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क्या समझती ? इसलिए तो आपसे अनुग्रह किया है मैंने क्यूंकि मैं किसी विद्वतजनो को भी नहीं समझ पायी थी ,
अर्चना जी ईमानदार टिप्पणी के लिए बेहद शुक्रिया। आपको पाठकों की क्षमता पर संदेह है मगर मुझे रत्ती भर भी नहीं है। बहुत पाठक आएँगे जो बताएंगे कि इस लघुकथा में कथा कहाँ है। आप के साथ मैं भी इंतज़ार कर रहा हूँ उस पाठक का। बहरहाल , तब तक धन्यवाद स्वीकारें
उस्मानी जी आपकी उदारता का कायल हूँ।
कृपा बनाए रखें
बहुत शुक्रिया शांति जी ,समय निकाल इधर आने के लिए।
सुनील भाई आप जैसे गुणग्राही ने कथा का सही मर्म समझा ,बिलकुल साफ़। यह अनकहा ही तो मेरी लघुकथा की जान थी।
आश्वस्त हुआ कि आपको लघुकथा की समझ है।
आभार बंधु
आदरणीय सुनील जी , यहां प्रयुक्त कथा में नेता जी कहाँ से आ गए ? एक अफसर ,एक ड्राइवर ,एक गरीब पिता और एक बीमार बीटा के इर्द -गिर्द कथा बनी गयी है तो मुझे कही नहीं दिखाई दिए बाकी पात्र ये नेताजी तो कहीं नहीं है। सादर।
कभी-कभी अतिशय रोष में 'सच' मुँह से उछल बाहर आ ही जाता है | साहब के साथ कुछ ऐसा ही हुआ होगा | स्वयम के कहे शब्दों की सच्चाई ने कानो. के रास्ते मस्तिष्क को संकेत दिया ,हर चीज को नफे-नुक्सान के तराजू में तौलता ये लोजिकल माइंड ,फौरन एक्शन में आ गया और मामले को रफा-दफा करने के लिए ह्रदय को आदेश दे डाला , बिचारे मातहत हृदय ने न चाहते हुए भी आदेश का पालन करते हुए रक्त-प्रवाह को मंद कर दिया परिणाम-स्वरूप हाथ ढीला हो गया | रक्त में शर्म के टोक्सिन सक्रिय हो उठे और क़दमों में थकान आ गयी ... ड्राइवर भी सब समझ गया | टिप्पड़ी ज्यादा लम्बी होने के लिए क्षमा .. | सुंदर कथा हेतु हार्दिक बधाई ...सादर ,
प्रिय द्विवेदी जी , आपकी टिप्पणी से आश्वस्त हुआ कि मैं ऐसे मंच पर लघुकथा प्रस्तुत कर रहा हूँ जहाँ लोगों को लघुकथा की समझ है।
साहित्य का एक ही मूल-मंत्र मैंने समझा है कि अच्छा पाठक ही एक दिन अच्छा लेखक बनता है ( और ख़राब लेखक क्या बनता है, यह बात फिर कभी )
मेरी रचना को इतना समय दे कर निष्पक्ष टिप्पणी दी,आभारी हूँ
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