For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-81

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 81वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहमद मुश्ताक़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं  "

 फाइलातुन        फाइलातुन        फाइलातुन        फाइलुन    

    2122              2122             2122            212

(बह्र: रमल मुसम्मन महजूफ़)
रदीफ़ :- हो गईं 
काफिया :- आनी (ज़बानी, कहानी, निशानी, पानी, पुरानी, दिवानी, जाफरानी, आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 मार्च  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 मार्च दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 13051

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आद० मोहम्मद आरिफ  जी ,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ  आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया | 

आदरणीय बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन, बेहतरीन अशआर से सजी बेहद उम्दा ग़ज़ल, तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ रहे है, हरेक शैर पर दाद और मुबारकवाद कबूल फरमाएं।

आद० सुरेन्द्र नाथ सिंह भैया  जी ,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ  आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया | 

आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही कसी हुई सुंदर ग़ज़ल हुई है। हर असआर का क्या कहना। हृदय से बधाई।

मुफलिसी से जूझते खुद देख कर माँ बाप को
जन्म से ही बच्चियाँ उनकी सयानी हो गईं

वक़्त था इक डूबते सूरज को भी करते सलाम
आज वो तहजीब की बातें पुरानी हो गईं

बहुत ही सुंदर शेर।

आद० बासुदेव अग्रवाल जी  ,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ  आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया सादर नमन |

वाह वाह आदरणीया राजेश जी बहुत खूबसूरत गज़ल कही है आपने.मतला तो इतना असरदार लगा की बहुत देर तक इससे आगे बढ़ ही नहीं पाया.
छोटा मूँह बड़ी बात,लेकिन मन में जो बात आ रही है साझा चाहूंगा..
"डालियाँ कुछ क्यूँ हरी कुछ जाफरानी हो गईं"

इस मिसरे को अगर ऐसे कहा जाए तो ??
"डालियाँ क्यूँ कुछ हरी कुछ जाफरानी हो गईं"

मुफलिसी से जूझते खुद देख कर माँ बाप को
जन्म से ही बच्चियाँ उनकी सयानी हो गईं
वाह वाह क्या ही शानदार शेअर है यह भी.

तुग़यानी,फ़सुर्दा,खुर्शीद,तजकिरा.....क्रुप्या इन कुछ शब्दों के अर्थ बताएँ

आद० गुरप्रीत जी ,,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ  आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया | आपका मशविरा स्वागत के योग्य है | 

तुग़यानी= उथल- पुथल , फ़सुर्दा=मुरझाई हुई , खुर्शीद=सूरज , तजकिरा-चर्चा .....

दोस्तों मतले में संशोधन कर रही हूँ कृपया इस तरह पढ़ें ----

इस शजर की कौमी कदरें बस कहानी  हो गईं

डालियाँ कुछ हैं  हरी कुछ जाफरानी हो गईं

 

इस शजर की कौमी कदरें जब  कहानी  हो गईं...
डालियाँ कुछ तो हरी कुछ जाफरानी हो गईं....... 

कैसा रहेगा ..

यहाँ जब ठीक नहीं रहेगा भैया --क्योंकि ये दर्शा रहा है की कदरें कहानी होने के बाद डालियाँ हरी जाफरानी हुई हैं जब की हमें कहन ये है की डालियों के बदलाव के कारण कौमी कदरें सिर्फ कहानी बन कर रह गई हैं  एक नन्हे से शब्द जब से अर्थ बदल जाएगा 

नीचे भी..इसीलिए तो किया है दीदी ...उस सन्दर्भ में पढ़कर देखिये..
वैसे आप का कहा भी सही है ..
सादर 

आ. राजेश दीदी,

हर बार की तरह बहुत खूब ग़ज़ल पेश की आपने...
तूफ़ानी को तुफानी कहना ठीक नहीं लग रहा है 
आज तुग़यानी में गायब सब निशानी हो गईं..इसमें भी सिर्फ सब उस बहुवचन वाली निशानी को जस्टिफाई नहीं करता दिख रहा है ..सब के साथ निशानियाँ लेना पड़ेगा क्यूँ की ऊला में डाल पर एकवचन है ..
जावेदानी के शेर में सब चलेगा क्यूँ की ऊला में तस्वीरें बहुवचन है ..
पता नहीं....अभी तक मैं ही उलझा हुआ हूँ इस गईं के फेर में ... :) :)))))
ग़ज़ल के लिये बधाई 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"जनाब नीलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई, बधाई स्वीकार करें । 'भला राह मुक्ति की…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, सार छंद आधारित सुंदर और चित्रोक्त गीत हेतु हार्दिक बधाई। आयोजन में आपकी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,छन्नपकैया छंद वस्तुतः सार छंद का ही एक स्वरूप है और इसमे चित्रोक्त…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरी सारछंद प्रस्तुति आपको सार्थक, उद्देश्यपरक लगी, हृदय से आपका…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, आपको मेरी प्रस्तुति पसन्द आई, आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार। "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, निज जीवन की घटना जोड़ अति सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, सार छंद में छन्न पकैया का प्रयोग बहुत पहले अति लोकप्रिय था और सार छंद की…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service