"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-85 में प्रस्तुत समस्त रचनाएँ
विषय - "बाल साहित्य"
आयोजन की अवधि- 10 नवम्बर 2017, दिन शुक्रवार से 11 नवम्बर 2017, दिन शनिवार तक
पूरा प्रयास किया गया है, कि रचनाकारों की स्वीकृत रचनाएँ सम्मिलित हो जायँ. इसके बावज़ूद किन्हीं की स्वीकृत रचना प्रस्तुत होने से रह गयी हो तो वे अवश्य सूचित करेंगे.
मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
क्षणिकाएँ- मोहम्मद आरिफ |
बाल गीत- प्रतिभा पाण्डे |
(1) नींद नहीं आती है बेचैनी में कटती हैं रातें बाल साहित्य की कोई तो ऐसी क़लम हो जो दे दें उसे थपकियाँ ।
(2) अक्सर झाँका करती है पन्नों की खिड़की से रेशमी परियाँ घूरती रहती है विडियो गेम को ।
(3) पंचतंत्र और जातक कथाएँ कितनी बेबस दिख रही है हैरी पॉटर , मिकी माऊस और टॉम एंड जैरी के आगे ।
(4) किसी को भी यह भूल से मत कह देना कि- अनवारे इस्लाम अजय प्रसून अजय जनमेजय श्रीधर पाठक हिन्दी के बाल साहित्यकार हैं ।
(5) हितोप देश , अमर-कथाएँ और अकबर-बीरबल की कहानियाँ डिजिटल संस्करण के बाद भी अपना वजूद तलाश रही हैं । |
नभ की दुनिया मुन्नू को तो, एक पहेली लगती है । सोच रहा वो तारों के भी क्या घर में माँ रहती है ।।
सूरज को भी क्या उसकी माँ, माथा चूम जगाती है। आनाकानी जब वो करता, क्या फिर डांट लगाती है।। मुझे जगाती है मेरी माँ, जब सूरज नभ पर आता । कैसे जगता सूरज मुन्नू, सोच सोच ये चकराता ।।
क्या सूरज की माँ भी घर में, सबसे पहले जगती है । नभ की दुनिया मुन्नू को तो, एक पहेली लगती है ।।
चंदा के घर में जो दादी, चर्खा तेज चलाती है । किसका कुर्ता बुनने को वो, सूत कातते जाती है ।। अमियाँ फाँक कभी लगता है, कभी गोल है बन जाता । सोच रहा मुन्नू चंदा नित, नए रूप कैसे लाता ।।
चंदा से किस्से उसकी माँ, किस मामा के कहती है । नभ की दुनिया मुन्नू को तो, एक पहेली लगती है ।।
नटखट तारे देर रात तक, नभ में खेला करते हैं। कभी कभी तो उछल कूद में, टूट धरा पर गिरते हैं।। नहीं डाँटती क्या माँ उनकी ,देर रात तक जगने में। शाला में वो सोते होंगे, रोते होंगे पढ़ने में ।।
क्या नटखट तारों की माँ भी, दौड़ भाग कर थकती है। नभ की दुनिया मुन्नू को तो, एक पहेली लगती है ।।
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बाल कविता- अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव |
मकड़जाल (अतुकांत)-नादिर ख़ान |
आसमान में लाखों तारे, झिलमिल झिलमिल करते सारे। दूर बहुत रहते हैं तारे, कभी न आते पास हमारे ।।
कुछ छोटे कुछ बड़़े सितारे, बच्चों को सब लगते प्यारे। हमसे आँख मिचौली खेलें, बादल में छुप जाते तारे।।
पूनम की रातों में तारे, खूब चमकते लगते न्यारे।
जाने कैसे लटके तारे, किसे पकड़ बैठे हैं सारे। तेज हवाएं चलती हैं पर, कभी नहीं गिरते हैं तारे।।
आये हैं आँगन में तारे, खेल रहे सब साथ हमारे। रोज यही सपना मैं देखूं , लेकिन कभी न आये तारे।।
दादी कहती खूब पढ़ो तुम, आयेंगे तब चांद सितारे।
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उसकी उँगलियाँ दिन भर खेलती रहती हैं मोबाइल के बटन्स के साथ न जाने कितने वीडियो गेम्स का मकड़जाल बुना हुआ है, उसकी आँखों और दिमाग में फिर भी हर रात वो मेरे पास आता है फ़रमाइश के साथ पापा सोना है, कहानी सुनाओ न ....
मै कभी हँसता हूँ तो कभी डांट भी देता हूँ तुम्हारे मोबाइल में, नींद लाने वाला गेम नहीं है क्या? वो चुपचाप मेरे बगल में आकर लेट जाता है….
मै सुनाने लगता हूँ एक नई कहानी बाल साहित्य के खजाने से और साफ होने लगता है मकड़जाल .....
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चन्दा-मामा(बाल-कविता)-सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' |
बाल कविता - सतीश मापतपुरी |
होती है जब रात अँधेरी, चन्दा मामा आते हैं । तारों की बारात लिये वो, दूध कटोरा लाते हैं ।।
दूर गगन से हमको लखते, मंद मंद मुस्काते हैं । धवल चाँदनी स्वागत करती, झींगुर गीत सुनाते हैं ।।
कभी पूर्ण आकार लिए तो, कभी अर्ध हो जाते हैं। नित नव रूप दिखाते हमको, सबको खूब लुभाते हैं ।।
अपना भी मन करता मामा, पास तुम्हारे आने को । पंख नहीं हैं लेकिन अपने, पंछी सा उड़ जाने को ।।
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चँदा मामा से बच्चों का नाता सदा । सारे बच्चों को चँदा लुभाता सदा ।
चाँद को बाल्टी में पकड़ता है वो । चाँद छिपने पे माँ से झगड़ता है वो । नन्हें हाथों से उसको बुलाता सदा । सारे बच्चों को चँदा लुभाता सदा ।
चँदा मामा से पूआ मँगाती है माँ । अपने मुन्ने को गा -गा खिलाती है माँ । लुकछिप चँदा दिखे खिलखिलाता सदा । सारे बच्चों को चँदा लुभाता सदा ।
नानी से वो सुना एक बुढ़िया वहाँ । चँदा मामा उसे फिर छिपाता कहाँ । इस पहेली को खुद सुलझाता सदा । सारे बच्चों को चँदा लुभाता सदा ।
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ग़ज़ल-तस्दीक अहमद खान |
हाइकू-तस्दीक अहमद खान |
वो क़दरदाँ लगा बाल साहित्य का । जिसने टापिक दिया बाल साहित्य का।
ज़िक्र बच्चों का ही सिर्फ़ जिस में मिले वो ही कहलाएगा बाल साहित्य का ।
पोस्ट ओ बी ओ में कर सकेगा वही मेम्बर जो बना बाल साहित्य का ।
आ गई कमसिनी में जवानी मगर कोई है पढ़ रहा बाल साहित्य का ।
हुक्मराने वतन करदे स्कूल में दर्स शामिल नया बाल साहित्य का ।
आ गया याद बचपन मुझे उस घड़ी ज़िक्र जब भी चला बाल साहित्य का ।
इस पे तस्दीक़ आसान लिखना नहीं पहले कर तज्रबा बाल साहित्य का ।
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(1 ) पढ़ के देख होता मनोरंजन बाल साहित्य
(2 ) गंदा साहित्य बन गया ख़तरा बाल साहित्य
(3 ) बाल साहित्य ओ बी ओ की साइट सदस्य बनें
(4 ) लिखते नहीं कैसे सुखनवर बाल साहित्य
(5 ) पढ़ के देखो बचपन की यादें बाल साहित्य |
बाल कविता- बासुदेव अग्रवाल 'नमन' |
बाल कविता- डॉ छोटेलाल सिंह |
वर्ष छंद आधारित मगण तगण जगण (222 221 121)
बिल्ली रानी आवत जान। चूहा भागा ले कर प्रान।। आगे पाया साँप विशाल। चूहे का जो काल कराल।।
नन्हा चूहा हिम्मत राख। जल्दी कूदा ऊपर शाख।। बेचारे का दारुण भाग। शाखा पे बैठा इक काग।।
पत्तों का डाली पर झुण्ड। जा बैठा ले भीतर मुण्ड।। कौव्वा बोले काँव कठोर। चूँ चूँ से दे उत्तर जोर।।
ये है गाथा केवल एक। देती शिक्षा पावन नेक।। बच्चों हारो हिम्मत नाय। लाखों चाहे संकट आय।। |
दादा दादी नाना नानी हमें सुनाते रोज कहानी दूर देश से परियाँ आतीं जादू की वे छड़ी दिखातीं
चंदा मामा लगते प्यारे हम सबके आँखों के तारे आसमान की शैर कराते मन को भाते आते जाते
रंग बिरंगे पंखों वाली तितली रानी है मतवाली भोली भाली हमें लुभाती मधुर भाव जग में फैलाती
म्याऊँ म्याऊँ राग सुनाती बलखाती चलती इठलाती पूँछ हिलाती बिल्ली आती दूध मलाई चट कर जाती
कू कू करती कोयल काली कितनी प्यारी कूक निराली पंचम सुर में रस छलकाती सबको मीठा बोल सिखाती |
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बाल-ग़ज़ल- राम अवध विश्वकर्मा |
गजल-मनन कुमार सिंह |
चुपके चुपके आती बिल्ली। दूध दही खा जाती बिल्ली।
सौ सौ चूहे खाकर देखो , हज करने को जाती बिल्ली
चूहों की जब दुश्मन है तो, क्यों मौसी कहलाती बिल्ली।
देखो बच्चों खम्भा नोचे, जब भी कभी खिसियाती बिल्ली।
म्याऊँ म्याऊँ करके सबका, घर में मन बहलाती बिल्ली।
अगर भगाओ उसको तो फिर, सबको आँख दिखाती बिल्ली।
अगर भगाओ उसको तो फिर, सबको आँख दिखाती बिल्ली। |
बच्चो! मीठी बोली बोलो बातों में कुछ मिसरी घोलो।1
काँटे लाख तुम्हे भटकायें, फूलों का उपहार सँजो लो।2
पेड़ लगाओ,पानी दो फिर उनके अच्छे साथी हो लो।3
फल-फूलों से घर भर देंगे छाँव तले मस्ती में डोलो।4
वे पीते जहरीली गैसें ऑक्सीजन में खुद को तोलो।5
काट रहे जो, उनको कह दो- 'पेड़ लगाओ,आँसू धो लो'।6
सूखी लकड़ी से घर बनते चिड़ियों जैसे तुम भी सो लो।7
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बाल-गीत (सार छंद)- डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
सरसी छन्द- सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' |
बहुत हो चुका खेल चुके तुम तनिक पढ़ाई कर लो पिछड़ गया जो होम-वर्क उस की भरपाई कर लो
मुन्ना बोला कर तो लेता, मैं भरपूर पढाई मगर क्या करूं इसी समय पर, मुझको पोटी आयी समझ रही हूँ तुमको बेटा झूठ-मुठाई कर लो बहुत हो चुका खेल चुके तुम तनिक पढ़ाई कर लो
झूठ नहीं कहता हूँ मम्मी जल्दी से तुम आओ हाथों में फिर मुझे उठाकर वाश रूम ले जाओ मम्मी बोली ठीक तरह से साफ़-सफाई कर लो बहुत हो चुका खेल चुके तुम तनिक पढ़ाई कर लो
होमवर्क माँ अभी करूंगा बड़ी भूख लग आई जल्दी से खाने को दे दो ब्रेड पर डाल मलाई मेरी पप्पी लेकर थोड़ी हंसी हंसाईं कर लो बहुत हो चुका खेल चुके तुम तनिक पढ़ाई कर लो
ब्रेक फास्ट हो गया मगर तू अब काहे को रोता क्या बतलाऊँ मम्मी मुझको दर्द पेट में होता सेंक करो या फिर तुम कोई दुआ-दवाई कर लो बहुत हो चुका खेल चुके तुम तनिक पढ़ाई कर लो
अब मम्मी को गुस्सा आया दिया खींच कर चांटा देख रही हूँ सारा नाटक कहकर फिर से डांटा पढ़ लूंगा पर पहले मम्मी कूट-कुटाई कर लो बहुत हो चुका खेल चुके तुम तनिक पढ़ाई कर लो
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बाग बगीचे और तितलियाँ, बच्चों का संसार । उड़ने को वो हर पल सोचें, आसमान के पार ।।
बचपन कच्ची पगडंडी सी, क़ई समेटे राह । आम रसीला इमली खट्टी, पल पल बदले चाह ।।
कही गिलहरी भाग रही है, कौवा करता शोर । नन्हा बन्दर मस्ती करता, घर आँगन चहुँओर ।।
कानाफूसी करें परिन्दे, समझ न आये बात । कुकड़ू कुकड़ू मुर्गा बोले, बीत गयी है रात ।।
सपने में सब परियाँ आती, उड़नखटोले संग । नील गगन में बहुत सुहाये, इंद्र धनुष के रंग ।।
जब भी हमसब दौड़ लगायें, खूब उड़ाएं धूल ।। खेल खेल में पढ़ते जाएं, सारी बातें भूल ।
पल में लड़ना और झगड़ना, फिर से करना मेल । मिले जहाँ पर दोस्त चार तो, सजे वहीं पर खेल ।।
भेदभाव हम नहीं मानते, सब हैं अपने यार । जाति धर्म के ऊपर अपना, है बचपन का प्यार ।।
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पशु पक्षी की बोली-अरुण कुमार निगम |
अतुकान्त बाल-कविता - शेख शहजाद उस्मानी |
मुर्गा बोले कुकड़ूँ कू कोयल गाये कुहुकुहु कू।।
मिट्ठू बोले टें टें टें बकरी मिमियाती में में।।
बंदर करता खौं खौं खौं कुत्ता भौंके भौं भौं भौं।।
घोड़ा करता हिन हिन हिन मक्खी भिनके भिन भिन भिन।।
भौंरा गाये गुन गुन गुन मच्छड़ कहता भुन भुन भुन।।
करे पपीहा पिहू पिहू कहे कबूतर गुटरुंग गू ।।
चिड़िया करती चूँ चूँ चू गदहा रेंक रहा ढेंचू।।
सुन सियार की हुआ हुआ काँव काँव करता कौआ।।
गौ माता करती बाँ बाँ चीं चीं चीं करता चूहा।।
पशु पक्षी की बोली सुन तुम भी गाओ गुन गुन गुन।। |
दादा आओ, दादी भी आओ, अब न हमसे नज़रें चुराओ। नज़रें तो हमने चुराईं बुज़ुर्गों को पीठ दिखाईं। मोबाइल, टीवी और कम्प्यूटर अब उतने न सुहायें। छोड़ी हमने ये बलायें। दादा आओ, दादी भी आओ, अब न हमसे नज़रें चुराओ। कुछ हम सुनायें कुछ तुम अपनी सुनाओ। फिर से अपनी बैठक जमायें।
बन गये थे क़िताबी कीड़े मम्मी-पापा के तीरे-तीरे प्यारे-दुलारे हीरे-मोहरे। पार्टी, फैशन हमें बरगलायें, छल करतीं हमसे बलायें! दादा आओ, दादी भी आओ, अब न हमसे नज़रें चुराओ। कुछ हम बदलें, कुछ तुम बदल जाओ।
तज़ुर्बों की तुम हो खान सुखी परिवार की जान। जिन बातों से हम अनजान तुम ही दोगे हमको ज्ञान। मुसीबतों से बचायें, हम बच्चों को नेक राहें दिखायें। दादा आओ, दादी भी आओ, अब न हमसे नज़रें चुराओ। हो सके तो अपने संग नाना को लाओ, नानी को लाओ। कभी-कभी तो फिर वैसी स्वर्ग सी दुनिया बसाओ।
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बाल-कविता (चौपई छंद)-सतविन्द्र कुमार |
कविता- मनन कुमार सिंह |
बाहर हुआ धुंध का राज सही बिछाना चौपड़ आज हवा खराबी को लो भाँप लूडो या फिर सीढ़ी साँप
आओ सारे खेलें खेल करके हम आपस में मेल राजू बबलू हैं तैयार हम भी कब पीछे हैं यार
पाँसे को हम देते रोल नम्बर उसके देते बोल फिर हम चलते अपनी चाल सीढ़ी करती बहुत कमाल
साँप बुरा है रहा धकेल नहीं सुहाता अब ये खेल चलना शुरु से फिर वो चाल बुरा करेगी मेरा हाल
ऐसे मैं सकता हूँ हार छोड़ो इसको अब तो यार नहीं छोड़ना होता ठीक खेलों से बनते निर्भीक
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महिमा बोली,'एक कलम दो, चित्र बना दूँ बाबा का।' खिंच गयीं कुछ लोल लकीरें दिख रहीं क्या---आ आ आ! बोली,'बाबा!देखो बन गए, तुम कैसे यूँ? टा टा टा।' भागी फिर, बस आई उसकी दादी बोली,'जा जा जा। यह क्या उसने रुप बनाया, बालों में कंघा लटकाया, आँखों पर टूटा चश्मा है कैसा यह करिश्मा है करती रहती रोज शरारत ढाती एक से बढ़कर आफत नहीं समझ अपने को आया जाने क्यूँ उसका सब भाया। हाथों में एक कलम पकड़ाई, रोज एक गजल लिखवाई, अंग्रेजी मैं तुझे पढ़ा दूँ, कहती--बाबाजी!सिखला दूँ, हुई न तेरी ठीक पढाई, 'ब्वाय' को 'ब्वा'बोले हो भाई।' सोच-सोच कर दादी-दादी हँसते,कहते-महिमा फरियादी। |
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हाइकू- शेख शहजाद उस्मानी |
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1-
ईश्वर तुल्य माता-पिता, शिक्षक ईश्वर भूले।
2-
गुमशुदा है ईश्वर धरा पर मुनिया सोचे।
3-
ईश्वर मिलें किस घर या ग्रह मुन्ने का स्वप्न।
4-
भगवान का ये जंतर-मंतर धरना स्थल।
5-
सब देखते तारे जमीन पर बच्चे टूटते।
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6-
पापा कहते विज्ञान भगवान मम्मी के राम।
7-
मम्मी पूजतीं देवी-देवता, पति बच्चे मम्मी को।
8-
जन्नत मिले मां के क़दमों पर बच्चे ही भूले।
9-
माला जपते दादा-दादी अकेले होमवर्क है।
10-
कण-कण में भगवान बसते किसे दिखते? |
समाप्त |
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आदरणीय मिथिलेश भाईजी, त्वरित संकलन और संचालन के लिए आभार , शुभकामनाएँ। बस दो संशोधन है कृपया संकलन में प्रतिस्थापित कीजिए। .... सादर
पूनम की रातों में तारे, खूब चमकते लगते न्यारे।
रात रात भर जागा करते, दिन में सो जाते हैं तारे।।
दादी कहती खूब पढ़ो तुम , आयेंगे तब चांद सितारे।
आओ साथ पढ़ें फिर खेलें , आँगन में उतरेंगे तारे।।
धन्यवाद आपका ।
धन्यवाद आपका
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