्रेेरित हो कुछ सोच सकने और समाज के गले-सड़े, बदबूदार हिस्सों को काट फेंकने हेतु प्रेरित भी करती है तां जो रोग दुबारा न हो सके। साथ्ा ही ये परम्परागत जीवन-मूल्यो जिनका आदर्श अनुपयोगी व निरर्थक माना जाने लगा है रिश्ते जो केवल अर्थ के दायरे में ही सिमट कर रह गए हैं, प्यार-स्नेह-ममत्व आदि भावनाएं जो अवमूल्ियत हो गई हैं, प्रणय जो मात्र वासना का प्रतीक रह गया है- ऐसे खोखले मूल्यों का उपहास उड़ाती है, उन्हें नकारती है तथा उन पर प्रहार करके नए जीवन-मूल्यों के लिए भूमि तैयार करती है। आपकी इस सशक्त व सार्थक लघुकथा में सूक्ष्म कथ्य को जिस शिल्प कौशल के साथ प्रस्तुत किया है उससे आपकी बात पाठक तक एकदम क्रिस्टल क्लीयर ढंग से संप्रेषित हो रही है। सुस्पष्ट संप्रेषणीयता आपकी प्रस्तुत लघुकथा की अभिव्यंजना-कौशल के शिल्प को एक अतिरिक्त विशिष्टता प्रदान कर रहा है। विषय से न्याय करती इस सफल कथा हेतु 'खुश कीता ई कुड़ीए' । सादर
वाह क्या बात है ये नारी की ही शक्ति है जो स्वंय को भी सम्भालना जानती हैअपने रिश्तों को भी ... प्रत्येक वैवाहिक संबंध को उतार चढाव से गुजरना ही पड़ जाता है कभी न कभी... समझदार वही जो क़दमों के लड़खड़ाने से पहले संभाल जाये... संकल्प शीर्षक को तो सार्थक किया ही है कथा ने साथ ही हम नारियों को आगाह भी कर दिया है... बहुत बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ इस दिल में उतरती कथा के लिए सखी... रश्मि जी..
बहुत ही बढ़िया लघुकथा कही है आदरणीया रश्मि जी, मानव मन की भावनाओं को समझने में स्त्री सक्षम होती है और वो भी एक समझदारी के संकल्प के साथ| बहुत ही खूबसूरती से इस लघुकथा के सृजन हेतु कृपया सादर बधाई स्वीकार करें|
भटकते कदमों को समझदारी से लगाम लगा, रोकने का संकल्प। बहुत सुन्दर विषय व प्रस्तुति । बधाई रश्मि तरीका जी।
जितना जल्दी इन संबंधों से निकल जाएँ उतना अच्छा । प्रदत्त विषय पर अच्छी प्रस्तुति , बधाई आपको
भटकन कैसी हो उसे चटकन लगनी ही चाहिए. भटक रहे मन को ऐसी ही चटकन की बात करती हुई इस लघुकथा ने दिल जीत लिया आदरणीया रश्मि जी. हार्दिक बधाई लीजिये.
लघुकथा कसाव में है और अपने उद्येश्य तथा प्रदत्त शीर्षक को संतुष्ट कर पाने में सफल है. हार्दिक बधाइयाँ व अशेष शुभकामनाएँ.
एक असहजपन ऐसा है जिसे सुधर जाना चाहिये -- मैंने कल कहा न तुमसे कि मुझे अब कोई बात नहीं करनी तुमसे
उपर्युक्त वाक्य में तुमसे का दो बार प्रयोग नहीं होना था. यह व्याकरण सम्मत नहीं है.
शुभेच्छाएँ
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