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चुटकुलानुमा कुछ भी लिख देने से लघुकथा नहीं बन जाती है। ये लघुकथा नहीं है क्योंकि इसमें कोई सार्थक सन्देश निहित नहीं है। लघुकथा मानकों पर ये खारिज की जाती है. सादर।
यह लघुकथा है भी नहीं आदरणीया। इसके नीचे मेरी टिप्पणी देखी होती तो आप यह बात हरगिज़ न कहती
maulik tatha aprakashit tippani
यह सिर्फ टिप्पणी है
मैंने एक मासूम सवाल पूछा था जो यहाँ पेस्ट है :
प्रिय महोदय, OBO सदस्य एक शब्द बारम्बार प्रयोग कर रहे हैं जिससे मुझे असुविधा हो रही है : …. लघुकथा हुई है
हुई है का क्या अर्थ ?
रची है / लिखी है / सृजित की है जैसे शब्द नहीं दिख रहे .
सभी सदस्य कृपया प्रकाश डालें
इसी थ्रेड मे था यह सवाल भी , मगर अफ़सोस किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। यहाँ तक कि live chat के में रुम में भी नहीं
आशा है स्थिति स्पष्ट हो गई होगी
मैं ऐसा समझता हूँ कि साहित्यिक रचना कही जाती है| इस बारे में वरिष्ठजन प्रकाश डालें तो ही उचित है|
जी चन्द्रेश। हम यहाँ रचनाकार हैं। शब्दों पर ध्यान तो देंगे ही। मेरा यह सवाल एक सार्थक तथा व्यापक चर्चा मांगता है मगर , बहुत देर से कहीं से कोई जवाब नहीं आ रहा। शायद सब व्यस्त हैं। थोडा इंतजार कर लेते हैं
और कांता जी लघुकथा की यह परिभाषा कहाँ से आई कि सार्थक सन्देश जिस रचना में निहित न हो वह लघुकथा नहीं होती ?
तो सुनिए महोदया हालाँकि मैंने टिप्पणी के रूप में इसे गढ़ा था और मैं इसे अभी भी चुटकुला ही कह रहा हूँ मगर कोई बताएगा कि यह लघुकथा के किस मानक पर खरा नहीं उतरती ?
अगर इसे लघुकथा नहीं मानना तो यह स्वीकार करना ही होगा " हुई है " का प्रयोग उचित नहीं है। अगर यह कहना साहित्यिक है " लघुकथा हुई है " तो यह मेरा यह चुटकुला निस्संदेह ही लघुकथा है।
धृष्टता के लिए क्षमा भी चाहता हूँ। निवेदन यह कि विद्वान इस टिप्पणी पर सिर्फ मानक की ही बात करें
आ० प्रदीप नील जी, बेहतर होगा कि हम लोग इस आयोजन में केवल इसमें सम्मिलित रचनायों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करें I लघुकथा विधा के विभिन्न पहलुयों पर बात करने के लिए एक अलग समूह मंच पर मौजूद है I
जो आज्ञा प्रभाकर जी।
कृपया समूह का नाम बताएं , मैं उधर हाज़िर हो जाता हूँ
धन्यवाद
आदरणीय प्रदीप नीलजी, इस मंच का नाम ओपन बुक्स ऑनलाइन है. इस व्यवस्था (साइट) को हम सभी सदस्य मंच कह कर ही सम्बोधित करते हैं. आप भी इसे मंच ही कहेंगे.
सधन्यवाद
आपका प्रश्न बिल्कुल सही है, लघुकथा हुई कहना व्याकरणसम्मत नहीं है आ. प्रदीप नील जी।
शुक्रिया डा साहिबा । इसलिए नहीं कि आपने मेरी बात का समर्थन किया बल्कि इसलिए कि आपने व्याकरण सम्मत बात कही।
संकल्प ( विषय आधारित )
कक्षा में शिक्षिका द्वारा उपस्थिति ली जा रही थी ......" एस सी स्टूडेंट्स' खड़े हो जाइये । एक, दो ,तीन , ... ठीक है बैठिये । 'एस टी स्टूडेंट्स' खड़े होइए । एक , दो ,..... बैठिये ।' ओबीसी स्टूडेंट्स' ......। हाँ , तो बच्चों कल कौन सा पाठ पढ़ रहे थे हम ? "
कक्षा ख़त्म कर बाहर निकलते ही बगल की कक्षा से निकल रही शिक्षिका ने उसे रोकते हुए कहा - " ये क्या नैना , तू इस तरह उपस्थिति लेती है , बच्चों को बुरा लगता होगा ? "
"तो , तू क्या करती है ? "
"मैंने तो बच्चों को उनकी जाति से याद कर लिया है , नाम लेकर देखती जाती हूँ और बस गिनकर उपस्थिति - पत्रक भर देती हूँ । "
"क्या फ़रक पड़ता है कामना । बच्चे भी सब समझते हैं । हाँ , ये जरूर है कि इसके पीछे की तंत्र-प्रणाली उनकी समझ से बाहर है । "
"सही कहती हो नैना ! सोचा था.... शिक्षिका बन सबसे पहले बच्चों को इंसानियत का ही पाठ सिखाऊँगी , ताकि वे कभी इंसान-इंसान के बीच भेद न करें , पर नहीं जानती थी , शुरुआत इसी संकल्प को तोड़ने से करनी पड़ेगी ।"
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मौलिक एवं अप्रकाशित ।
हार्दिक बधाई आदरणीय शशि बंसल जी!बहुत ही सशक्त और संदेश प्रद लघुकथा!
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